आपकी लिखावट एक तरफ जहां आपकी पहचान बन सकती हैं वहीं दूसरी तरफ आपकी हाथ की लिखावट पार्किंसन जैसी बीमारी का पता लगाने में मददगार होती है।
यूनिवर्सिटी ऑफ हाफिया के डिपार्टमेंट ऑफ ऑक्युपेशनल थेरेपी की प्रोफेसर सारा रोसेनब्लम ने बताया कि लिखावट में आने वाले बदलाव की मदद से यह संभंव हो सकता है।
यह शोध 40 व्यस्कों पर किया गया जिन्होनें 12 साल की स्कूली शिक्षा पूरी की हुई थी। इस समूह में स्वस्थ और पार्किंसन के शुरुआती लक्षण वाले लोग शामिल थे।
शोधकर्ताओं ने देखा कि सेहतमंद और पार्किंसन के शुरुआती लक्षण वालों की लिखावट में काफी अंतर था। पार्किंसन के मरीजों ने छोटे अक्षरों में बताई गई चीजें लिखीं।
जब व्यक्ति में हॉर्मोन डोपामीन का स्तर कम हो जाता है तो ब्रेन के सबथैलेमस न्यूक्लियस की कोशिकाएं ,जो शरीर की सक्रियता को नियंत्रित करती हैं, अतिसक्रिय हो जाती हैं।
इस शोध में पाया गया कि पार्किंसन रोग से ग्रस्त मरीजों ने छोटे अक्षर कम दबाव डाले लिखे। और इसके साथ ही अपना दिया गया कार्य पूरा करने में अधिक समय लिया। प्रोफैसर रोजनब्लम के अनुसार हमने हर अक्षर व शब्द लिखने से पहले पेन कितनी समय तक हवा में रहा, इस बात पर अधिक ध्यान दिया।
रोजनब्लम यह निष्कर्ष इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि जब रोगी ने पेन को हवा में रखा, उस समय उसका मस्तिष्क लेखन प्रक्रिया के अपने अलगे चरण के बारे में सोचने में व्यस्त था। और लिखने तथा सोचने में अधिक समय लेने का संबंध कहीं न कहीं व्यक्ति की संज्ञानात्मकता को दिखाता है। हैंड राइटिंग में बदलाव किसी बीमारी के बारे में पहले से एक इशारा हो सकता है।
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