दिमाग की गतिविधियों को असानी से खोज निकालती है ये नई तकनीक, वैज्ञानिकों ने किया अविष्‍कार

हार्वर्ड के वैज्ञानिकों ने एक नए अध्ययन में एक तकनीक का उपयोग कर न्यूरोनल गतिविधियों का पता लगाने का एक नया तरीका खोज निकाला है, जो कि मस्तिष्क में होने वाले परिवर्तनों का 60 गुना जल्दी पता लगा सकता है। अध्ययन में बताया गया है कि यह तकनीक हलचल होने के 100 मिलीसेकंड के भीतर ही मस्तिष्क की गतिविधि का पता लगा सकती है।
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दिमाग की गतिविधियों को असानी से खोज निकालती है ये नई तकनीक, वैज्ञानिकों ने किया अविष्‍कार


मानव मस्तिष्क उत्तेजना के संपर्क में आने, न्यूरॉन्स के सक्रिय होने, अवचेतन प्रतिक्रियाओं को प्रोत्साहित करने और पलक झपकने से भी तेज काम करता है लेकिन एमआरआई का उपयोग करते हुए जिस गति से हम मस्तिष्क गतिविधियों का अनुसरण कर सकते हैं वह उतनी प्रभावशाली नहीं है।  

जब  मस्तिष्क क्षेत्र अधिक सक्रिय होता है तब fMRI,तंत्रिका गतिविधि की प्रतिक्रिया में होने वाले रक्त के ऑक्सीजेनेशन में परिवर्तन और प्रवाह का पता लगाकर काम करता है, जिससे ऑक्सीजन का उपयोग ज्यादा होता है और इस बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए मस्तिष्क के सक्रिय क्षेत्र में रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है। यह संवहनी परिवर्तन fMRI का तरीका मनुष्यों में छह सेकंड तक का वक्त ले सकता है, जो कि मस्तिष्क का एक वास्तविक असीमित समय है।

 

60 गुना तेज है नई तकनीक 

हार्वर्ड के वैज्ञानिकों ने एक नए अध्ययन में एक तकनीक का उपयोग कर न्यूरोनल गतिविधियों का पता लगाने का एक नया तरीका खोज निकाला है, जो कि मस्तिष्क में होने वाले परिवर्तनों का 60 गुना जल्दी पता लगा सकता है। अध्ययन में बताया गया है कि यह तकनीक हलचल होने के 100 मिलीसेकंड के भीतर ही मस्तिष्क की गतिविधि का पता लगा सकती है।

ब्रिघम के रेडियोलोजी विभाग के भौतिकीविद् और  हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में रेडियोलोजी के प्रोफेसर सैम पैट्ज ने कहा, "प्रयोगशाला में लेजर के साथ बनाई गई सांस लेने वाली एक विशेष गैस का उपयोग करने वाले विषय सहित फेफड़ों की जांच में प्रयोग की जानी वाली इस प्रकार की इमेजिंग तकनीक को नई तकनीक के साथ प्रयोग करने से प्रभावशाली नतीजे सामने नहीं आए। इसलिए इसके बजाय हमने चूहे के मस्तिष्क में इस तकनीक का प्रयोग करने का फैसला किया क्योंकि इसमें विशेष गैस का उपयोग नहीं किया गया था। इसके बाद हमने फेफड़े को छोड़ दिया और मस्तिष्क के साथ जाने का फैसला किया और अब परिणाम हमारे सामने हैं।"

टीम ने जो रोमांचक परिणाम देखा वह यह था कि बेहोश चूहे की श्रवण-संबंधी बाह्य त्वचा और कड़ी हो रही थी और शुरुआत में किसी को नहीं पता था कि ऐसा क्यों हो रहा है। 

पैट्ज ने कहा, ''शुरुआत में यह सोचने का कोई कारण ही नहीं था कि उत्तेजना मस्तिष्क की कठोरता में बदलाव का कारण होगी। हम स्थिर अवस्था में लचीलापन को मापने के लिए सामान्य MRE स्कैन का उपयोग करना चाह रहे थे। वास्तव में, हमें उम्मीद थी कि मस्तिष्क के सभी कोर्टिकल हिस्सों में एक जैसी ही कठोरता होगी और इसलिए हमें आश्चर्य हुआ कि क्यों मस्तिष्क का एक विशेष हिस्सा ही कठोर हुआ। ''

पैट्ज़ ने बाद में महसूस किया कि एमआरआई स्कैनर से आने वाली तेज आवाज बेहोश पशु के श्रवण-संबंधी बाह्य त्वचा को कठोर बनाने का कारण बन रही थी। जिसके बाद उन्होंने एक प्रयोग किया, जिसमें उन्होंने चूहे के एक कान को जेल के साथ बंद कर दिया। यह सब करने के बाद जब उन्होंने चूहे के मस्तिष्क का एक और इलास्ट्रोग्राम किया तो उन्होंने देखा कि उस कान से ध्वनि संसाधित करने वाली श्रवण-संबंधी बाह्य त्वचा नरम पड़ने लगी थी।

सिंकुस ने कहा, "परिणाम इतने अप्रत्याशित थे कि हमें उनकी और जांच करनी पड़ी और इस जांच ने सबकुछ सामने ला दिया।"

बोस्टन और यूरोप में इसांनों पर इस तकनीक का अध्ययन जारी 

पैट्ज ने कहा, "उनका काम सिंकुस समूह के साथ मजबूत सहयोग का परिणाम है। फिलहाल प्रोफेसर सिंकुस अभी ओस्लो में अधिक मानव कार्यात्मक इलास्टोग्राफी डेटा प्राप्त कर रहे हैं।" वर्तमान में टीम बोस्टन और यूरोप दोनों में  इसांनों पर इस तकनीक का अध्ययन कर रही है।

पैट्ज ने कहा, "हम जो डेटा प्रकाशित कर रहे हैं, वह चूहों से प्राप्त किया गया था, लेकिन मनुष्यों के लिए इस तकनीक का प्रयोग स्पष्ट है और प्रारंभिक अध्ययन अभी चल रहा है।"

पैट्ज ने कहा, "नई तकनीक ने मस्तिष्क में न्यूरोमैकेनिकल बदलाव दिखाए हैं जो कि न्यूरोनल गतिविधि से 100 मिलीसेकंड तक तेजी से जुड़ते हैं लेकिन अब हमारे पास प्रारंभिक डेटा है जो कि न्यूरोनल परिवर्तनों को बहुत तेज़ी से 24 मिलीसेकंड तक जांच सकता है।"

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