
दिल्ली के प्रदूषण के बारे में आए दिन आप कोई न कोई खबर पढ़ते होंगे। हाल में एक अध्ययन किया गया जिसमें पाया गया कि दिल्ली में ऐसे लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, जो धूम्रपान नहीं करते हैं (Non Smokers), फिर भी फेफड़ों के कैंसर (Lung Cancer) का शिकार बन रहे हैं। हैरानी की बात ये है कि इनमें से 70% मरीज 50 साल से कम उम्र के हैं। इनमें भी ऐसे लोग बड़ी संख्या हैं, जो 30 साल से भी कम उम्र के युवा हैं और वो धूम्रपान भी नहीं करते। ये आंकड़े डराने वाले हैं, क्योंकि देश की राजधानी दिल्ली में पूरे भारत से लोग नौकरी, रोजगार, व्यापार की तलाश में आते हैं। ऐसे में लंबे समय तक प्रदूषित हवा में सांस लेते रहने के कारण उनमें फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
चिकित्सकों ने अध्ययन करके दी चेतावनी
ये अध्ययन 'सर गंगा राम हॉस्पिटल' और 'लंग केयर फाउंडेशन' के 'सेंटर फॉर चेस्ट सर्जरी' में किया गया है। इस अध्ययन में पिछले 30 सालों के दौरान होने वाली लंग कैंसर सर्जरी को आधार बनाया गया है। चिकित्सकों के मुताबिक वर्ष 1988 में जहां 10 में से सिर्फ 1 मरीज ऐसा होता था, जो धूम्रपान न करने के बावजूद फेफड़ों के कैंसर का शिकार होता था, तो 2018 में ये आंकड़ा 10 में से 5 मरीजों का हो गया है। यानी पहले की अपेक्षा धूम्रपान न करने वालों में फेफड़ों के कैंसर के मामले 50% तक बढ़ गए। इसी अध्ययन से पता चला है कि पिछले 3 सालों में पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं फेफड़ों के कैंसर का ज्यादा शिकार हुई हैं।
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30 साल से कम उम्र के युवा हो रहे हैं शिकार
कुछ सालों पहले तक लंग कैंसर यानी फेफड़ों के कैंसर को 'स्मोकर्स डिजीज' (यानी ये रोग उन्हीं को होता है, जो धूम्रपान करते हैं) माना जाता था, मगर अब इस रोग का शिकार धूम्रपान न करने वाले लोग भी हो रहे हैं। मगर आंकड़े बताते हैं कि आजकल लंग कैंसर का इलाज कराने वाले 70% से ज्यादा मरीजों की उम्र 50 साल से भी कम है और उनमें से ज्यादातर धूम्रपान नहीं करते हैं। ऐसे मरीज जिन्हें 30 साल से कम उम्र में फेफड़ों की सर्जरी करवानी पड़ी, उनमें एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं है, जो धूम्रपान करता हो। इस अध्ययन में उन लोगों को स्मोकर माना गया है, जो लोग पहले धूम्रपान करते थे, मगर अब छोड़ दिया है।
टीबी जैसे लक्षणों से न हों भ्रमित
चिकित्सक बताते हैं कि ऐसा देखा गया है कि युवा लड़के-लड़कियों को शुरुआत में जब फेफड़ों से संबंधित बीमारी होती है, तो डॉक्टरों का ध्यान भी लंग कैंसर की तरफ नहीं जाता है। ऐसे में कई बार महीनों तक उन्हें टीबी की दवाएं दी जाती हैं और इलाज किया जाता है। जांच के बाद जब तक फेफड़ों के कैंसर का पता चलता है, तब तक कैंसर काफी फैल चुका होता है, जिससे इलाज पहले की अपेक्षा ज्यादा कठिन और खर्चीला हो जाता है।
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फेफड़ों के कैंसर के शुरुआती लक्षण
- लगातार खांसी आना जो दो सप्ताह या इससे ज्यादा समय तक ठीक न हो।
- खांसते समय मुंह से खून आना
- खांसते समय मुंह से सीटी जैसी आवाज आना
- सीने में हल्का या तेज दर्द
- सांस लेते समय या खांसते समय सीने में दर्द महसूस होना
- थोड़ा सा भी काम करते हुए थक जाना और सांस लेने में परेशानी महसूस करना
- गले में खराश के कारण आवाज में बदलाव आ जाना
- फेफड़ों के रोग जैसे- निमोनिया, ब्रॉन्काइटिस आदि जल्दी-जल्दी होना
- इसके अलावा हर समय थकान, कमजोरी और आलस भी फेफड़ों के कैंसर का लक्षण हो सकता है।
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