टीनेज उम्र का ऐसा अहम दौर है, जब बच्चों के शरीर में हॉर्मोन संबंधी कई बदलाव आ रहे होते हैं। उनके व्यवहार पर इसका असर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। ऐसी स्थिति में पेरेंट्स को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, जानने के लिए ज़रूर पढ़ें यह लेख।
बच्चे बड़े हो रहे हैं। आमतौर पर इस सरल और सकारात्मक वाक्य का इस्तेमाल लोग किसी समस्या की तरह करते हैं। जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। अपने टीनएजर्स में आने वाले बदलाव को देखकर अधिकतर पेरेंट्स परेशान हो जाते हैं। उम्र के इस दौर में उनके व्यवहार में क्या खास बातें नज़र आती हैं, इसकी वजह क्या है और ऐसी स्थिति में बच्चों के साथ पेरेंट्स का रिश्ता कैसा होना चाहिए, बता रही हैं चाइल्ड काउंसलर पूनम कामदार।
बच्चों की बढ़ती मनमानी
टीनएजर्स को लेकर हर माता-पिता की अकसर यही शिकायत रहती है कि आजकल वह मेरी बात नहीं सुनता/सुनती। चाहे पढ़ाई हो या सही समय पर सोने-जागने की आदत, ऐसी छोटी बातों के लिए बच्चों को बार-बार टोकना पड़ता है।
क्या है वजह : यह उम्र का ऐसा दौर है, जब टीनएजर्स की गिनती न तो बच्चों में होती है और न ही बड़ों में। इस दौरान वे आइडेंटिटी क्राइसिस से जूझ रहे होते हैं। ऐसे में अपनी पहचान कायम करने के लिए बड़ों की बात मानने के बजाय वे अपनी पढ़ाई, दोस्ती और खानपान आदि के बारे में खुद ही निर्णय लेने की कोशिश करते हैं। इस दौरान उनसे कुछ गलतियां भी हो जाती हैं और पेरेंट्स को ऐसा लगता है कि बच्चे मेरा कहना नहीं मानते।
क्या करें : उन्हें छोटे-छोटे कार्य खुद ही करने को प्रेरित करें। घर के लिए कोई ज़रूरी सामान खरीदते समय उनसे भी सलाह लें। हर बार उनकी बात मानना ज़रूरी नहीं है पर जब आप उनकी राय जानने की कोशिश करेंगे तो इससे उन्हें अच्छा महसूस होगा और उनका आत्मविश्वास भी बढ़ेगा।
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हर बात पर गुस्सा
इस उम्र में अगर बच्चों को किसी गलती के लिए टोका जाए तो उन्हें बहुत जल्दी गुस्सा आ जाता है। छोटी-छोटी बातों पर झल्लाने की आदत इस उम्र में अकसर देखने को मिलती है।
क्या है वजह : हॉर्मोन संबंधी असंतुलन ऐसी समस्या का मुख्य कारण है। इससे कई बार बिना किसी वजह के भी बच्चे के व्यवहार में झल्लाहट नज़र आ सकती है। टीनएजर्स में बहुत हाई लेवल की एनर्जी होती है पर आधुनिक जीवनशैली से आउटडोर गेम्स और फिजि़कल ऐक्टिविटीज़ गायब होती जा रही हैं। ऐसे में बच्चे को अपनी एनर्जी रिलीज़ करने का मौका नहीं मिलता तो इसका असर गुस्से या आक्रामक व्यवहार के रूप में नज़र आता है।
क्या करें : ओवर रिएक्ट करने के बजाय बच्चे को प्यार से समझाएं। उसे ऐसी समस्या से बचाने के लिए क्रिकेट, फुटबॉल और जूडो-कराटे जैसी फिजि़कल ऐक्टिविटीज़ में शामिल होने के लिए प्रेरित करें।
लापरवाही की आदत
अपनी चीज़ें इधर-उधर रखकर भूल जाना, हमेशा अस्त-व्यस्त रहना, रोज़मर्रा के छोटे-छोटे कार्यों में अकसर $गलतियां करना...अपने बच्चों की ऐसी लापरवाही पेरेंट्स को चिंता में डाल देती है। उन्हें ऐसा लगता है कि हमारे बच्चे कब जि़म्मेदार बनेंगे?
क्या है वजह : जिन बच्चों की परवरिश अति संरक्षण भरे माहौल में होती है, उनमें अकसर ऐसी समस्या देखने को मिलती है। अगर पेरेंट्स अपने काम के मामले में लापरवाह हों तो उन्हें देखकर बच्चे भी यही रवैया अपनाते हैं।
क्या करें : अपने घर को सुव्यवस्थित रखने की कोशिश करें। बच्चों पर छोटे-छोटे घरेलू कार्यों की जि़म्मेदारियां सौंपें। अगर उनसे कोई गलती हो भी जाए तो कोई बात नहीं, बच्चे गलतियों और अभ्यास से ही सीखते हैं।
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अपनी गलती न मानना
इस उम्र में कुछ बच्चे पेरेंट्स से बहुत ज्य़ादा बहस करते हैं और अपनी गलती मानने को तैयार नहीं होते। तर्क के ज़रिये वे अपनी हर बात को सही साबित करने की कोशिश करते हैं। इससे पेरेंट्स को ऐसा लगता लगता है, उनकी संतान अनुशासनहीन होती जा रही है।
क्या है वजह : यह उम्र का ऐसा दौर है, जब बच्चे मानसिक रूप से परिपक्व नहीं होते, फिर भी वे खुद को बड़ा समझने लगते हैं। उनमें इगो की भावना विकसित होने लगती है। इसी वजह से वे अपनी गलती मानने को तैयार नहीं होते।
क्या करें : जिस वक्त बच्चा अपनी गलती मानने को तैयार न हो, तब उसे समझाने की कोशिश न करें। थोड़ी देर बाद जब वह शांत हो जाए तो उसके सामने तार्किक ढंग से अपनी बात रखें। प्यार के साथ उसे अपनी गलतियां स्वीकारना, सुधारना और माफी मांगना सिखाएं।
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