सिर्फ धूम्रपान नहीं कई कारणों से हो सकता है फेफड़ों का कैंसर, एक्सपर्ट से जानें शुरुआती लक्षण, कारण और इलाज

धूम्रपान और खराब जीवनशैली के चलते लंग्स कैंसर की शिकायत हो सकती है। आइए एक्सपर्ट से जानते हैं लंग्स कैंसर की पूरी जानकारी।

Kishori Mishra
Written by: Kishori MishraUpdated at: Dec 17, 2020 17:25 IST
सिर्फ धूम्रपान नहीं कई कारणों से हो सकता है फेफड़ों का कैंसर, एक्सपर्ट से जानें शुरुआती लक्षण, कारण और इलाज

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अधिक धूम्रपान और खराब लाइफस्टाइल लंग्स कैंसर (Lung Cancer) का सबसे बड़ा कारण होता है। लंग्स कैंसर में रोगियों के फेफड़ों की कोशिकाएं असमान्य रूप से बढ़ने लगती हैं और एक ट्यूमर का निर्माण करती हैं। फेफड़ों की मदद से ही सांस ली जाती है और यह शरीर के अन्य हिस्सों में ऑक्सीजन पहुंचाने का कार्य करती है। ऐसे में जब व्यक्ति के लंग्स में ट्यूमर हो जाता है, तो सांस लेने में परेशानियां होती है और व्यक्ति की मौत हो जाती है। आंकड़ों के अनुसार, कैंसर से होने वाली मौतों में लंग्स कैंसर सबसे आप कैंसर है। एथिकल डेंटल एंड चेस्ट केयर (Ethical Dental & Chest Care) क्लीनिक के चेस्ट एंड लंग स्पेशलिस्ट डॉक्टर मनीष साहू का कहना है कि फेफड़ों के कैंसर की वजह से व्यक्ति पूरी तरह से कमजोर हो जाता है। फेफड़ों में ट्यूमर के आकार के आधार पर इन कैंसर का नाम दिया जाता है। लंग्स कैंसर दो तरह के होते हैं। स्मॉल सेल फेफड़े का कैंसर (Small Cell Lung Cancer) और दूसरा नॉन-स्मॉल फेफड़े का कैंसर (Non Small Cell Lung Cancer)। आइए एक्सपर्ट से जानते हैं किन कारणों से होता है लंग्स कैंसर-

लंग्स कैंसर के प्रकार (Types of Lung cancer)

नॉन-स्मॉल फेफड़े का कैंसर (Non Small Cell Lung Cancer)

स्टेज 1: इस स्टेज में कैंसर फेफड़ों के अंदर ही होत है। फेफड़ों से कैंसर की कोशिकाएं बाहर नहीं निकलती हैं। 

स्टेज 2: दूसरे स्टेज में कैंसर फेफड़ों के लिम्फ नोड्स में फैलता है। 

स्टेज 3: इस स्टेज में फेफड़े और लिम्फ नोड्स के पास कैंसर की कोशिकाएं फैलती हैं। 

स्टेज 3 ए : कैंसर लिम्फ नोड्स (lymph nodes) में पाया जाता है। 

स्टेज 3 बी:  छाती के विपरीत लिम्फ नोड्स (lymph nodes) या कॉलरबोन (collarbone) के ऊपर लिम्फ नोड्स में कैंसर फैलने लगता है।

स्टेज 4 : यह फेफड़ों के कैंसर का आखरी स्टेज होता है, जिसमें कैंसर दोनों फेफड़ों में फैलता है। 

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स्मॉल सेल फेफड़े का कैंसर (Small Cell Lung Cancer)

डॉक्टर मनीष साहू बताते हैं कि स्मॉल सेल्स नॉन सेल कैंसर की तुलना में अधिक खतरनाक होते हैं। इसमें नॉन स्मॉल कैंसर की तरह स्टेज होते हैं। स्टेज-2ए तक सर्जरी करना संभव होता है, लेकिन इस स्टेज के बाद डॉक्टर्स को इलाज करने में परेशानी होती है। 

फेफड़ों के कैंसर का लक्षण (Lung Cancer symptoms)

  • सीने में परेशानी और दर्द होना।
  • कभी खत्म ना होने वाली खांसी, जो समय के साथ बढ़ती जाती है। 
  • सांस लेने में परेशानी
  • सांस लेने में घरघराहट की आवाज आना।
  • खून के साथ बलगम की शिकायत होना।
  • भूख ना लगना।
  • निगलने में परेशानी होना।
  • फेफड़ों में  सूजन और जकड़न
  • वजन कम होना।
  • थकान महसूस होना।

गंभीर लक्षण 

  • खांसते समय खून मुंह से खून आना
  • एडवांस स्टेज आने पर फेफड़ों में काफी तेज दर्द होना।
  • छाती में फ्लूइड होना।

इन लक्षणों को भूलकर भी नजरअंदाज ना करें। लंग्स कैंसर के लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर्स से संपर्क करें।  

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फेफड़े के कैंसर का कारण (Causes of Lung Cancer)

फेफड़ों का कैंसर शरीर में मौजूद विषाक्त पदार्थों के कारण होता है। खासतौर पर सिगरेट और सिगार पीने वालों को लंग्स कैंसर का खतरा ज्यादा होता है। व्यक्ति को फेफड़ों के कैंसर का खतरा तब तक रहता है, जब तक व्यक्ति पूरी तरह से धूम्रपान ना छोड़ दे। इसके अलावा फेफड़ों के कैंसर होने का कई अन्य कारण हो सकता है।

  • सेकंड हैंड स्मोक (यानी दूसरे लोगों द्वारा स्मोक करना।)
  • वर्तमान या पहले धूम्रपान की आदत होना।
  • अनुवांशिक कारणों से भी फेफड़ों का कैंसर हो सकता है।
  • रेडियो थेरैपी से भी लंग्स कैंसर हो सकता है। 
  • प्रदूषित वातावरण से लंग्स कैंसर का खतरा बढ़ता है।
  • विषाक्त पदार्थों वाले स्थान पर कार्य करने से भी लंग्स कैंसर होने का खतरा रहता है। 
  • रे-डॉन के संपर्क में आने से भी लंग्स कैंसर का खतरा बढ़ता है।
  • प्रदूषित वातावरण में रहना।
  • मानव इम्यूनोडिफीसिअन्सी वायरस (HIV) के कारण इम्यून सिस्टम का कमजोर होना।

फेफड़ों के कैंसर का निदान (Diagnosis of lung cancer) 

फेफड़ों का कैंसर है या नहीं, इस बात का पता लगाने के लिए डॉक्टर सबसे पहले शारीरिक परीक्षण करता है। शारीरिक टेस्ट में सांस लेने की प्रक्रिया सुनी जाती है, जिसमें पता लगाने की कोशिश की जाती है कि सीने में ट्यूमर है या नहीं। इसके अलावा अन्य टेस्ट के जरिए लंग्स कैंसर का निदान किया जाता है।

  • ब्रोंकोस्कोपी
  • सुई द्वारा
  • थोरेसेंटिस
  • थोरैकोटॉमी

इत्यादि टेस्ट द्वारा फेफड़ों के कैंसर का निदान किया जाता है। 

फेफड़े का कैंसर का इलाज (trearment of Lung Cancer) 

फेफड़ों के कैंसर का इलाज कई तरीकों से किया जाता है। इलाज के लिए कैंसर का प्रकार और ट्यूमर कितनी दूर फैला है। इस बात पर निर्भर करता है। नॉन-स्मॉल सेल फेफड़ों के कैंसर का इलाज सर्जरी, कीमोथेरेपी, रेडिएशन, लक्षित चिकित्सा या फिर इन सभी के संयोजन से किया जाता है। स्मॉल सेल फेफड़ों के कैंसर का आमतौर पर रेडिएशन और कीमो थेरैपी द्वारा किया जाता है। 

सर्जरी : निर्धारित स्टेज तक ही सर्जरी का सहारा लिया जाता है। फेफड़ों के कैंसर में सर्जरी का सहारा तब तक लिया जाता है, जब तक फेफड़ों का कैंसर ज्यादा फैला ना हो। 10 से 35 फीसदी मामलों में लंग्स कैंसर का इलाज सर्जरी द्वारा किया जाता है।

कीमोथेरेपी (Chemotherapy) : कीमोथेरैपी में सर्जरी के साथ-साथ कुछ विशेष दवाओं के सहारे लंग्स कैंसर का इलाज किया जाता है। ये दवाइयां आपको नसों या फिर साधारण रूप से दी जाती हैं।

इसके साथ ही विकिरण और लक्षित चिकित्सा विधि के जरिए लंग्स कैंसर का इलाज किया जा सकता है। 

लंग्स कैंसर से बचाव (Prevention of Lung Cancer) 

  • धूम्रपान का सेवन ना करें।
  • शराब के सेवन से दूर रहें।
  • दर्द होने पर दवाईयां खाएं।
  • समस्या होने पर विश्राम करें।
  • गर्म या ठंडा पैक लगाएं। 
  • एक्सरसाइज और मालिश करें। 
  • सांस लेने में परेशानी होने पर खुली हवाओं में सांस लें। 
  • स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं। 
  • डीप ब्रीथिंग लें। 
  • मेडिटेशन के साथ स्ट्रेचिंग करें।
  • अच्छी नींद लें।

लंग्स कैंसर होने पर क्या खाएं? 

  • लंग्स कैंसर होने पर विटामिन सी युक्त आहार का सेवन करें। अधिक से अधिक फल और सब्जियों का सेवन करें।
  • कैरोटीनॉयड युक्त आहार का सेवन करें। अधिकतर हरी, लाल, नारंगी और पीली सब्जियों में कैरोटीनॉयड युक्त तत्व होता है।
  • तिल के बीज, मछली और समुद्रिक भोजन, अंडे, मांस और साबुत अनाजों में सेलेनियम होता है। लंग्स कैंसर रोगियों के लिए सेलेनियम बहुत ही जरूरी है।
  • करक्यूमिन (Curcumin) युक्त आहार का सेवन करें।
  • सोया युक्त भोजन जैसे - टोफू, टेम्पे (tempeh), सोया दूध और तामारी (सोया सॉस) को अपने आहार में शामिल करें। 
  • मेगा 3 फैटी एसिड आहार का सेवन करें। ट्यूना, सैल्मन, हेरिंग, सार्डिन और तिल के तेल में ओमेगा-3 फैटी एसिड भरपूर रूप से होता है।
 

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