बच्चों की आंखों पर कैसे असर डालती है मोबाइल से निकलने वाली नीली रोशनी, जानें कैसे बचाएं बच्चों को इससे?

बच्चों के हाथ में मोबाइल देकर और दिनभर टीवी दिखाकर आप खुद ही उनकी आंखों की रोशनी के दुश्मन बन रहे हैं। जानें कितनी देर देखना चाहिए बच्चों को स्क्रीन।
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बच्चों की आंखों पर कैसे असर डालती है मोबाइल से निकलने वाली नीली रोशनी, जानें कैसे बचाएं बच्चों को इससे?


बच्चों को चुप कराना है, तो मोबाइल में वीडियो चलाकर दे दिया। बच्चा शैतानी कर रहा है, तो टीवी चलाकर सामने बिठा दिया। बच्चा जिद कर रहा है तो मोबाइल में गेम लगाकर थमा दिया। ये आदतें लगभग हर उस घर में पाई जाती हैं, जहां छोटे बच्चे हैं। मां-बाप अक्सर अपनी जान छुड़ाने के लिए इन स्क्रीन वाले गैजेट्स को थमा देते हैं, जिससे बच्चा शांत हो जाता है और उसका सारा ध्यान मोबाइल, टीवी, लैपटॉप, टैबलेट, कंप्यूटर की स्क्रीन पर लगा रहता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ऐसा करके आप अपने ही बच्चों की आंखों को खराब कर रहे हैं? जी हां, शायद आप इस बात से अंजान हैं कि सभी डिजिटल डिस्प्ले वाले गैजेट्स से एक खास नीली रोशनी निकलती है, जो आंखों को नुकसान पहुंचाती है। इसका असर बड़ों की आंखों पर भी होता है। मगर सबसे ज्यादा ये बच्चों की आंखों के लिए खतरनाक होती हैं। आइए आपको बताते हैं ऐसा क्यों होता है।

blue light mobile kids

बच्चों के आंखों की रेटिना को खराब कर सकता है मोबाइल

बच्चा जब जन्म लेता है, तो उसके अंगों का सारा विकास गर्भ में ही नहीं हो जाता, बल्कि धीरे-धीरे उसके शरीर और अंगों का विकास होता रहता है। इसलिए आमतौर पर जन्म के बाद 18 साल तक की उम्र को बच्चों के विकास की उम्र माना जाता है। ऐसे में छोटे-छोटे बच्चों को जब आप मोबाइल फोन दे देते हैं, तो उससे निकलने वाली नीली किरणें विकसित हो रहे रेटिना और कॉर्निया को डैमेज कर सकती हैं। रिसर्च बताती हैं कि इस ब्लू लाइट में ज्यादा देर तक देखने से आंखों की रेटिना की लाइट सेंसिटिव सेल्स नष्ट होने लगती हैं। इससे लंबे समय में मोतियाबिंद जैसा रोग या अंधापन भी हो सकता है।

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कई बीमारियों का बना सकता है शिकार

मोबाइल में देखने के दौरान बच्चे हों या बड़े, आंखें कम झपकाते हैं। आंखें कम झपकाने के कारण आंखों में रूखापन हो जाता है और थकान महसूस होने लगती है। इसके कारण कम उम्र में ही बच्चों को सिरदर्द की समस्या, नींद न आने की समस्या, हार्मोन्स में असंतुलन की समस्या हो सकती है। हार्मोन्स में असंतुलन और नींद में कमी धीरे-धीरे बच्चों को दिमागी रूप से कमजोर बनाता है और शरीर का वजन भी बढ़ा सकता है। इसलिए बच्चों को मोबाइल फोन देकर दरअसल आप उनकी सेहत के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।

mobile using kids

बच्चों को कितनी देर देखने दे सकते हैं टीवी/मोबाइल?

बच्चों को स्क्रीन वाले गैजेट्स जैसे- मोबाइल, टीवी, लैपटॉप, टैबलेट आदि के इस्तेमाल की लिमिट तय करना बहुत जरूरी है। इसलिए आप नीचे बताई गई बातों का सख्ती से पालन करें।

  • 18 महीने यानी डेढ़ साल से कम उम्र के बच्चे को किसी भी स्क्रीन वाले गैजेट का इस्तेमाल न करने दें।
  • 18 महीने से 24 महीने यानी डेढ़ से 2 साल के बच्चों को आप वीडियो कॉल के लिए थोड़ा समय स्क्रीन दिखा सकते हैं। इसके अलावा कुछ देर दूर बैठकर टीवी देखने की इजाजत दे सकते हैं।

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  • 2 से 5 साल की उम्र के बच्चों को पूरे दिन में 1 घंटे के लिए स्क्रीन वाले गैजेट्स इस्तेमाल करने दें।
  • 5 से 8 साल के बच्चों को दिन में 2 घंटे से ज्यादा स्क्रीन वाले गैजेट्स का इस्तेमाल न करने दें।
  • 8 साल से बड़े बच्चों और वयस्कों को भी एक दिन में 3-4 घंटे से ज्यादा स्क्रीन गैजेट्स का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
  • अगर कोई बच्चा ऑनलाइन क्लास कर रहा है, पढ़ाई के सिलसिले में रिसर्च कर रहा है या वयस्क वर्क फ्रॉम होम कर रहा है, तो उसे स्क्रीन वाले गैजेट के सामने ज्यादा देर बैठना होगा। इसलिए ऐसी स्थिति में ब्लू लाइट फिल्टर वाला चश्मा पहनकर ही इन स्क्रीन गैजेट्स का इस्तेमाल करना चाहिए।

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