बढ़ती उम्र के साथ सर्दियों में रहें सतर्क, इन 6 बीमारियों में जरूर बरतें सावधानी

वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध से यह साबित हो चुका है कि सर्दियों में बुज़ुर्गों की शारीरिक गतिविधियां बहुत सीमित हो जाती हैं क्योंकि ठंड से बचने के लिए उनका अधिकांश समय घर के भीतर व्यतीत होता है। ऐसे में अकेलेपन और बोरियत की वजह से उन्हें डिप्रेशन जैसी मनोवैज्ञानिक समस्याएं भी परेशान करने लगती हैं।
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बढ़ती उम्र के साथ सर्दियों में रहें सतर्क, इन 6 बीमारियों में जरूर बरतें सावधानी


उम्र बढऩे के साथ बुज़ुर्गों का इम्यून सिस्टम कमज़ोर हो जाता है। ठंड में शारीरिक गतिविधियां सीमित हो जाती हैं, जिससे उन्हें कब्ज़ और गैस्ट्रोसाइटिस जैसी समस्याएं परेशान करने लगती हैं। इससे बचाव के लिए उन्हें अपने भोजन में हरी पत्तेदार सब्जि़यों और फाइबर युक्त चीजों जैसे दलिया, सूजी और ओट्स को प्रमुखता से शामिल करना चाहिए। बुज़ुर्गों के कमज़ोर शरीर को ठंड का प्रहार झेलने में बहुत परेशानी होती है। अत: इस मौसम में उन्हें कुछ मनोवैज्ञानिक समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है, जिसे चिकित्सा विज्ञान की भाषा में साइको-जेरिएट्रिक डिसॉर्डर कहा जाता है। वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध से यह साबित हो चुका है कि सर्दियों में बुज़ुर्गों की शारीरिक गतिविधियां बहुत सीमित हो जाती हैं क्योंकि ठंड से बचने के लिए उनका अधिकांश समय घर के भीतर व्यतीत होता है। ऐसे में अकेलेपन और बोरियत की वजह से उन्हें डिप्रेशन जैसी मनोवैज्ञानिक समस्याएं भी परेशान करने लगती हैं।

बचाव : मोबाइल और सोशल मीडिया के ज़रिये करीबी लोगों से बातचीत करें। जब भी धूप खिली हो, घर से बाहर घूमने जाएं। अगर सेहत इजाज़त दे तो बागबानी करें, विडियो गेम्स खेलें, पास-पड़ोस के बच्चों को पढ़ाएं, घरेलू कार्यों में परिवार के सदस्यों को सहयोग दें। इससे अकेलापन महसूस नहीं होगा और आप मानसिक रूप से प्रसन्न रहेंगे। 

आमतौर पर सर्दियों को हेल्दी सीज़न माना जाता है। इस मौसम में लोग गुनगुनी धूप और गर्मागर्म स्वादिष्ट व्यंजनों का लुत्‍फ उठाते हैं लेकिन इसके साथ ही सेहत पर ध्यान देना भी ज़रूरी है। आइए जानते हैं कि इस मौसम में लोगों को कौन सी स्वास्थ्य समस्याएं परेशान करती हैं और उनसे बचाव के लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए :  

सर्दी-ज़ुकाम

सर्दियों कुछ खास किस्म के वायरस और बैक्टीरिया की सक्रियता बढ़ जाती है, जिनसे लडऩे के लिए शरीर के लिए इम्यून सिस्टम को अधिक मेहनत करनी पड़ती है। इसी वजह से इस मौसम में लोगों को सर्दी-खांसी और हल्का बुखार जैसी समस्याएं झेलनी पड़ती हैं। बच्चों का इम्यून सिस्टम पूरी तरह विकसित नहीं होता, इसीलिए ठंड के मौसम में उन्हें ऐसी बीमारियां बहुत परेशान करती हैं।    

बचाव : बाहर निकलने से पहले पर्याप्त ऊनी कपड़े पहनें, पीने और नहाने के लिए गुनगुने पानी का इस्तेमाल करें। सूप और तुलसी-अदरक से बनी चाय का सेवन भी फायदेमंद होता है। अपने साथ बच्चों का भी विशेष ध्यान रखें।   

अस्‍थमा 

वायरस और बैक्टीरिया जैसे तत्व इम्यून सिस्टम को कमज़ोर बना देते हैं। इस मौसम में ठंड और एलर्जी के प्रति संवेदनशील होकर श्वास नलिकाएं सिकुड़ जाती हैं, जिससे लोगों को सांस लेने में परेशानी होती है। अगर किसी को पहले से ही अस्‍थमा हो तो तकलीफ और बढ़ जाती है। गाडिय़ों और फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुएं के कारण इस मौसम में वायु प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक होता है। तापमान कम होने के कारण धुएं और धूलकणों की मोटी परत आसमान के नीचे जम जाती है। धुंध और धुएं के इस मिश्रण को स्मॉग कहा जाता है। अस्‍थमा के मरीज़ों के लिए यह बहुत नुकसानदेह साबित होता है।     

बचाव : सुबह के समय प्रदूषण का स्तर अधिक होता है, इसलिए मॉर्निंग वॉक पर जाने के बजाय घर पर ही एक्सरसाइज़ करें। बच्चों को मास्क पहना कर स्कूल भेजें और बाहर निकलते समय खुद भी इस बात का ध्यान रखें। रात को सोते समय सारी खिड़कियां बंद न करें। घर में सीलन न पनपने दें। बाथरूम में एग्जॉस्ट फैन और किचन में चिमनी ज़रूर लगवाएं। कार्पेट की सफाई का विशेष ध्यान रखें। बच्चों के सॉफ्ट टायज़ में धूल न जमने दें। रूम हीटर या ब्लोअर जैसे उपकरण कमरे में मौज़ूद स्वाभाविक ऑक्सीजन को नष्ट कर देते हैं। इसलिए इन्हें लगातार न चलाएं और चलाते समय कमरे में पानी से भरा बर्तन रखना न भूलें। घर में स्ट्रॉन्ग परफ्यूम्स और अगरबत्ती का इस्तेमाल न करें।

ऑस्टियोपोरोसिस

ठंड के कारण शरीर की रक्तवाहिका नलियां सिकुड़ जाती हैं और रक्त संचार की गति धीमी पड़ जाती है। इस रुकावट की वजह से मांसपेशियों और हड्डियों में दर्द होता है। खासतौर पर ऑस्टियोपोरोसिस के मरीज़ों की तकलीफ बढ़ जाती है।       

बचाव : ठंड से बचाव के लिए मोज़े और दस्ताने पहनें। नहाने के लिए हलके गुनगुने पानी का इस्तेमाल करें। नियमित रूप से थोड़ी देर धूप में बैठें क्योंकि इससे मिलने वाला विटमिन डी हड्डियों की सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है। अपने खानपान में कैल्शियम, प्रोटीन और विटमिन सी युक्त खाद्य पदार्थों जैसे-मिल्क प्रोडक्ट्स, दाल, अंडा, चिकन और खट्टे फलों की मात्रा बढ़ाएं। अगर आपकी नी-रीप्लेस्मेंट सर्जरी हो चुकी है तो रूम हीटर के $करीब न बैठें और नहाने के लिए घुटनों की सिंकाई न करें। इससे घुटनों के भीतर मौज़ूद मेटल की प्लेट गर्म हो जाती है और दर्द बढ़ सकता है।

हाई ब्लड प्रेशर

वैज्ञानिकों द्वारा किए गए सर्वेक्षणों से यह तथ्य सामने आया है कि इस मौसम में शरीर की अंत:स्रावी ग्रंथियों से कुछ ऐसे हॉर्मोंस का स्राव होता है, जो ब्लडप्रेशर बढ़ाने के लिए जि़म्मेदार होती हैं। अत: हाई ब्लडप्रेशर के मरीज़ों को विशेष सजगता बरतनी चाहिए।

बचाव : भोजन में नमक का सीमित इस्तेमाल करें। मन शांत रखें और तनाव से दूर रहें। एल्कोहॉल, सिगरेट, जंक फूड, नॉनवेज और तली-भुनी चीज़ों से दूर रहें। सादे भोजन और नियमित व्यायाम से अपने बढ़ते वज़न को नियंत्रित रखने की कोशिश करें।

हृदय रोग

दिल के मरीज़ों के लिए यह मौसम बहुत नुकसानदेह होता है। सर्दियों में शरीर की रक्तवाहिका नलिकाएं सिकुड़ जाती हैं, जिससे उन पर रक्त का दबाव बढ़ जाता है, जो हार्ट अटैक का कारण बन सकता है। इसके अलावा ठंड से बचाव के लिए इस मौसम में स्वाभाविक रूप से शरीर का मेटाबॉलिक रेट तेज़ हो जाता है, जिससे हार्ट को अधिक मेहनत करनी पड़ती और दिल का दौरा पडऩे की आशंका बढ़ जाती है।

बचाव : जब तापमान बहुत कम हो तो पर्याप्त ऊनी कपड़े पहनें। प्रतिदिन थोड़ी देर धूप में ज़रूर बैठें क्योंकि सूरज की रोशनी में मौज़ूद विटमिन डी दिल की सेहत के लिए फायदेमंद होता है। इस मौसम में अकसर पिकनिक और पार्टियों का दौर चलता रहता है। ऐसे में अकसर लोग नॉनवेज, मिठाइयों और जंक फूड की ओवरईटिंग कर लेते हैं, जो दिल की सेहत के लिए नुकसानदेह साबित होती है। अत: दिल के मरीज़ों को संयमित और संतुलित खानपान अपनाना चाहिए।

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रेनॉड्स सिंड्रोम        

इस मौसम में तापमान कम होने के कारण हाथ-पैरों की रक्तवाहिका धमनियां सिकुड़ कर संकरी हो जाती हैं, जिससे रक्तप्रवाह में रुकावट पैदा होती है। जिन लोगों का शरीर ठंड के प्रति संवेदनशील होता है, उनके हाथ-पैरों की उंगलियां पर लाल या काले रंग के निशान बन जाते हैं। कुछ लोगों में सूजन, दर्द और खुजली जैसे लक्षण भी नज़र आते हैं।

बचाव : ठंड से बचाव के लिए मोज़े और दस्ताने पहनें। रात को सोने से पहले गुनगुने सरसों के तेल से उंगलियों की मालिश करें। त्वचा की रंगत में ज़रा भी बदलाव नज़र आए तो बिना देर किए डॉक्टर से सलाह लें।

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