बच्चे जितने प्यारे और क्यूट होते हैं उतने ही नाजुक और भोले भी होते हैं। बच्चों के साथ बहुत ही सावधानीपूर्वक पेश आने की जरूरत होती है। फिर चाहे आप बच्चों को खाना खिलाएं, पानी पिलाएं, उन्हें कपड़े पहनाएं या फिर उन्हें उठाएं। बच्चों के साथ अगर जरा भी जल्दबाजी या लापरवाही की जाए तो उनकी मांशपेशियों में खिचांव आ जाता है। यह चीज अक्सर बच्चों को उठाते वक्त देखी जाती है। बच्चों को उठाते वक्त काफी सावधानी बरतने की जरूरत होती है। बच्चों को उठाते समय ध्यान रखें कि उसके सिर के नीचे आपका हाथ हो। बच्चे की गर्दन बहुत नाजुक और कमजोर होती है ऐसे में अगर उसे उठाते समय जरा सी भी असावधानी बरती जाए, तो बच्चे को नुकसान हो सकता है। साथ ही बच्चों को उठाकर जोर से घुमाएं नहीं। बच्चे को हिलाने से उसके मस्तिष्क में रक्त स्राव हो सकता है यह उसकी मौत का कारण भी हो सकता है। अगर आप अपने बच्चे को नींद से जगाना भी चाहते हैं, तो उसे शेक करने के स्थान पर उसके पैरों में गुदगुदी करें या फिर उसके गाल सहलायें।
इन चीजों का भी रखें ध्यान
ऐसे चुनें शिशु की नैपी
शिशु की नैपी चुनते वक्त भी पेरेंट्स को खास ध्यान रखने की जरूरत होती है। वैसे देखा जाए तो कपड़े की नैपियां शिशु के लिए ज्यादा आरामदायक हो सकती हैं। ये गर्मी और डिस्पोजेबल नैपी पहनने से होने वाले ददोरों (नैपी रैश) से भी बचाएंगी। अगर आपको डायपर पहनाना ही पड़े, तो शिशु को ठंडे वातावरण में रखें और तापमान के अनुसार उचित कपड़े पहनाएं।
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सोचकर पहनाएं ऊनी कपड़े
बच्चों का इम्यून सिस्टम काफी कमजोर होता है। इसलिए उन्हें बीमारियां भी जल्दी घेरते हैं। बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए पेरेंट्स बच्चों को ऊनी कपड़े पहनाते हैं। लेकिन ध्यान रखें कि बच्चे को कई बार ऊनी कपड़ों से ऐलर्जी हो जाती है जिस से उस के शरीर पर रैशेज हो जाते हैं। इसलिए कपड़े तापमान के हिसाब से ही पहनाने चाहिए। बच्चे को सीधा ऊनी कपड़ा पहनाने के बजाय पहले एक सूती कपड़े पहनानी चाहिए।
रोते वक्त चिड़े नहीं
बच्चा जब रोता है तो मां अक्सर यह समझती है कि उसका बच्चा किसी तकलीफ में है। लेकिन हर बार ऐसा नहीं होता। रोना बच्चे के लिए एक अच्छा अभ्यास भी है। हां उसके रोने पर उसे मारना या डांटना नहीं चाहिए, बल्कि प्यार से चुप कराना चाहिए। लेकिन, फिर भी अगर आपको ऐसा लगे कि आपका बच्चा अधिक रो रहा है, तो उसे डॉक्टर तो दिखा लेना चाहिए। वैसे आमतौर पर यही माना जाता है कि बच्चे पेट में तकलीफ होने पर रोते हैं।
शिशु की मालिश करना न भूलें
बच्चे की मालिश सावधानीपूर्ण करनी चाहिए। मालिश से बच्चों का शारीरिक विकास होता है और उसकी हड्डियां मजबूत बनती हैं। बच्चे की मालिश करते समय जोर न लगायें। बच्चे की मालिश हमेशा हल्के हाथ से की जानी चाहिए। जोर लगाकर मालिश करने से बच्चे को नुकसान हो सकता है। मालिश के लिए जैतून का तेल, बादाम का तेल या बेबी ऑयल का इस्तेमाल करना अच्छा रहेगा।
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समय पर कराएं टीकाकरण
बच्चे को सही समय पर सभी टीके लगवाने चाहिए। अगर अस्पताल में प्रसव हुआ है, तो वहीं पर आपको टीकाकरण की सभी जानकारी उसी समय मुहैया करा दी जाती है। इसमें जन्म से लेकर कब-कब कौन सा टीका लगना है इसका रिकॉर्ड रखने के लिए कार्ड भी बनाया जाता है। अगर प्रसव अस्पताल में नहीं हुआ है, तो भी आपको निकट के स्वास्थ्य केंद्र में जाकर रजिस्ट्रेशन करवाना चाहिए।
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