Healthcare Heroes Awards 2022: आशा वर्कर मटिल्डा कुल्लू जिनके प्रयास से पूरे गांव ने लगवाया कोविड का टीका

आशा वर्कर मटिल्डा कुल्लू को अपने गांव की स्वास्थ्य व्यवस्था बदलने के लिए फोर्ब्स इंडिया ने सबसे पावरफुल महिलाओं की लिस्ट में शामिल किया था।
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Healthcare Heroes Awards 2022: आशा वर्कर मटिल्डा कुल्लू जिनके प्रयास से पूरे गांव ने लगवाया कोविड का टीका


कैटेगरी:  डिस्ट्रेस रिलीफ

परिचय: मटिल्डा कुल्लू

योगदान: आदिवासी समुदाय से आने वाली मटिल्डा कुल्लू ने अपने गांव की स्वास्थ्य व्यवस्था ठीक करने के लिए कई बड़े काम किए हैं।

नॉमिनेशन का कारण: मटिल्डा कुल्लू बेहद पिछड़े इलाके के एक आदिवासी समुदाय की वो महिला हैं, जिन्होंने अपने गांव की स्वास्थ्य व्यवस्था को ठीक करने के लिए कई बड़े काम किए। इसी कारण इनका नाम फोर्ब्स इंडिया की लिस्ट में सबसे पावरफुल महिलाओं में आया था। 

मटिल्डा कुल्लू उड़ीसा के सुंदरगढ़ जिले में एक बेहद पिछड़े इलाके से आती हैं, जहां आदिवासी समुदाय बसता है। आधुनिक सुविधाओं खासकर शिक्षा, स्वास्थ्य आदि के नाम पर ये इलाका अभी भी काफी पीछे है। ऐसे में अपने गांव की स्वास्थ्य व्यवस्था को पूरी तरह ठीक करने का प्रण लेकर मटिल्डा कुल्लू ने करीब 15 साल पहले आशा (Accredited Social Health Activist) के रूप में काम करना शुरू किया। कोविड महामारी के आने से भारत का हेल्थ केयर सिस्टम पूरी तरह हिल गया। मटिल्डा कुल्लू बताती हैं कि पहले कोविड के बारे में उन्हें और उनके गांव में किसी को कुछ नहीं पता था। ट्रेनिंग मिलने के बाद उन्होंने इसके बारे में गांव के लोगों में जागरूकता फैलाना शुरू किया। कोविड के लक्षणों के बारे में लोगों को जानकारी देना, साथ ही लोगों के लक्षणों पर ध्यान रखना और बाहर के गांवों से लक्षण ग्रस्त कौन कौन-कौन लोग आ रहे हैं इस बारे में रिकॉर्ड बना कर रखना भी इनके कामों में शामिल था। अगर कोई कोविड संक्रमित हो जाता और उसकी सेहत खराब हो रही होती तो उन्हें अस्पताल तक लेकर जाना भी इनका काम था।

matilda kullu

लोगों को कोविड वैक्सीन लगवाने के लिए किया प्रेरित

कोविड के दौरान मटिल्डा के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी लोगों को वैक्सीन लगवाने के लिए तैयार करना। इसके लिए उन्होंने खुद पहला टीका लगवाया और फिर 60 साल से ऊपर के लोगों को टीका लगवाने का महत्त्व समझाया। बहुत से लोग बुजुर्गों का यह सोच कर ख्याल नहीं रखते थे कि वह आज नहीं तो कल मर ही जायेंगे। इस धारणा में बदलाव लाना और वैक्सिन की भूमिका समझाना आसान नहीं था। बहुत से लोग वैक्सिन से या तो मृत्यु होने या साइड इफेक्ट्स की आशंका से चिंतित थे। उनको मटिल्डा कुल्लू ने समझाया कि वैक्सीन लगवाने के बाद वो खुद सुरक्षित हैं। बहुत से लोग वैक्सीनेशन सेंटर नहीं आ पा रहे थे इसलिए उनके घर जा कर उन्हें टीका लगाना पड़ा। मटिल्डा की अथक मेहनत का ही नतीजा रहा कि आज उनके गांव के 18 साल से ऊपर का हर व्यक्ति वैक्सीन लगवा चुका है। हालांकि इस बीच मटिल्डा खुद भी कोविड संक्रमित हुई और उनका ऑक्सीजन लेवल भी कम हुआ। लेकिन वो 20 दिनों में ठीक हो कर वापिस काम में लग गईं।

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कौन हैं मटिल्डा कुल्लू

उड़ीसा के सुंदरगढ़ जिले के एक छोटे से गांव में 15 साल से आशा वर्कर के रूप में काम कर रही मटिल्डा कुल्लू अपने गांव की स्वास्थ्य व्यवस्था में एक बड़ा बदलाव लायी हैं। यह यात्रा उनके लिए आसान नहीं थी। गांव के लोगों को सभी प्रकार की बीमारियों के प्रति जागरूक करने और एचआईवी-एड्स जैसी बीमारी के बारे में खुलकर चर्चा करने के कारण पिछले साल मटिल्डा कुल्लू का नाम फोर्ब्स इंडिया की लिस्ट में वीमेन पावर 2021 में शामिल किया गया है।

asha worker matilda

आशा वर्कर के रूप में की थी शुरुआत

मटिल्डा की अपने गांव में एक टेलरिंग की दुकान थी। लेकिन उन्हें जीविका के लिए अधिक पैसे की जरूरत थी। इसलिए जब सेंटर नेशनल रूरल हेल्थ मिशन 2005 में आशा वर्कर की पोस्ट आई तो इन्होंने यह ज्वाइन करने का निर्णय बनाया और आशा वर्कर के रूप में काम शुरू कर दिया। यह इकलौती एक ऐसी सोशल हेल्थ केयर वर्कर थी जो कई गांवों में काम करती थी। शुरुआत में यह काम पूरा संघर्ष से भरपूर था। यह वह समय था जब मां और बच्चे की पैदा होते समय मृत्यु की दर काफी अधिक थी। इसलिए इंस्टीट्यूशनल डिलीवरी के बारे में जानकारी फैलाना भी काफी आवश्यक था। मटिल्डा और इनकी कुछ सहेलियों के प्रयास ने काफी अच्छे नतीजे लाए। मेटरनल मोर्टेलिटी रेट 2004 से 2006 में 303 था और 2016 से 2018 में 150 तक आ गया। इनका कहना है कि मैंने जितना भी संघर्ष और मेहनत किया उसके बदले ही उनका नाम फोर्ब्स की सूची में आया।

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कोविड से पहले के समय का काम

2005 में मटिल्डा ने बहुत से गांवों में काम किया लेकिन अब जब आशा वर्कर्स की संख्या बढ़ती गई तो वह एक ही गांव में काम कर रही हैं। गर्भवती महिलाओं से जुड़े अपने काम के अलावा वह टीबी, एचआईवी, एड्स जैसी बीमारियों पर जागरूकता फैलाने का भी काम कर रही हैं। यह सारी ही भारत में लंबे समय तक रहने वाली गंभीर बीमारियां हैं। यह जागरूकता फैलाने के लिए आशा वर्कर्स को ट्रेनिंग दी जाती है कि कैसे उन्हें लोगों से मिलना है और उन्हें चीजें समझानी हैं और कैसे वह किसी समस्या को सुलझा सकती हैं। मटिल्डा के इन प्रयासों को पहचान दिलाने और उन्हें ये अवॉर्ड जिताने के लिए उनको वोट जरूर दें।

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