
ज्यादातर महिलाओं को चुड़ैल कहकर उन्हें शारीरिक प्रताड़ना दी जाती है। यह एक मनोरोग है जिसका इलाज संभव है।
कभी आपने सोचा है कि ज्यादातर महिलाओं को ही चुड़ैल क्यों कहा जाता है? ज्यादातर महिलाओं को ही भूत क्यों चढ़ता है? उन्हीं पर ऊपरी साया क्यों होता है, या फिर महिलाओं के खुलकर हंस लेने पर उन्हें चुड़ैल जैसी हंसी हंसती है, ऐसा क्यों कहा जाता है? या फलां का बेटा मर गया, तो उसकी बहु डायन हो जाती है। घर में आते ही उसके बेटे को निगल गई। ऐसे डायलॉग, दृश्य सिनेमा, धारावाहिकों से लेकर सोशल मीडिया तक देखने को मिलते हैं। इन सवालों पर हम सोचते नहीं, बल्कि ऐसे अंधविश्वासों को सामाजिक स्वीकार्यता देते हैं। दूसरा इन सवालों के जवाब महिलाओं की परवरिश, समाज का पितृसत्तात्मक ढांचा (Patriarchal society) और हमारी जातीय व्यवस्था में छुपे हैं। पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में यह समस्या ज्यादा क्यों होती है, इस पर मनोचिकित्सक सत्यकांत त्रिवेदी का कहना है कि यह महिलाओं में तनाव की अभिव्यक्ति है। महिलाओं पर देवी आ जाना, उन पर भूत आ जाना या फिर उन्हें चुडैल कह देना, आदि डिसोसिएटिव कंवर्जन डिसऑर्डर के लक्षण हैं।
क्या है डिसोसिएटिव कंवर्जन डिसऑर्डर
यह हिंदुस्तान की शिक्षा व्यवस्था की असफलता ही है कि वह समाज में मनोरोगों के प्रति जागरूकता फैलाने में नाकम रही। यही वजह है कि महिलाओं के साथ घटने वाले मनोरोगों को कभी बीमारी समझा ही नहीं गया और उन्हें मोस्ट पॉपुलर बाबाओं के पास यौन शोषण का शिकार होने के लिए भेजा गया। डिसोसिएटिव कंवर्जन डिसऑर्डर में पीड़ित व्यक्ति लकवा की स्थिति में आ जाता है। उसकी स्थिति उसके नियंत्रण से बाहर होती है। इस बीमारी में व्यक्ति के अंदर जो हो रहा है वह शारीरिक रूप से दिखता है, लेकिन उसे बुखार, जुकाम जैसी कोई बीमारी नहीं होती। व्यक्ति का शरीर भीतरी तनाव को शारीरिक रूप से दिखाता है, लेकिन उसे खुद भी नहीं मालूम होता कि ऐसा क्यों हो रहा है।
हर भूतिया फिल्म में औरत ही चुड़ैल क्यों होती है?
डिसोसिएटिव कंवर्जन डिसऑर्डर में विच हंटिंग भी आता है। विच हंटिंग संदिग्ध व्यक्तियों के विरुद्ध एक अभियान है। ऑक्सफॉर्ड डिक्शनरी के मुताबिक इस शब्द का अर्थ है कि ऐसे लोग जो समाज के लिए अहितकारी होते हैं, उन्हें चुड़ैल मान लिया जाता है, और उन्हें सजा दी जाती है। बॉलीवुड की फिल्में इस कुप्रथा को खत्म करने के बजाए और बढ़ावा देती हैं। फिल्म बनाने वाले डायरेक्टर कहानी लिखने वाले लेखक इसे बीमारी कम बल्कि इसे सामाजिक स्वीकार्यता देते हैं। ऊपर से महिला चुड़ैल को सैक्सिएस्ट दिखाकर उसे पुरुषों को वश में करने वाली दिखाया जाता है। मैक्स अस्पताल में न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. मुकेश कुमार का कहना है कि ऐसे लोग जो डिप्रेशन में होते हैं, ओसीडी होते हैं या मलिंजरिंग करते हैं, ऐसी घटनाओं का शिकार ज्यादा होते हैं। यह दुर्भाग्य है कि ऐसे मामलों का शिकार महिलाएं ज्यादा होती हैं।
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बढ़ रहे हैं विच हंटिंग के मामले
विच हंटिंग के मामले में भारत में कोई कम नहीं हैं। विच हंटंगि को लेकर कानून होने के बावजूद, यह नियंत्रण में नहीं है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के हिसाब से साल 2019 में छत्तीसगढ़ 22 मौतें विच हंटिंग की वजह से हुईं, तो वहीं झारखंड में 15 मौतें विच हंटिंग की वजह से हुईं। यह आंकड़े मात्रा आईना हैं। यह तो केवल वे आंक़ड़ें हैं जो रिपोर्ट हुए या मीडिया तक पहुंचे, लेकिन ऐसे अनगिनत मामले हैं जो ज्यादातर घरों में घटित होते हैं।
महिलाओं के मनोरोग हमारी प्राथमिकता क्यों नहीं?
पुरुषों को होने वाले मनोरोगों का इलाज करवाने परिवार फिर भी कष्ट कर लेता है, लेकिन अगर यह परेशानी किसी महिला के साथ है तो उस पर ध्यान नहीं दिया जाता। मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत का कहना है कि इसके पीछे की वजह हमारी पितृसत्तात्मक व्यवस्था है। जिसमें महिलाओं को कमतर माना जाता है, और पुरुष को श्रेष्ठ। बचपन से उनकी परवरिश लड़कों से अलग होती है। उन्हें कम बोलना, कम हंसना, दबकर रहना सिखाया जाता है। वे बहुत कुछ कहना चाहती हैं, पर समाज में उनके फैसलों की अहमियत नहीं समझी। उनके भीतर की यह घुटन मानसिक तनाव हो जाती है और फिर एक दिन शारीरिक लक्षणों में के रूप में ऊपर दिखती है। मनोचिकित्सक त्रिवेदी के मुताबिक महिलाओं को माहवारी, प्रेग्नेंसी और मेनोपॉज जैसी परेशानियों से गुजरना पडता है। जिस कारण उनमें हार्मोनल बदलाव आते हैं। इस कारण भी महिलाओं में मानसिक समस्याएं बढ़ जाती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनवुमेन और कई समाजसेवी संस्थाओं के इनिशेएट के बाद भी यह मनोरोग रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं और न ही हमारी प्रथामिकताओं में शामिल हो रहे हैं। इसकी पीछे की वजह यही है कि हम महिलाओं को अर्थव्यवस्था का हिस्सा न मानकर उन्हें केवल एक सेक्स के रूप में देखते हैं।
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कौन सी महिलाएं होती हैं इस डिसऑर्डर का शिकार
भोपाल में कार्यरत समाजसेविका शादमा के मुताबिक वे महिलाएं जो अकेली रहती हैं, जिनके साथ बचपन में यौन शोषण हुआ होता है, वे विधवा होती हैं, जिनकी कोई औलाद नहीं होती, ऐसी महिलाओं में भूत-बाधा की समस्या ज्यादा देखी जाती है। इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि वे महिलाएं भी जो पुरुषों के मुकाबले काम करने का दमखम रखती हैं, किसी के नियंत्रण में नहीं आतीं, जो खुलकर हंसती हैं, किसी से शर्माती नहीं है, ऐसी महिलाएं भी पुरुषों के मुकाबले चुड़ैल के समान ही होती हैं। पितृसत्तात्मक ढांचे में बाल खोलकर ठहाका लगाकर हंसती औरत, आजाद औरत ज्यादा चुभती है, इसलिए भी उन्हें भूत या चुड़ैल बोलकर कमतर या मानसिक रूप से कमजोर किया जाता है। तो वहीं, डॉ. त्रिवेदी के मुताबिक ऐसी महिलाएं जिनकी वैचारिकी को शुरू से अहमियत नहीं दी गई होती है, उनमें भी यह लक्षण दिखाई देते हैं।
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क्या है इलाज
एसोसिएटिव कंवर्जन डिसऑर्डर हो या विच हंटिंग इसका कोई एक इलाज नहीं है। बल्कि इस समस्या निपटने के लिए भारत को कई स्तरों पर काम करना होगा। डॉ. त्रिवेदी के मुताबिक, महिलाओं को भूत बोलकर उन्हें मार डालना या ओझा के पास ले जाकर उनका यौन शोषण करना तभी रुकेगा जब परिवारों का ढांचा बदलेगा। परिवारों में महिलाओं के साथ बराबरी का संवाद स्थापित किया जाएगा। उन्हें एक सेक्सफुल बॉडी से बाहर निकालकर उनके विचारों का सम्मान किया जाएगा। अगर किसी को देवी आ गई है या भूत चढ़ गया है तो इसका मतलब है कि उस महिला से बात किए जाने की जरूरत है। कहीं न कहीं उस महिला के मन में अंतर्वद्वन्द्व चल रहे हैं जिसे किसी को सुनना चाहिए।
दिल्ली के मैक्स अस्पताल में न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. मुकेश कुमार का कहना है कि इसमें महिलाओं में पैरालाइजिज के लक्षण दिखते हैं। इसे एक मनोरोग मानना चाहिए और इसका इलाज काउंसलिंग से हो सकता है। अगर काउंगसलिंग काम न करे तो अंडरलाइन साइक्रेटिक्ट डिसऑर्डर को ट्रीट करना चाहिए। मनोचिकित्सक त्रिवेदी का कहना है कि मनोरोगों के प्रति जनजागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए। महिलाओं की यौनिकता कंट्रोल करने के बजाए उसे आजाद छोड़ना चाहिए। अगर किसी महिला में भूत, देवी या चु़ड़ैल जैसी समस्याएं दिख रही हैं तो उसे मनोचिकित्सक के पास दिखाइए। यह एक बीमारी है जिसका इलाज संभव है।
भारत में महिलाओं को चुड़ैल बोलकर उनका मुंह काला किया जाता है। उन्हें औजरों से गोदा जाता है। उनके बालों को खींचा जाता है। हर वह अमानवीय कृत्य किया जाता है जो उनके मानवाधिकारों का हनन करता है। इस अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर हमें प्रण लेना चाहिए कि महिलाओं को होने वाले ऐसे मनोरोगों से निपटने के लिए उसे एक बीमारी के रूप में देखेंगे। जिसका इलाज बातचीत से या मनोचिकित्सक के पास जाकर किया जा सकता है। कोई बाबा या ओझा इसका इलाज नहीं कर सकता है। औरतें इस दुनिया को चलाए रखने के लिए जरूरी हैं। उन्हें बेमौत मत मारिए।
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