
घर के बड़े बच्चों पर ज्यादा जिम्मेदारी होती है। लेकिन, साथ ही वे अधिक स्मार्ट भी होते हैं। ऐसा केवल कल्पना के आधार पर ही नहीं कहा जा रहा, बल्कि इसके पीछे गंभीर वैज्ञानिक शोध भी किये गए हैं। इन शोध में इसके पीछे परवरिश तथा अन्य कारकों को जिम्मेदार ठहराया गया है।
नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनोमिक रिसर्च के शोध के अनुसार जो बच्चे पहले पैदा होते हैं, वे अपने सहोदरों के मुकाबले स्कूल में बेहतर प्रदर्शन करते हैं। शोध में शामिल 33.8 फीसदी मांओं, जिनके बच्चे पहली संतान थे ने कहा कि, उनके बच्चे क्लास के सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थियों में शामिल थे। वहीं केवल 1.8 फीसदी मांओं ने बताया कि उनके बच्चे निचले पायदान पर थे। 
पहले बच्चे के बाद यह आंकड़ा लगातार नीचे आता गया। दूसरे बच्चे में 31.8, तीसरे में 29 फीसदी और चौथे में यह आंकड़ा गिरकर 27.2 फीसदी रह गया।
इसके साथ ही बच्चों को कमतर मानने वाले आंकड़े में भी बदलाव देखा गया। दूसरे बच्चे में यह नंबर 2 फीसदी और तीसरे में 2.1 फीसदी देखा गया। वहीं चौथे बच्चे तक आते-आते यह नंबर बढ़कर 3.6 फीसदी हो गया। अब आप समझ गये होंगे। इस शोध के मुताबिक पहले बच्चों का आईक्यू स्तर अधिक पाया गया। इसके साथ ही यह बात भी निकलकर सामने आयी कि पहली संतान के बाद माता-पिता अपने आपको अधिक पूर्ण मानते हैं।
तो सवाल यही है कि आखिर ऐसा क्यों होता है।
पहले बच्चे को स्कूल में अधिक नंबर मिलने के पीछे बड़ी वजह परवरिश है। माता-पिता अपने पहले बच्चे के लालन-पालन में अधिक ध्यान देते हैं। वे ऐसे बच्चों पर अधिक सख्ती बरतते हैं। दूसरे या तीसरे बच्चे तक माता-पिता का रवैया थोड़ा सहज हो जाता है।
बड़ों को डांट, छोटों के लिए सीख
शोध में यह बात भी सामने आयी है कि जब उनका बड़ा बच्चा किसी बुरी आदत में फंसता है, तो माता-पिता उसके साथ सख्ती से पेश आते हैं। वे उसकी देखभाल में सख्ती दिखाते हैं। वे सख्ती के जरिये बच्चे को सही रास्ते पर लाने का प्रयास करते हैं। इतना ही नहीं वे बड़े बच्चे पर सख्ती दिखाकर छोटों को भी बुरी आदतों से दूर रहने की हिदायत देते हैं। इसके साथ ही अभिभावक अपने छोटे बच्चों के लिए अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करना चाहते हैं। बड़े बच्चे को डांटकर या सजा देकर वे छोटों को सही रास्ते पर चलने और पढ़ाई में अच्छा करने के लिए प्रेरित करने की उम्मीद करते हैं। वे मानते हैं कि बड़े के साथ सख्ती कर वे छोटों को यह संदेश देते हैं कि ऐसी सख्ती उनके साथ भी हो सकती है। 
कैसा रहता है नतीजा
हालांकि माता-पिता यही सोचते हैं कि उनकी यह तकनीक घर के छोटे बच्चों पर भी सकारात्मक प्रभाव डालेगी, लेकिन कई बार अपेक्षित परिणाम नहीं मिलते। छोटे बच्चे थोड़े से सहज हो जाते हैं। क्योंकि उन पर सख्ती नहीं होती इसलिए वे कुछ बेपरवाह भी हो जाते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि स्कूल में उनके नंबर कम आते हैं।
2007 का शोध
अक्टूबर 2007 में प्रतिष्ठित टाइम पत्रिका ने भी इस विषय पर शोध प्रकाशित किया था। उसमें भी बर्थ आर्डर यानी बच्चों के पैदा होने के क्रम की महत्ता पर बात की गयी थी। इसमें बताया गया था कि बड़े बच्चे ज्यादा स्मार्ट होते हैं और वे ज्यादा कमाते हैं, जबकि छोटे अधिक मजाकिया होते हैं। इसके साथ ही वे जीवन में अधिक रिस्क भी लेते हैं। टाइम ने इस संदर्भ में वैज्ञानिक डाटा भी प्रकाशित किया था।
जून 2007 में नार्वे के वैज्ञानिकों ने एक शोध प्रकाशित किया जिसमें यह बात कही गयी कि पहले पैदा हुए बच्चे अपने सहोदरों की अपेक्षा अधिक स्मार्ट होते हैं। उनका आईक्यू अपने बाद पैदा होने वाले सहोदर की अपेक्षा अधिक होता है। वहीं दूसरे का आईक्यू तीसरे की अपेक्षा ज्यादा होता है। यानी जैसे-जैसे संतान का क्रम घटता रहता है, वैसे-वैसे बुद्धिमत्ता के पैमाने में भी कमी आने लगती है।
डीएचए का खेल
इनसानी मस्तिष्क का विकास पहले दो वर्षों में सबसे तेजी से होता है। मानवीय मस्तिष्क के लिए बहुत जरूरी होता है। इसे डीएचए भी कहा जाता है। यह सब हमारे भोजन से तैयार होता है। बच्चों में इस डीएचए की बहुत जरूरत होती है, जो मां अपने रोजमर्रा के आहार से नहीं दे सकती। मां के दूध में आने वाला डीएचए उसके शरीर में जमा वसा से आता है। इसलिए आप कह सकते हैं कि पहले पैदा हुए बच्चे अपने सहोदरों से अधिक स्मार्ट होते हैं, क्योंकि इस समय मां के शरीर में मौजद डीएचए सबसे अधिक होता है।
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