कोरोना संक्रमण के कारण हमारा देश काफी संघर्ष कर रहा है। ऐसे में आप अक्सर इस संक्रमण से बचने के लिए यह सुनते हैं कि इम्यूनिटी को मजबूत करना जरूरी है और ऐसे में हम तमाम उपाय अपनाते भी हैं, जिससे इम्यूनिटी को मजबूत किया जा सके। लेकिन क्या हो जब इम्यूनिटी की कोशिकाएं कैंसर से ग्रस्त हो जाएं। जी हां, इस अवस्था को चिकित्सक भाषा में लिंफोमा कहां जाता है। बता दें कि जो कोशिकाएं संक्रमण से लड़ती हैं वह लिंफोसाइट्स कहलाती हैं और जब व्यक्ति लिंफोमा से ग्रस्त हो जाता है तो कोशिकाओं का स्वरूप बदलने लगता है और वह संतुलन खोने लगती हैं। शरीर में इनकी वृद्धि असामान्य रूप से होने लगती है और जहां-जहां इनका प्रभाव पहुंचता है वहां वहां गांठें बननी शुरू हो जाती हैं और यह गांठें समय आने पर कैंसर का रूप ले लेती हैं। यह गांठे मुख्य रूप से गर्दन, छाती, थाइज और ऊपरी हिस्सों में नजर आती हैं। आज का हमारा लेख लिंफोमा कैंसर पर है। आज हम आपको अपनी इस लेख के माध्यम से बताएंगे कि लिंफोमा कितने प्रकार का होता है। साथ ही इसके लक्षण कारण और बचाव भी जानेंगे। पढ़ते हैं आगे...
लिंफोमा के प्रकार
यह दो प्रकार का होता है एक तो हॉजकिंस और दूसरा नॉन हॉजकिन। बता दें कि जब श्वेत रक्त कोशिकाएं अपना नियंत्रण खो देती हैं तो उनमें रीड-स्टर्नबर्ग कोशिकाएं विकसित होने लगती हैं। ऐसे में इस अवस्था को हॉजकिंस कहते हैं। अगर नॉन हॉजकिंस की बात करें तो ये दो भागों में बांटा है। हाई ग्रेड और लो ग्रेड। लो ग्रेड का लिंफोमा धीमी गति से फैलता है पर आसानी से दूर नहीं होता जबकि high-grade लिंफोमा तेजी से फैलता है और जल्दी से दूर भी हो जाता है।
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लिंफोमा के लक्षण
लिपोमा के लक्षण निम्न प्रकार हैं-
- हड्डियों में दर्द होना,
- हर वक्त थकान महसूस करना,
- हल्का बुखार होना,
- रात को पसीना आना,
- सांस फूलने की परेशानी होना,
- पेट में दर्द महसूस करना,
- बिन बाद वजन घटना,
- स्किन पर रैशेज हो जाना,
- इसके अलावा आर्मपिट्स, पेट, थाइज़ में सूजन महसूस करना या गांठ महसूस करना,
- मुंह और होठों का सुन्न हो जाना,
- गले में खराश रहना,
- कान के एक साइड में दर्द रहना,
- जबड़े के ऊपर हिस्से में दर्द महसूस रहना
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लिंफोमा की जांच
डॉक्टर निम्न तरीकों से लिंफोमा की जांच कर सकते हैं
1 - प्रभावित हिस्से की टिशू की बायोप्सी करना।
2 - सीटी स्कैन और एमआरआई के माध्यम से यह पता लगाने के लिए टये कैंसर शरीर के किन हिस्सों तक फैल चुका है।
3 - बोनमैरो की बायोप्सी के जरिए यह मालूम किया जाता है कि यह कैंसर हड्डियों तक पहुंचा है या नहीं।
4 - ब्लड टेस्ट के माध्यम से किडनी और लिवर के कार्य की जांच की जाती है।
5 - गैलियम स्कैन के जरिए यह शरीर की जांच की जाती है।
6 - सीटी स्कैन के जरिए मरीज को ग्लूकोस का एक इंजेक्शन दिया जाता है, जिससे सीमित मात्रा में रेडियोधर्मी पदार्थ निकलता है। यही कारण होता है कि स्कैनिंग के वक्त भीतरी अंग ज्यादा बड़े और स्पष्ट नजर आते हैं।
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लिंफोमा की अवस्थाएं
मुख्य रूप से लिंफोमा की चार अवस्थाएं होती हैं।
- पहली अवस्था में लसिका तंत्र से कैंसर शुरू होता है और उसी हिस्से में रुका रहता है इस स्थिति को एक्स्ट्रा नोडल लिंफोमा कहते हैं।
- दूसरी अवस्था में कैंसर लिंफ नोड के 2 या उससे अधिक ग्रुप में रह सकता है।
- तीसरी अवस्था में डायफ्राम के दोनों तरफ कैंसर के लिंफ नोड नोट्स बनने शुरू हो जाते हैं।
- चौथी अवस्था में यह कैंसर हड्डियों के बीच स्थित बोन मैरो तक पहुंच जाता है जय स्टेज आखरी मानी जाती है।
क्या है उपचार
इस कैंसर का उपचार कीमोथैरेपी या रेडियोथैरेपी मानते हैं। इसके अलावा इम्यूनो थेरेपी द्वारा एंटीबॉडीज के इंजेक्शन से कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने की कोशिश की जाती है। इस उपचार का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि दवा कैंसर कोशिकाओं को पहचान कर केवल उन्हीं को नष्ट करते हैं और अच्छे कोशिकाओं को बचाव में मदद करती है।
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कुछ जरूरी बातें
- कीमोथेरेपी के बाद व्यक्ति अक्सर कमजोरी महसूस करता है ऐसे में ज्यादा भारी काम नहीं करना चाहिए, जिससे व्यक्ति को थकान महसूस हो।
- भोजन को अच्छे से पका कर खाना चाहिए जिससे वे आसानी से पच सके।
- मिर्च मसाला, घी तेल आदि से दूर रहना चाहिए।
- कीमोथेरेपी के बाद इम्यून सिस्टम बेहद कमजोर होता है ऐसे में संक्रमण से बचने के लिए साफ-सफाई और मास्क का जरूर ध्यान रखें।
- बुखार आने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
नोट - लिंफोमा कैंसर हो जाने पर अकसर व्यक्ति को कुछ असामान्य लक्षणों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में अगर ऊपर बताए गए लक्षण आप खुद में या अपने आसपास महसूस करें तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
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