आजकल तेजी से बदलती लाइफस्टाइल और खानपान की आदतों के साथ इनएक्टिव रहने के कारण महिलाओं में पीसीओएस (पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम) एक आम समस्या बन गई है। पीसीओएस के कारण महिलाओं की ओवरीज में छोटी-छोटी सिस्ट बनने लगती हैं। इसका प्रभाव केवल ओवरीज तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि बच्चेदानी (यूट्रस) पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। महिलाओं में पीसीओएस के कारण हार्मोन के असंतुलन की स्थिति बनती है, जिससे बच्चेदानी पर असर पड़ता है। पीसीओएस का प्रभाव कई तरह की समस्याओं का कारण बन सकता है, जिनमें अनियमित पीरियड्स, प्रेग्नेंट होने में समस्याएं और यूटराइन संबंधित बीमारियों का बढ़ता खतरा शामिल है। इस लेख में लखनऊ के मा-सी केयर क्लीनिक की आयुर्वेदिक डॉक्टर और स्तनपान सलाहकार डॉ. तनिमा सिंघल से जानते हैं कि पीसीओएस का बच्चेदानी पर क्या असर पड़ता है।
PCOS का बच्चेदानी पर क्या असर पड़ता है? - What happens to your uterus with PCOS
1. अनियमित पीरियड्स
पीसीओएस में अनियमित पीरियड्स की समस्या हो सकती है। पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम मासिक धर्म को अनियमित कर सकता है, जिससे महिलाओं को हर महीने पीरियड्स नहीं आते या फिर ज्यादा ब्लीडिंग होती है। यह स्थिति गर्भधारण की संभावना को भी कम कर देती है।
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2. एंडोमेट्रियल हाइपरप्लासिया का खतरा
पीसीओएस में हार्मोनल असंतुलन के कारण एस्ट्रोजन का लेवल बढ़ जाता है, जिससे यूट्रस की अंदरूनी परत, जिसे एंडोमेट्रियम कहा जाता है, ज्यादा मोटी होने लगती है, जिसे एंडोमेट्रियल हाइपरप्लासिया कहते हैं। इस स्थिति में बच्चेदानी की परत बढ़ने लगती है, जिससे भविष्य में एंडोमेट्रियल कैंसर का खतरा भी बढ़ सकता है।
3. गर्भधारण में कठिनाई
पीसीओएस की समस्या में गर्भधारण में कठिनाई के साथ-साथ पीसीओएस में गर्भपात का खतरा भी बढ़ जाता है। बच्चेदानी में सिस्ट बनने के कारण ओव्यूलेशन की प्रक्रिया प्रभावित होती है, जिससे ओवरीज से एग्स कम रिलीज होते हैं और एग्स की क्वालिटी भी खराब हो सकती है। इस कारण महिलाएं गर्भधारण नहीं कर पातीं। इसके अलावा, पीसीओएस से महिलाओं में गर्भपात का खतरा भी बढ़ जाता है। समय पर इलाज और सही डॉक्टरी सलाह के माध्यम से इस स्थिति को कंट्रोल किया जा सकता है।
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4. यूटराइन कैंसर का बढ़ता खतरा
पीसीओएस के कारण एस्ट्रोजन का लेवल असामान्य रूप से बढ़ जाता है, जो एंडोमेट्रियम की मोटाई बढ़ने का कारण बनता है। अगर समय पर इसका इलाज न किया जाए, तो यह स्थिति धीरे-धीरे यूटराइन (बच्चेदानी) कैंसर का रूप ले सकती है। इसके लिए पीसीओएस की नियमित जांच और सही समय पर इलाज बेहद जरूरी है।
5. इंफ्लेमेशन
पीसीओएस में महिलाओं के शरीर में इंफ्लेमेशन की समस्या बढ़ जाती है, जो बच्चेदानी पर प्रभाव डालती है। इसके अलावा, इंफ्लेमेशन से यूट्रस में दर्द की समस्या भी हो सकती है।
PCOS का इलाज और सावधानियां
पीसीओएस के प्रभाव से बच्चेदानी की समस्याओं को कम करने के लिए नियमित रूप से डॉक्टर से सलाह लें और समय-समय पर यूट्रस की जांच करवाते रहें। सही डाइट, योग और एक्सरसाइज के माध्यम से इस समस्या को कंट्रोल किया जा सकता है। पीसीओएस के इलाज के लिए हार्मोनल थेरेपी, लाइफस्टाइल में बदलाव और एक्सरसाइज की सलाह दी जाती है।
निष्कर्ष
पीसीओएस एक गंभीर स्थिति है जो न केवल ओवरीज बल्कि बच्चेदानी पर भी गहरा प्रभाव (How does PCOS affect the uterus) डालती है। महिलाओं को इस स्थिति से बचने के लिए सही समय पर डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए और हेल्दी लाइफस्टाइल अपनानी चाहिए। सही इलाज और जागरूकता से पीसीओएस के नेगेटिव इफेक्ट को कम किया जा सकता है और बच्चेदानी की समस्याओं से बचा जा सकता है।
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