
हाउसवाइफ जो घरों को संभालती हैं। सभी के हिस्से का फ्रस्ट्रेशन झेलती हैं, लेकिन उनकी फ्रस्ट्रेशन को समझने वाले कम हैं। ऐसे में वो तनाव में चली जाती हैं
"पति कमा कर आता है तो दुनिया भर का गुस्सा मुझ पर उतार देता है, बच्चों को गुस्सा आता है तो मुझ पर उतार देते हैं। लेकिन मुझे भी गुस्सा आता है, मैं किस पर जाकर उतारूं" 40 साल की रूपा (बदला हुआ नाम) ने ये बात बहुत ही झुंझलाकर बताई। ये गुस्सा, फ्रस्ट्रेशन, द्वंद्व केवल रूपा का नहीं है बल्कि दुनिया की ज्यादातर गृहणियों का है। घर के काम के बंटवारे के मामले भारत पहले ही पिछड़ा हुआ था। ऊपर से कोरोना की वजह से लगे लॉकडाउन में यह गैर बराबरी और बढ़ गई। हम सभी ने अपने घरों व आसपास में यह देखा होगा कि घर में रहने वाली हमारी मां या पत्नी सभी की जरूरतों का ख्याल रखती हैं, लेकिन उनकी मेंटल हेल्थ का ख्याल हम नहीं रखते। यही कारण है कि ज्यादातर गृहणियां मेंटल हेल्थ से जुड़ी परेशानियों से जूझ रही हैं। कामकाजी महिलाओं के पास फिर भी बाहर जाकर अपनी बात कहने का या मूड बदलने का एक्पोजर होता है, लेकिन हाउसवाइफ के साथ ऐसा नहीं है। ऐसे में वो घर में ही गुस्से में, द्वंद्व में, झुंझलाहट में या चिंता में पड़ी रहती हैं। आज हम मनोचिकित्सक से जानेंगे कि घर में रहने वाली महिलाएं अपनी इस स्थिति में कैसे खुशियां ला सकती हैं। अपनी स्थिति में कैसे सुधार कर सकती हैं और कैसे अपना Me Time निकाल सकती हैं।
पढ़ तो लूं, लेकिन घर के काम कौन करेगा : दीक्षा (गृहणी)
बनारस की दीक्षा का कहना है कि मुझे टीचर बनना है। शादी को 11 साल हो गए। घर वाले कहते हैं कि तुम्हें जो पढ़ना है वो पढ़ो, लेकिन मुझे पढ़ने का टाइम ही नहीं मिलता। मैं घर के कामों में ही इतनी व्यस्त हो जाती हूं। कभी-कभी लगता है कि मेरा एमएससी (M.Sc.) करने का कोई फायदा नहीं है। पढ़ाई और घर की जिम्मेदारियों के बीच तालमेल बना रहीं दीक्षा ने बताया कि बहुत बार इन सब बातों को लेकर झुंझलाहट होती है। अकेले में रो भी लेती हूं। लेकिन किससे कहूं। घर के बड़ों पर गुस्सा उतार नहीं सकती और बच्चे अभी छोटे हैं। ऐसे में अपना गुस्सा भी खुद ही को संभालना पड़ता है।
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कोरोनाकाल महिलाओं के लिए बना ‘काल’ : समाजसेविका
वाराणसी में एशियन ब्रिज इंडिया की प्रोग्राम मैनेजर नीति का कहना है कि लॉकडाउन में महिलाओं की मेंटल स्थिति और खराब हुई है। तो वहीं, नेशनल कमीशन फॉर वुमेन का पिछले साल का आंकड़ा है कि 23 मार्च से 30 मार्च तक 58 शिकायतें घरेलू हिंसा की दर्ज की गईं। कोरोना काल महिलाओं की मानसिक स्थिति के लिए बहुत बुरा रहा।
नीति बताती हैं कि उन्हें औरतें बताती हैं कि शादी के बाद अगर हम घर में किसी को घर के काम करने को कहेंगे तो परिवार टूटेगा। पति बेशक ही जबरदस्ती यौन संबंध बना रहा हो, अगर पत्नी इसका विरोध करेगी तो पति किसी और औरत के पास जाएगा, इस डर से पत्नियां उनके जबरदस्ती के संबंध में साथ होती हैं। ऐसी जबरदस्तियां औरतों को भीतर से तोड़ती हैं, पर उनकी जिम्मेदारी होती है कि घर के सभी सदस्यों के सामने खुश दिखें।
नीति का कहना है कि बहुत पढ़ी लिखी औरतें जब केवल घर संभालने में लग जाती हैं और अपने सपनों को पूरा नहीं कर पातीं तो डिप्रेशन में चली जाती हैं। दूसरा महिलाओं की परवरिश ही ऐसे की जाती है कि उन्हें घर के काम कभी बोझ लगते ही नहीं और अपने सपने पूरे करने की उम्मीद भी नहीं होती। नीति कहती हैं कि औरतें तय कर लेती हैं कि जब उनकी कोई सुनने वाला ही नहीं है तो किसी से कह कर भी कोई फायदा नहीं है।
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महिलाओं में स्ट्रेस के परिणाम
मनोचिकित्सक डॉ. प्रज्ञा मलिका का कहना है कि गृहणियों में तनाव कई वजहों से होता है। ऐसी स्थिति में वे अकेले रहने लग जाती हैं। परिवार में जब कॉन्फ्लिक्ट्स (झगड़े और विवाद) बढ़ते हैं तो वे एडजस्टमेंट की ओर जाते हैं। जब ये मुद्दे हल नहीं हो पाते तो सुसाइड, तलाक या अन्य मेंटल डिसऑर्डर में बदल जाते हैं। इसे ही विशियस साइकल कहते हैं।
डॉ. प्रज्ञा ने एक शोध का हवाला देते हुए बताया कि हाउसवाइफ में तनाव बढ़ने के कारण हैं, जल्दी शादी, अरेंज मैरिज, लो सोशल और इकोनोमिक स्ट्रेस और घरेलू हिंसा जैसी परेशानियां जुड़ी हैं।
खुश रहने के ये हैं टूल (Happiness Tools for Housewives)
मनोचिकित्सक डॉ. प्रज्ञा के मुताबिक हाउसवाइफ इन तरीकों को अपनाकर खुश रह सकती हैं।
अपने मनपसंद काम करें
डॉ. प्रज्ञा का कहना है कि अक्सर महिलाएं घर के काम में उलझकर अपनी हॉबीज (शौक) को भूल जाती हैं। जब उनमें ये फ्रस्ट्रेशन बढ़ने लग जाए तो अपनी कला को याद करें। उस पर वापस काम करें। खुद सोचें कि उन्हें क्या करने में अच्छा लगता है। ऐसा करने से उनमें आत्मविश्वास बढ़ेगा।
परेशानी की वजह ढूंढें
हाउसवाइफ को ये देखना पड़ेगा कि उन्हें परेशानी किस बात से हो रही है। जब परेशानी की वजह मालूम हो जाएगी तब उस पर काम करें। उस परेशानी को मैनेज करें। डॉ. प्रज्ञा के मुताबिक महिला और पुरुष का दिमाग थोड़ा अलग तरह से काम करता है। जैसे महिलाएं इमोशनल होकर सोचती हैं और पुरुष लोजिस्टिक तरीके से सोचते हैं।
एक रिसर्च के ग्लोबल डाटा के अनुसार सामान्यतः आमतौर पर एक पुरुष एक दिन में 10 हजार शब्द बोलता है और एक औरत 30 हजार शब्द एक दिन में बोलती है। भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखें तो आदमियों के लिए बाहर की दुनिया से घुलना-मिलना और बोलना-बात करना आसान है इसलिए वो तो इतने शब्द रोजाना बोल लेते हैं। लेकिन अधिकतर भारतीय महिलाएं ऐसा नहीं कर पाती हैं। गैर जरूरी बातें तो बहुत दूर, कई बार महिलाएं वो भी नहीं बोल पाती हैं, जो वो महसूस कर रही होती हैं या जो उन्हें तकलीफ देता है। यही वजह है कि रात को सोते समय उसके पास कई बातें होती हैं बोलने के लिए। हाउसवाइफ में इरिटेशन की एक वजह अपनी बात न कह पाने की भी है।
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नए दोस्त और नई हॉबीज बनाएं
हाउसवाइफ अपने स्ट्रेस को कम करने के लिए नए दोस्त बना सकती हैं। अपने घर के आसपास, रिश्तेदारों में या स्कूल-कॉलेज के दोस्तों के संपर्क में रहें और उनसे बात करते रहना भी कई बार इस स्ट्रेस से निकलने में मदद करता है। इसके अलावा कुछ नई हॉबीज बनाना भी फायदेमंद हो सकता है।
मी टाइम निकालें
एक हाउसवाइफ होने के नाते आप क्या चाहती हैं। हाउसवाइफ होने के नाते आपके कुछ सपने होते हैं। तो यहां उन्हें सोचने की जरूरत है कि वो क्या चाहती हैं। खुद को खुश रखने के लिए अपना मी टाइम निकालें।
परिस्थितियों को स्वीकार करें
डॉ. प्रज्ञा का कहना है कि जिन परिस्थितियों में आप कुछ कर नहीं सकतीं। आपके बस से बाहर हैं तो उन पर न सोचें। उन परिस्थितियों को उनके हाल पर ही छोड़ दें।
हमेशा अपनी बेहतरी के बारे में सोचें
हाउसवाइफ जब अपनी बेहतरी के बारे में सोचेंगी तो उन्हें स्ट्रेस कम होगा। वे सोचें कि वे घर को कैसे सुंदर बना सकती हैं या उनकी कोई हॉबी है तो उस पर आगे क्या किया जा सकता है, ये सोचें।
ये बहुत ही दुख की बात है कि हम घर की गाड़ी को संतुलित रूप से चलाने वाली गृहणियों की मेंटल हेल्थ को लेकर नदारद हैं। दुनिया जहान का गुस्सा उन पर निकालते हैं, लेकिन उनके मन की बात सुनने का टाइम हमारे पास नहीं होता। हमें यह कोशिश करनी चाहिए कि गृहणियों का हम भी ख्याल रखें।
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