आंकड़ों के मुताबिक महिलाओं में 60 फीसदी कैंसर यूटरस या वेजाइना से होते हैं। अगर कम उम्र में ही वैक्सीन लग जाये तो बेटियों को आगे चलकर आप कैंसर से बचा सकते हैं। एचपीवी नाम की वैक्सीन बच्चियों के लिये वरदान हो सकती है। इसे 9 से 26 साल तक की उम्र में लगाया जाता है पर कम उम्र में लग जाने से इसका परिणाम ज्यादा अच्छा रहता है। इस बारे में ज्यादा जानकारी के लिये हमने बात की लखनऊ के डफरिन अस्पताल की प्रमुख चिकित्सा अधीक्षिका और गाइनोकॉलोजिस्ट डॉ सुधा वर्मा से और समझा कि वैक्सीन कब और कैसे हमें कैंसर से बचा सकती है।
एचपीवी वैक्सीन ह्यूमन पैपिलोमावाइरस से सुरक्षा देती है। ये वायरस ज्यादातार सफाई न होने के कारण फैलता है। एचपीवी एक बहुत कॉमन वायरस है। ये 110 से भी ज्यादा तरह का होता है। इनमें से 20 तरह के एचपीवी सबसे खतरनाक माने जाते हैं। मस्से के रूप में भी ये वायरस शरीर में अपनी मौजूदगी दिखाता है। शरीर में इसके अटैक से जगह-जगह मस्से हो जाते हैं। अगर शरीर में ये अटैक करता है तो ये कह पाना मुश्किल होता है कि संक्रमण किसके संपर्क में आने से हुआ है। एचपीवी के अटैक से होने वाले कैंसर को रूप लेने में 5 से 10 साल लग सकते हैं। कोलपोस्कॉपी के जरिये डॉक्टर इसका पता लगाते हैं। अगर सही समय पर इसका इलाज न किया जाये तो कैंसर को फैलने से रोका नहीं जा सकता। इसलिये जिन माता-पिता को अपनी बेटी को बीमारियों से दूर रखना है वो इस वैक्सीन को बेटियों को लगवा सकते हैं। इसकी कीमत 1800 से 2000 के बीच पड़ती है।
यूटरस में दर्द या गांठ तो नहीं (Don't avoid uterus pain)
एचपीवी कई तरह के कैंसर का कारण बन सकता है जिसमें से एक है सवाईकल कैंसर। यूटरस में होने वाले इस कैंसर के होने से शरीर में हॉर्मोनल बदलाव होने लगते हैं। ब्रेस्ट कैंसर के बाद महिलाओं में होने वाला ये दूसरा सबसे बड़ा कैंसर माना जाता है। ये कैंसर ज्यादातर 30 से 40 उम्र की महिलाओं में देखा गया है। तंबाकू, गुटका या धूम्रपान करने से भी ये कैंसर हो जाता है। हालांकि ये एकलौता कारण नहीं है। देर से शादी होना या पीरियड्स जल्दी शुरू होना भी इसके कारण हो सकते हैं। कई बार जेनेटिक कारण से भी ये कैंसर हो सकता है। अगर आपको किसी तरह की गांठ महसूस हो तो तुरंत डॉक्टर के पास जायें। लोगों को ये लगता है कि जब तक दर्द नहीं है तब तक चिंता नहीं है पर ये केवल एक तरह का भ्रम है। आपको यूटरस में दर्द या रक्तस्त्राव, जलन जैसी परेशानी हो तो तुरंत डॉक्टर से मिलें।
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एंटीबॉडी की तरह काम करती है एचपीवी वैक्सीन (Vaccine acts as an antibody)
सवाईकल कैंसर ह्यूमन पैपिलोमावाइरस या एचपीवी से होता है। अगर आप वैक्सीन लगवा लेंगे तो वैक्सीन हमारे लिये एंटीबॉडी का काम करेगी। शरीर में वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बनने से वो वायरस के हमले से सुरक्षा देता है। इससे वायरस के सेल्स आपकी बॉडी पर हमला नहीं कर पायेंगे। सवाईकल कैंसर के अलावा ये वायरस वल्वर कैंसर, जेनिटल वॉर्टस, एनल कैंसर, मुंह और गले के कैंसर के लिये भी जिम्मेदार होता है। इसलिये इनमें से किसी भी कैंसर से बचाव के लिये वैक्सीन जरूरी है।
कौन लगवा सकता है ये इंजेक्शन? (Who can be vaccinated)
इस वैक्सीन को 9 साल से 26 साल तक की उम्र में लगवाया जा सकता है। हालांकि डॉक्टर ये मानते हैं कि जितनी छोटी उम्र में वैक्सीन लगे उतना अच्छा है। इस वैक्सीन को 9 से 14 साल की उम्र में 2 डोज़ में लगाया जाता है। वहीं 15 से 26 साल में इसकी 3 डोज़ दी जाती है। ये वैक्सीन 26 से 45 साल की उम्र में भी दी जा सकती है पर वो केवल डॉक्टर तय करते हैं। बढ़ती उम्र में वैक्सीन का उतना असर देखने को नहीं मिलता। इसलिये कोशिश करें कि ये वैक्सीन कम उम्र में ही लग जाये।
एचपीवी वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स नहीं है (No side effects of HPV vaccine)
ये वैक्सीन पूरी तरह सेफ मानी जाती है। लोग छोटी बच्चियों के मामले में इसे लगवाने से डरते हैं पर ये बिल्कुल सेफ है। हर वैक्सीन को लगने के बाद हल्का बुखार या थोड़े समय का दर्द आम बात है। एक या दो दिन आपको दर्द हो सकता है फिर वो ठीक हो जायेगा। ये वैक्सीन सैक्शुअल डिसीज़ से बचाता है इसलिये लोगों को लगता है कि इसे बच्चों को नहीं देना चाहिये। ये केवल एक भ्रम है। इस वैक्सीन को देने की सही उम्र 9 से 11 साल ही मानी जाती है। इससे भविष्य में कैंसर की संभावना कम हो जाती है। ये वैक्सीन आपको सभी सरकारी व प्राइवेट अस्पतालों में मिल जायेगी। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर भी अब ये वैक्सीन उपलब्ध होती है। आप चाहें तो वहां जाकर इसे लगवा सकते हैं। वैक्सीनेशन कार्ड ले जाना न भूलें। अगर न हो तो वहीं बनवा लें।
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मेंसट्रुअल हाईजीन का ध्यान रखें लड़कियां (Menstrual Hygiene)
छोटी बच्चियों को बचपन से ही अच्छी हाईजीन की आदत डालनी चाहिये। जब वे अपना ध्यान खुद रखने लगें तो उन्हें समझायें कि इनर पॉर्टस में किसी तरह की परफ्यूम या सुगंध न लगायें। नहाते समय इनर पॉर्टस को हल्के साबुन से साफ करें। इसके साथ ही कॉटन अंडरवियर ही पहनें। लेस या अन्य मटेरियल को पहनने से रैशेज़ हो सकते हैं। गर्मियों के मौसम में दिन में 2 बार इनर गॉर्मेंट्स बदलने चाहिये। कई बार पसीने से भी वायरस अटैक करते हैं। इनर पॉर्टस में खतरा ज्यादा होता है क्योंकि वहां पसीना ज्यादा आता है। बच्चियों को सिखाएं कि हमेशा अपने इनर पॉर्टस ड्राय रखें। इसके साथ ही बॉथरूम का इस्तेमाल करने के बाद टॉयलेट टिशू का भी इस्तेमाल करें।
पीरियड्स में इंफेक्शन का ज्यादा खतरा होता है (Infection is more during periods)
पीरियड्स के दौरान भी सावधानी बरतने की जरूरत है। दिन में कई बार सेनेटरी पैड बदलें। इस दौरान इंफेक्शन का ज्यादा खतरा रहता है। कई घरों में आज भी पैड इस्तेमाल नहीं किया जाता। आप ऐसी गलती न करें। अगर पीरियड्स के दौरान साफ-सफाई पर पूरा ध्यान दिया जाये तो आप कई तरह की बीमारियों से अपनी बेटी को बचा सकती हैं। पीरियड्स के दौरान स्किन सेंसटीव हो जाती है और संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। उससे बचने के लिये शरीर को साफ रखें। इस दौरान हॉर्मोन में भी बदलाव होता है जिसका असर आप पर पड़ सकता है इसलिये डाइट पर ध्यान दें और कोई भी बदलाव महसूस होने पर डॉक्टर से सलाह लें। टीनएजर्स बहुत सारे मिथ से घिरे रहते हैं। उनके मन में कई तरह की शंकायें होती है। इसलिये आपको उनसे समय-समय पर बात करते रहने की जरूरत है।
किसी भी बीमारी का इलाज तभी संभव है जब वो समय पर पकड़ में आये। ऐसी वैक्सीन जरूर लगवायें जो आपको किसी बीमारी से सुरक्षा देती हो।
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