
रंगों का हमारी जिंदगी में गहरा अर्थ है। इनके बिना जीवन सूना और उदासी भरा हो जाता है। इनमें हमारी भावनाओं और मानसिक स्थिति को प्रभावित करने की क्षमता है। रंगों के द्वारा हम चिन्हों और प्रकाश जैसी चीजों के बारे में सूचनाएं भी हासिल करते हैं। अगर यह रंग नजर नहीं आएं तो आधुनिक जीवन की किसी भी सुविधा का मजा नहीं उठा सकते। जिन लोगों को रंग नजर नहीं आते यानी वर्णांधता (कलर ब्लाइंडनेस) होती है उनके लिए रंगों को पहचानना काफी मुश्किल होता है।
हालांकि इस स्थिति को वर्णांधता कहते हैं लेकिन तकनीकी रूप से यह कोई अंधता नहीं है। बल्कि यह नीले, पीले या लाल हरे रंग को देख पाने की एक कमी होती है। वर्णांधता में आमतौर पर लाल और हरे को नहीं देख पाने की कमी होती है। इसमें लोग लाल व हरे रंग के अवयवों को नहीं देख पाते हैं। वे लाल, हरे या पीले फिर अन्य रंगों के साथ भ्रमित हो जाते हैं।
बच्चों में रंग पहचानने की कमी के लक्षण - Symptoms Of Color Vision Deficiency In Children
वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. गगनजीत सिंह गुजराल कहते हैं, "आमतौर पर वंशानुगत तौर पर मिलने वाली वर्णांधता का बचपन में ही पता चल जाता है। अगर आपका बच्चा नीले या पीले या फिर लाल और हरे रंग को नहीं पहचान पाता है तो यह पहला लक्षण है कि आपका बच्चा कलर ब्लाइंड हो सकता है। ऐसे में बच्चा रंगों के आधार पर चीजें अलग कर पाने में असमर्थ होता है। इसलिए एक अभिभावक के रूप में आपको उसी समय बच्चे की रंगों को समझने की क्षमता को समझना होगा जब वह किसी चीज के रंग को पहचानना सीख रहा होता है। इसके अलावा अगर अचानक से रंग पहचानने की क्षमता कम हो जाती है तो यह किसी स्वास्थ्य समस्या, जैसे मोतियाबिंद का संकेत हो सकता है।"
कलर ब्लाइंडनेस (वर्णांधता) के कारण क्या हैं - What Causes Color Blindness
मुख्यतया वर्णांधता एक जेनेटिक स्थिति है जो अभिभावकों से बच्चों में आती है। लेकिन कुछ मामलों में यह समस्या अल्जाइमर, पार्किसंस जैसी बीमारियों या फिर विषाक्त पदार्थो के सेवन से ऑप्टिक नर्व या रेटिना को नुकसान पहुंचने पर बाद में भी हो जाती है। जैसा कि पहले भी बताया गया है कि लाल और हरे रंग को नहीं पहचानने की कमी आमतौर पर विरासत में ही मिलती है और क्रोमाजोम से जुड़े जींस पर निर्भर करती है।
कलर ब्लाइंडनेस (वर्णांधता) की पहचान - Diagnosis Of Color Vision Deficiency
वर्णांधता की पहचान नेत्र रोग विशेषज्ञ और ऑप्टेमेट्रिस्ट कर सकते हैं। वे विभिन्न रंगों के बिंदुओं के विशेष चार्ट का प्रयोग करते हैं। जिन लोगों को कलर ब्लांइडनेस होती है उन्हें इन बिंदुओं को पहचानने में खासी मुश्किल आती है। अगर कोई व्यक्ति कलर ब्लाइंड पाया जाता है तो फिर उसकी पूरी जांच होती है और पता लगाया जाता है कि इस कमी का स्वरूप क्या है।
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कलर ब्लाइंडनेस (वर्णांधता) के उपचार - Treatment For Color Blindness
अनुवांशिक तौर पर हुई वर्णांधता का तो कोई इलाज नहीं है लेकिन अधिकतर लोग इसे समायोजित करने के तरीके ढूंढ़ लेते हैं। जिन बच्चों में कलर ब्लाइंडनेस होती है उन्हें कक्षाओं में भी कुछ मदद की जरूरत होती है। अगर वर्णांधता से रोजमर्रा के कामों में दिक्कतें आती हैं तो आप वे कॉन्टेक्ट लेंसेज और ग्लासेज लगा सकते हैं जो रंगों के भेद करने में सहायक होते हैं। इसके अतिरिक्त वर्णांधता के साथ जीने के लिए आप विजुअल एड्स, ऐप्स और अन्य तकनीक का भी सहारा ले सकते हैं।
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महत्वपूर्ण यह है कि बच्चों पर इस का विपरीत प्रभाव कम करने के लिए उन्हें हर उस गतिविधी में शामिल किया जाना चाहिए जो उन्हें मानसिक रूप से लाभ पहुंचाए या उनका उपचार करे। उनके अनुरूप करियर के बारे में भी उन्हें उचित परामर्श दिया जाना उतना ही महत्वपूर्ण है। हर दिन इस मुश्किल से जूझ रहे लोगों को इसकी पूरी जानकारी दी जानी चाहिए, इसके प्रभावों के बारे में गाइड किया जाना चाहिए और मदद करने वाली तकनीकों के बारे में समझाया जाना जरूरी है ताकि उन्हें इसके साथ जीवन गुजारने में आसानी हो।
इनपुट्स: डॉ. गगनजीत सिंह गुजराल, वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ, शार्प साईट (ग्रुप ऑफ़ आई हॉस्पिटल्स), नई दिल्ली!
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