हृदयरोगियों को अनहोनी से बचने के लिए नियमित तौर पर डाक्टरी जांच की सलाह दी जाती है। एक हालिया शोध में हृदयरोग के मरीजों को सलाह दी गई है कि वे समय-समय पर डिप्रेशन की भी जांच कराते रहें।
अमेरिकन साइकाइट्रिक एसोसिएशन द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार हृदयरोग के मरीजों में डिप्रेशन की शिकायत होना आम बात है। इसमें कहा गया है कि मूड डिजार्डर के लक्षण पाए जाने पर मरीज को जल्द से जल्द मनोवैज्ञानिक सहायता लेनी चाहिए।
कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी की प्रमुख शोधकर्ता एरिक फ्रोलिशेर के मुताबिक हृदयरोगियों के लंबे समय तक डिप्रेशन से पीडि़त होने के स्पष्ट साक्ष्य मिले हैं। येल यूनिवर्सिटी की एक अन्य शोधकर्ता जूडिथ लिचमैन का कहना है कि सामान्य मरीजों की अपेक्षा हार्टअटैक के मरीजों के डिप्रेशन से पीडि़त होने की संभावना तीन गुना तक बढ़ जाती है।
हृदयरोगियों में पाए जाने वाले डिप्रेशन के उपचार के लिए व्यवहारगत चिकित्सा के साथ ही शारीरिक क्रियाशीलता को भी कारगर बताया गया है। हालिया शोध में कहा गया है कि डिप्रेशन के पीडि़तों को दवाओं के साथ ही खान-पान में सुधार और कसरत पर भी ध्यान देना चाहिए।
डिप्रेशन को यूं तो हम गंभीरता से नहीं लेते। हम इसे रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा मान लेते हैं। लेकिन, एक ताजा शोध इस बात की तस्दीक करता है कि नियमित रूप से अवसादग्रस्त रहने वाले व्यक्तियों को कोरोनेरी हार्ट डिजीज यानी सीएचडी होने का खतरा काफी बढ़ जाता है।
करीब दो दशक से चले आ रहे इस वाइटहॉल टू स्टडी में यह बात कही गयी है कि जिन लोगों को पहले और दूसरे मूल्यांकन में अवसाद की समस्या थी, उन लोगों को हृदय रोग होने का खतरा अधिक नहीं था, हालांकि जिन लोगों को तीसरे मूल्यांकन पर भी डिप्रेशन की समस्या पायी गयी, उनके हृदय रोग से पीडि़त होने का खतरा काफी अधिक रहा।
यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन, यूके के एपिडेमिओलॉजी के डॉक्टर एरिक ब्रूनर की टीम ने पांच बरस से अधिक के अवलोकन चक्र के बाद यह नतीजा पाया कि अवसाद के कारण सीएचडी के मरीजों में दवाओं के प्रति प्रतिक्रिया करने की क्षमता भी धीमी हो जाती है।