
चारा घोटाला में जेल की सजा काट रहे हैं राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री लालू प्रसाद यादव एक नहीं बल्कि दर्जनों बीमारियों से परेशान हैं। लालू के चिकित्सक डॉ. डी.के. झा का कहना है कि लालू के कई अंग उस तरीके से काम नहीं कर रहें हैं, जिसे तरह से उन्हें करना चाहिए। उन्होंने कहा कि उनकी किडनी 85 प्रतिशत और दिल 50 प्रतिशत क्षमता के साथ काम कर रहा है जबकि उनकी हृदय गति अनियमित है। इसके अलावा लालू दिन में करीब 18 दवाईयां खाते हैं।

लालू डायबिटीज से लेकर हृदय रोग से भी पीड़ित हैं और कुछ वक्त पहले उनका हार्ट वॉल्व भी बदला जा चुका है। रिम्स के पेइंग वार्ड में भर्ती लालू बीपी व शुगर से भी ग्रस्त हैं। लालू यूरीनरी इन्फेक्शन के कारण भी अस्पताल में रहे हैं। इतना ही नहीं लालू क्रोनिक किडनी डिजीज (स्टेज थ्री) के भी मरीज हैं। इसके अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रोस्टेट, हाइपर यूरीसिमिया, पेरियेनल इंफेक्शन, किडनी स्टोन, फैटी लीवर जैसी समस्याओं से पीड़ित हैं।
रिम्स के चिकित्सकों के मुताबिक, लालू के अनियंत्रित ब्लड शुगर के कारण उनके नर्वस सिस्टम पर बुरा असर पड़ा था, जिस कारण वह जब बिस्तर से उठने की कोशिश किया करते थे, तो उन्हें चक्कर आने लगते थे। डॉक्टरों ने इस स्थिति को चिकित्सकीय भाषा में ऑटोनॉमिक न्यूरोपैथी करार दिया था, जिसमें मस्तिष्क की रक्त आपूर्ति कम हो जाती है और मरीज को चक्कर आने लगता है। लालू को हुई इन बीमारियों के बारे में ज्यादातर लोग जानते होंगे लेकिन बहुत से लोग ऐसे भी है, जिनके लिए ये बीमारियां नई है, जिनमें से हम आपको कुछ प्रमुख बीमारियों से जुड़ी कई बातें बताने जा रहे हैं, जिन्हें आपके लिए जानना बेहद जरूरी है।
डायबिटीज
डायबिटीज रोग शरीर में इन्सुलिन हार्मोन के स्रावण में कमी के कारण होता है। डायबिटीज होने के पीछे कई कारण है जिसमें आनुवांशिक, उम्र बढ़ने, मोटापा या फिर तनाव शामिल है। डायबिटीज के दौरान रक्त में ग्लूकोज का स्तर सामान्य से अधिक हो जाता है रक्त कोशिकाएं इस शुगर का उपयोग नहीं कर पाती। अगर ग्लूकोज का बढ़ा हुआ ये लेवल खून में लगातार बना रहे तो शरीर के अंगों को नुकसान होना शुरू हो जाता है। खून में शुगर के रूप में यह ग्लूकोज हमारे शरीर के लिए ईंधन के रूप में काम करता है। खाना खाने के थोड़ी देर बाद जब खाना पच जाता है तब वह ग्लूकोज हमारी रक्त वाहीनियों के अंदर से होते हुए सेल्स द्वारा अवशोषित किया जाता है। उसके बाद ग्लूकोज उन कोशिकाओं के भीतर जाता है जहां इन्सुलिन मौजूद होता है । आहार का सेवन करने के बाद पाचन ग्रंथियां अपने आप ही सही मात्रा में इंसुलिन बना लेती हैं। डायबिटीज के मरीजो में या तो बहुत कम मात्रा में इंसुलिन बनता है या फिर बनता भी नहीं है। इस कारण से हमारे खून में बना ग्लूकोज पेशाब के साथ शरीर से बाहर निकल जाता है और हमारा शरीर अपनी ऊर्जा का स्रोत खो बैठता है।
इसे भी पढ़ेंः मोबाइल के अधिक इस्तेमाल से सिर पर उग रहे सींग, जानें क्या है इसका कारण
हार्ट वॉल्व
हृदय से संबंधित कई बीमारियां हैं, जिसमें से एक हार्ट वाल्व डिजीज भी है। यह परेशानी उस वक्त होती है जब हमारे हृदय का एक या उससे अधिक वॉल्व सही प्रकार से काम नहीं करता है। हमारे ह्रदय में चार वॉल्व होते हैं। इस समस्या से ग्रस्त होने पर हमारे दिल में रक्त का प्रवाह बाधित होता है, जिससे पूरे स्वास्थ पर असर पड़ता है। चार कक्षों वाले हमारे हृदय में वॉल्व का काम एक दिशा में रक्त का प्रवाह बनाए रखना होता है। वॉल्व का काम रक्त को आगे की ओर प्रवाहित करना और पीछे लौटने से रोकना है। हमारे ह्रदय में लगे वॉल्व फोल्ड होने के साथ-साथ बंद भी होते हैं। हार्ट वाल्व का सिकुड़ना या अन्य किसी भी प्रकार की परेशानी पर खून पूरी तरह आगे न जाकर पीछे की तरफ लौटना शुरू हो जाता है, जिससे हमारे दिल की समस्या शुरू हो जाती है।
बीपी
मौजूदा दौर में हाई बीपी कि समस्या एक आम बात हो गई है, जिससे प्रत्येक उम्रवर्ग का व्यक्ति परेशान है। आमतौर पर लोगों को यह एक साधारण बीमारी लगती है लेकिन यह बीमारी इंसान के जीवन के लिए काफी घातक साबित हो सकती है। बीपी कि समस्या तनाव में रहने या परेशान होने के कारण हो सकती है। इसके अलावा खराब खानपान, शारीरिक गतिविधि न करना और बदलती जीवनशैली ने भी ब्लड प्रेशर की समस्या को बढ़ावा दिया है। बीपी की समस्या हार्ट अटैक, डायबिटीज, किडनी फेल्यिर और स्ट्रोक के खतरा जैसी गंभीर बीमारियों को जन्म देती है।
इसे भी पढ़ेंः पीठ, पेट और कमर में तेज दर्द का कारण है गुर्दे की पथरी, जानें लक्षण और बचाव का तरीका
यूरीनरी इंफेक्शन
यूरीनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन को मूत्र मार्ग में संक्रमण यानी की यूटीआई नाम से भी जाना जाता है। मूत्र मार्ग संक्रमण में मूत्र मार्ग का कोई भी हिस्सा प्रभावित हो जाता है, जिस कारण पेशाब करने में दर्द, जलन जैसी समस्या होती है। जब मूत्राशय या गुर्दे में जीवाणु प्रवेश कर जाते हैं और बढ़ने लगते हैं तो यह स्थिति आती है।
क्रोनिक किडनी डिजीज
किडनी के रोगों में क्रोनिक किडनी डिजीज (क्रोनिक किडनी फेल्योर) एक गंभीर रोग है, क्योंकि वर्तमान चिकित्सा विज्ञान में इस रोग को खत्म करने की कोई दवा उपलब्ध नहीं है। क्रोनिक किडनी डिजीज के लम्बे समय तक बने रहने के कारण मरीजों की दोनों किडनियां सिकुड़कर एकदम छोटी हो जाती है और सही ढंग से काम करना बंद कर देती है। इस बीमारी को किसी भी दवा, ऑपरेशन और डायालिसिस से भी ठीक नहीं किया जा सकता है। सी.के.डी. के प्रारंभिक चरण में किडनी धीमे-धीमे काम करती है लेकिन अंतिम अवस्था में पुहंचने के बाद किडनी पूर्ण रूप से काम करना बंद कर देती है। क्रोनिक किडनी डिजीज से बचने के लिए प्राथमिक चरण में उचित दवा और खाने में परहेज से बचाव किया जा सकता है। डायाबिटीज, उच्च रक्तचाप, और पथरी सीकेडी के बढ़ते मामलों के लिए जिम्मेदार है ।
Read More Articles On Miscellaneous in Hindi
How we keep this article up to date:
We work with experts and keep a close eye on the latest in health and wellness. Whenever there is a new research or helpful information, we update our articles with accurate and useful advice.
Current Version