पिछले एक दशक में जिस तरह से स्क्रीन वाले डिवाइसेज का इस्तेमाल लोगों में बढ़ा है, उसके गंभीर परिणाम अब दिखने शुरू हो गए हैं। आजकल बच्चे भी पूरे दिन इन डिवाइसेज से घिरे रहते हैं। दो-तीन साल के बच्चे भी मोबाइल और लैपटॉप पर गेम खेलने, गाने सुनने, वीडियो देखने और इन डिवाइसेज को ऑपरेट करने में सहज हो गए हैं। कई बार तो बच्चे इन डिवाइसेज के इतने आदी हो जाते हैं कि इनके न मिलने पर हंगामा शुरू कर देते हैं। इन सभी का बच्चों पर इतना बुरा प्रभाव पड़ रहा है कि इससे बच्चों का दिमागी और शारीरिक दोनों अवरुद्ध हो रहे हैं।
क्या है डिजिटल एडिक्शन
वाकई यह ऐसी गंभीर समस्या है, जिससे सभी पेरेंट्स जूझ रहे हैं। आजकल स्कूली बच्चों का जयादातर समय इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के साथ व्यतीत होता है। घर से बाहर निकल कर खेलने-कूदने की आदत छूटती जा रही है। इसकी वजह से उनकी नींद पूरी नहीं हो पाती, उनके शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य पर इसका बुरा असर पड़ता है।
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टेक्नोलॉजी एडिक्शन की वजह
इसके लिए बच्चे नहीं बल्कि पेरेंट्स जि़म्मेदार हैं। एक-दो साल की उम्र से ही रोते बच्चे को बहलाने के लिए लोग उसके हाथों में मोबाइल पकड़ा देते हैं और खुद भी सोशल मीडिया पर व्यस्त रहते हैं। ऐसे में वे बच्चे से अनुशासित व्यवहार की उम्मीद कैसे कर सकते हैं?
क्या करें माता-पिता
ऐसे मामले में स्व-अनुशासन बहुत ज़रूरी है। अपने परिवार के सभी सदस्यों के लिए कुछ निश्चित नियम बनाएं, मसलन रात को नौ बजे के बाद परिवार का कोई भी सदस्य इंटरनेट का इस्तेमाल नहीं करेगा, परीक्षा के दिनों में बच्चे को इंटरनेट का इस्तेमाल न ही करने दें तो अच्छा होगा।
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कैसे पड़ता है प्रभाव
अब अगर बच्चा बचपन से इन इलेक्ट्रॉनिक स्क्रीन वाले डिवाइसेज का इस्तेमाल करता है तो उसका दिमागी विकास इससे प्रभावित होता है। इन डिवाइसेज की वजह से दिमाग में विकसित होने वाली कई महत्वपूर्ण सेल्स पैदा होने के साथ ही धीरे-धीरे नष्ट होने लगती हैं, जिससे बच्चा कुछ विशेष कामों में पीछे रह जाता है। खास बात ये है कि इनमें से ज्यादातर सेल्स का विकास दोबारा नहीं हो पाता है और बच्चों को उस खास दिमागी विकृति के साथ ही जीवन गुजारना पड़ सकता है।
क्या हो सकती हैं परेशानियां
इन डिवाइसेज के इस्तेमाल आमतौर पर बच्चों को जो परेशानियां होती हैं वो हैं- किसी चीज पर फोकस न कर पाना, ध्यान न लगा पाना, दिमाग एकाग्र न होना, चीजें जल्दी भूल जाना, सही-गलत के निर्णय क्षमता में कमी, एटीट्यूड में बदलाव, लोगों की बातों को ठीक तरह से न समझ पाना और इसी कारण कई बार बद्तमीजी और जिद्दीपन का स्वभाव अपना लेना आदि कई परेशानियां हैं।
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