अवसादग्रस्त राष्ट्रों में भारत सबसे आगे

डब्‍लू एच ओ के अनुसार अवसादग्रस्त राष्ट्रों में भारत का नाम सबसे आगे है।
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अवसादग्रस्त राष्ट्रों में भारत सबसे आगे


woman in Depressionविश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा हाल ही में किये गये अध्ययन में यह बात सामने आई है कि दुनिया में सबसे ज्यादा अवसादग्रस्त राष्ट्रों में भारत का नाम आता है। यह अध्ययन डब्‍लू एच ओ के विश्व मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण पहल पर आधारित है और विकासशील और विकसित अर्थव्यवस्थाओं को देखते हुए यह नतीजा निकाला गया है। इसका उद्देश्य इस संशोधन में भाग ले रहे देशों के कितने लोगो की दर आधुनिक युग के दबाव के कारण अवसाद और उसके संबंधित विकारों के जाल में गिर रहे हैं यह देखना है।

 

इस अध्ययन में शामिल 18 देशों से 90000 से अधिक व्यक्तियों की मुलाकात के बाद पाया गया कि जीवन की घटनाओं में प्रमुख अवसादग्रस्तता के प्रकरण का दर भारत में सबसे ज्यादा 35.9% पाया गया। चीन आगेइस श्रेणी में 12 प्रतिशत के साथ सबसे कम श्रेणी में आंका गया। अध्ययन का आधार 18 देशों के व्यक्तियों की औसत आय थी। जो देश इस सर्वेक्षण का हिस्सा थे उनमें चीन, भारत, अमरीका, जापान, ब्राजील, मैक्सिको, स्पेन और दक्षिण अफ्रीका ये शामिल थे।


अध्ययन के लिए नमूना डब्‍लू एच ओ के समग्र अंतरराष्ट्रीय नैदानिक मुलाकात के माध्यम से लिया गया था जिसमें सहभागी व्यक्‍ित एक प्रश्नावली का जवाब देना था। प्रश्नावली की रचना एक व्यक्ती की प्रवृत्ती को देखने के रुप से की गयी थी जिसमें लोगों को उनके प्रमुख अवसादग्रस्तता प्रकरण के लक्षण जैसे भूख और एकाग्रता में कमी, रुची कम होना औऱ हतोत्साहित किया जाने की सतत भावना होना इत्यादी को बतना था।



प्रमुख अवसाद के प्रकरण जीवन शैली का एक परिणाम थे, जिसके लोग अधीन थे। जीवन के लिये लगातार संघर्ष करने की भावना उनमें से ऊर्जा और उत्साह को कम कर रही है। अवसाद के कारण दैनंदिन समस्याएं, जैसे रिश्ते में तनाव और काम से संबंधित परेशानियों के द्वारा शुरु हो सकते है। दिलचस्प बात यह है, की अवसाद और उच्च आय समूह को अधिक प्रभावित करता है।


अवसाद दुनिया भर में लगभग 121 मिलियन लोगों को प्रभावीत कर रहा है और महिलाओं में यह अधिक प्रवण हैं।  18 से 44 साल तक की आयु वर्ग के लोगों के जीवन में यह एक बड़ी बाधा है। इसके अलावा एमडीई से पीड़ित लोग लंबी अवधि के लिए पूरी तरह से सामाज से दूर और यहां तक कि आत्महत्या के लिये प्रेरीत हो सकने के लिये प्रवण होते हैं।


विशेषज्ञों की राय है कि भारत में आमदनी का बढ़ता स्तर और उसके साथ आने वाली चिंताएं अवसादग्रस्तता के प्रकरण के लिए प्रमुख कारक हैं। व्यक्ती लगातार उन्होने प्राप्त किया हुआ सभी कुछ खोने के डर से जूझ रहे हैं, चाहे वह अपने प्रियजनों को खोने का हो या अपने कैरियर को। भारतीय धीरे धिरे न्युक्लियर परिवार की पश्चिमी संकल्पना की अवधारणाओं के हिसाब से ढल रहे हैं। सामाजिक नेटवर्किग साईट की समर्थन प्रणाली का आधार गिरना, व्यक्‍ति की वास्तविक जीवन की पारस्पारिक क्रिया को बंद करता है, और अवसाद एक बेचैनी है, जो धीरे-धीरे आधुनिक भारतियों के एक संख्या के मानस को प्रभावित करती हैं।


डब्ल्यूएचओ के अनुसार, अवसाद दुनिया में विकलांगता का चौथा प्रमुख कारण है। हालांकि, आँकडों में उन के अनुसार परिवर्तन आता रहता है, अगर अवसाद के तरफ समय रहते ध्यान नही दिया गया तो अंततः 2020 तक विकलांगता का यह दूसरा प्रमुख कारण कहलाया जाएगा।

 

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