Congenital Heart Defect Awareness Week 2021: एक 8 माह के एक शिशु को सांस लेने में कठिनाई थी, उसकी धड़कन बहुत तेज चल रही थी और यहां तक कि वह खाना भी नहीं खा पा रहा था। यही वजह थी कि उसे बेहद गंभीर स्थिति में इमरजेंसी में अस्पताल लाया गया। कार्डियक जांच करने पर पता चला कि उसके हृदय की मुख्य नलिका संकरी हो गई थी (कोआर्कटेशन ऑफ एओर्टा)। यही नहीं, उसके फेफड़ों पर अत्यधिक दबाव था और उसे कार्डियक फेलियर हुआ था। उसके लोअर लिंब का ब्लड प्रेशर रिकॉर्ड ही नहीं हो पा रहा था। ऐसी स्थिति में उसका उपचार कैसे किया जाता? क्या संकरी नलिका को खोलने के लिये सिर्फ सर्जरी ही एकमात्र विकल्प है या फिर इसे कम से कम चीर-फाड़ वाली विधियों से किया जा सकता है?
जवाब है- 'हां', उपचार विकल्प सर्जरी या सर्जरी के बिना भी उपलब्ध हैं, और वह है संकरी नलिकाओं का बलून डाइलेटेशन करना। उस शिशु के कोआर्कटैशन ऑफ एओर्टा का सफल बलून डाइलेटेशन हुआ और फिर इस प्रक्रिया के बाद उसका हृदय ठीक हो गया। शिशुओं में होने वाले जन्मजात हृदय रोग (Congenital Heart Defect) के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल 7 फरवरी से 14 फरवरी तक Congenital Heart Defect Awareness Week मनाया जाता है। इस खास सप्ताह में जन्मजात हृदय रोग के बारे में आपको जागरूक करने के लिए हमने शिशु हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. मुनेश तोमर से विस्तार से बात की, उन्होंने कई जरूरी जानकारी साझा की है।
जन्मजात हृदय विकार क्या है: What Is Congenital Heart Disease
शिशु हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. मुनेश तोमर कहती हैं, जन्मजात हृदय विकार (Congenital Heart Disease) जन्म से ही हृदय और उसकी प्रमुख नलिकाओं की संरचना में मौजूद विकृति होती है। जन्म लेने वाले प्रत्येक 125 शिशुओं में से एक को (प्रत्येक 1000 में से 8 से 10 को) जन्मगत हृदय विकृति होती है, जो संयोगवश सबसे आम जन्मगत विकृति है। इनमें से कई बच्चों का उपचार हो सकता है, जिससे लंबी अवधि में रोग का निदान हो जाता है और अच्छे परिणाम मिलते हैं। ये मुख्य रूप से नवजात शिशु में दिखाई देते हैं, लेकिन हमारे देश में, पहली बार अनियंत्रित जन्मगत हृदय विकृति से पीड़ित बड़े बच्चों को देखना कोई असामान्य बात नहीं है। जन्मगत हृदय विकृति की देर से होने का प्रमुख कारण स्वास्थ्य जागरुकता की कमी और स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता का अभाव है।
इन विकृतियों में से लगभग 30 प्रतिशत विकृतियों को नवजात की शुरुआती अवस्था में हस्तक्षेप की अत्यधिक जरूरत है, ऐसा ना होने से केवल जन्मगत हृदय विकृति भारत में शिशु मृत्यु दर का एक सामान्य कारण है और शिशु मृत्यु दर में इसका लगभग 10 प्रतिशत का योगदान है।
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Congenital Heart Disease: कैसे पता लगायें कि किसी बच्चे को हृदय की विकृति है?
1. नीलेपन (सायनोसिस) का इतिहासः सायनोसिस एक गंभीर हृदय रोग है, जिसका तुरंत उपचार जरूरी होता है।
2. बार-बार छाती में संक्रमण बच्चे में हृदय रोग का लक्षण हो सकता है। यह संक्रमण होने पर बुखार, तेज सांस, सीने का भीतर की ओर जाना जैसी तकलीफें होती हैं, जिन्हें ठीक करने के लिये आमतौर पर एंटीबायोटिक्स दिये जाते हैं।
3.क्या बच्चे को खाना खाने में समस्या होती है और उसका वजन ठीक से नहीं बढ़ रहा है? स्तनपान करने में असमर्थ होना या दूध पीते समय पसीना आना जन्मगत हृदय रोग का शुरूआती लक्षण है।
4.बड़े बच्चों में तेज धड़कन (हार्टबीट) की शिकायत आती है, वे ज्यादा एक्सरसाइज भी नहीं कर पाते हैं, जल्दी थक जाते हैं और कभी-कभी चक्कर आने (बेहोश होने) की समस्या भी सामने आती है। हाई ब्लड प्रेशर या असामान्य हार्टबीट वाले बच्चों के हृदय की विस्तृत जाँच शिशु हृदय रोग विशेषज्ञ द्वारा की जानी चाहिये।
पेरेंट्स को क्या करना चाहिये?
संदेहास्पद जन्मगत हृदय विकृति वाले बच्चे के हृदय की विस्तृत जांच शिशु हृदय रोग विशेषज्ञ द्वारा होनी चाहिये। हृदय की विस्तृत जांच रोग नियंत्रण की योजना बनाने और मध्यस्थता का समय निर्धारित करने के लिये अनिवार्य है।
कुछ बच्चों को केवल चिकित्सकीय स्थिरता की जरूरत होती है, जबकि अधिकांश को हार्ट सर्जरी के रूप में मध्यस्थता की आवश्यकता होती है (ओपन हार्ट सर्जरी/क्लोज्ड हार्ट सर्जरी) या नॉन-सर्जिकल इंटरवेंशन (परक्यूटेनियस इंटरवेंशंस, जैसे एएसडी/पीडीए/एवी फिश्चुला को यंत्र से बंद करना, एओर्टिक वॉल्व/पल्मोनरी वॉल्व/कोआर्कटेशन ऑफ एओर्टा का बलून डाइलेटेशन, कोआर्कटेशन ऑफ एओर्टा/पल्मोनरी आर्टरी की स्टेंटिंग, आदि)।
कितना लंबा जीवन जीते हैं जन्मगत हृदय विकृति वाले लोग?
चिकित्सकीय देखभाल और उपचारों में बहुत उन्नति होने से हृदय की विकृतियों वाले बच्चे अधिक लंबा और स्वस्थ जीवन जी रहे हैं। उनमें से कई अब वयस्क हो चुके हैं। जन्मगत हृदय विकृति वाले बच्चों और वयस्कों के लिये हृदय के डॉक्टर को जीवनभर नियमित रूप से दिखाना महत्वपूर्ण है।
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भारत में उपचार की सुविधाएं
पिछले तीन दशकों में भारत में जन्मगत हृदय विकृति के लिए सुविधाओं में काफी उन्नति हुई है। कई केंद्र जन्मगत हृदय विकृति वाले बच्चों के लिए उपचार सुविधाओं के साथ आए हैं। महत्वपूर्ण जन्मगत विकृतियों वाले नवजात शिशु का अच्छे परिणाम के साथ इन केंद्रों पर सफलतापूर्वक इलाज किया जा रहा है। दुख की बात यह है कि इनमें से अधिकांश केंद्र दिल्ली और भारत के दक्षिणी भाग में स्थित हैं और मुख्य रूप से निजी क्षेत्रों में हैं।
दुर्भाग्य से कुछ सबसे अधिक आबादी वाले राज्यों जैसे कि उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, असम, उड़ीसा के पास सीएचडी से पीड़ित इन छोटे बच्चों के इलाज के लिए कोई संसाधन नहीं है। बहुत कम सरकारी अस्पतालों में जन्मगत हृदय विकृति वाले छोटे बच्चों के ऑपरेशन की सुविधा है।
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लेकिन सरकार हृदय सहित जन्मगत विकृतियों के लिए सहायता प्रदान करने हेतु कई योजनाएं लेकर आई है। फरवरी 2013 में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) शुरू किया गया। इसमें 0 से 18 वर्ष की आयु के सभी बच्चों की स्क्रीनिंग करना अनिवार्य है ताकि कार्डियक डिफेक्ट्स के साथ ही जन्म संबंधी दोषों की शुरुआत में पहचान की जा सके और उसका इलाज संभव हो सके।
हृदय दोष वाले बच्चों सहित भारत के लोगों के चिकित्सा उपचार के लिए एक और बहुत महत्वपूर्ण योजना ‘आयुष्मान भारत योजना’ है, जिसे सितंबर 2018 में शुरू किया गया था। समय की जरूरत है कि अब लोगों को समस्या, इसकी उपचार सुविधाओं और समय पर इलाज के अच्छे परिणाम के बारे में जागरूक किया जाए।
इनपुट्स: डॉ. मुनेश तोमर, शिशु हृदय रोग विशेषज्ञ, एलएलआरएम मेडिकल कॉलेज, मेरठ
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