चबाने के दौरान होने वाली आवाज नापसंद करने वालों को है ये बीमारी

अगर आपको खाने खाने के दौरान चबाने की आवाज, पालतु जानवरों के चाटने की आवाज या च्विंगम की आवाज से समस्या हो तो आप फोबियाग्रस्त हैं। तुरंत इसका इलाज करवाएं।
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चबाने के दौरान होने वाली आवाज नापसंद करने वालों को है ये बीमारी


रमा शंकर, जानवरों के चाटने के दौरान होने वाली आवाज से काफी इरिटेशन महसूस करते थे। इसके कारण वे दिन में कई बार अपने पालतू कुत्ते पर चिल्ला देते थे। लेकिन जब उनकी ये चिल्लाने की बीमारी ज्यादा हुई औऱ वो लोगों के खाने और चबाने के दौरान भी चिल्लाने लगे तो उनके घर के सदस्यों ने उसे चिकित्सक के पास भेजा। और उनके सदस्यों का ये फैसला बिल्कुल सही था। रमा शंकर को मिसोफोनिया नाम की बीमारी है। रमा शंकर की तरह कई लोगों को चाटने, खाने और किसी को चीज को चबाने के दौरान होने वाली आवाज से, डर लगता है।

मिसफोनिया

मिसोफोनिया- कान में आवाजों का गूंजना मिसोफोनिया कहलाता है। इसको समान्य भाषा में - कान का बजना कहते हैं जिसमें कानों में अचानक घंटी बजने लगती है या कोई आवाज होने लगती है। इसमें खाने से होने वाले आवाज को अधिक शामिल किया गया है। इसमें कई लोगों को सांस लेने के दौरना होने वाली आवाज या पेन की क्लिक करने की आवाज से भी समस्या होती है। ये आवाजें काफी परेशान करने वाली होती हैं। इस रोग से ग्रसित इन आवजों के मौजूदगी में आने से तनाव, गुस्सा और चिड़चिड़ापन महसूस करने लगता है।

 

इसके लक्षण

जिन लोगों को मिसोफोनिया होता है वो च्विंग, स्मैकिंग, स्लरपिंग, स्नीफिंग, स्नीजिंग, गल्पिंग, बर्पिंग, ब्रीथिंग, स्नोरिंग, खांसना, सीटी बजाना, चाटना, आदि आवाजों के संपर्क में आने से गुस्से में आ जाते हैं और चिल्लाने लगते हैं। इसके अलावा ऐसे लोगों को अचानक पसीना आने लगता है और दिल की धड़कनें तेज हो जाती हैं।

 

मीसोफोनिया का उपचार

इस फोबिया के बारे में कम ही लोगों को जानकारी होती है और अभ तक कम आर्टिकल इस पर पब्लिश हुए हैं। इस फोबिया को ठीक करने के लिए मिसोफोनिया मैनेजमेंट प्रोटोकोल की सेवा ली जाती है। इस प्रोटोकोल में 6–12 सप्ताह तक फोबियाग्रस्त मरीज  को तरह-तरह के आाजों के संपर्क में रखकर जांचा जाता है कि उसे किस आवाज से सबसे अधिक समस्या है।

सकेंड ट्रीटमेंट में टिनिटस रीट्रेनिंग थेरेपी का इस्तेमाल किया जाता है। इस ट्रीटमेंट में ईयर-लेवल न्वॉयज़ जेनरेटर और काउंसलिंग का इस्तेमाल किया जाता है। यह काफी फायदेमंद ट्रीटमेंट है और 83% मरीजों को इससे अब तक फायदा हुआ है।

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