अपंग होने के बावजूद इस लड़की ने जीता ओलम्पिक गोल्ड मैडल

अपंगता और गरीबी भी जिसके होंसले को तोड़ नहीं पाई और ओलम्पिक की दौड़ में इस लड़की ने 3 गोल्ड मैडल जीते। आइए ऐसी ही एक लड़की के बारे में आपको इस आर्टिकल के माध्‍यम से बताते हैं।
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अपंग होने के बावजूद इस लड़की ने जीता ओलम्पिक गोल्ड मैडल


अपंग होने के बावजूद इस लड़के ने जीता ओलम्पिक गोल्ड मैडल। जीं हां आज हम आपको एक ऐसी लड़की के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे अपंग होने के बावजूद हार नहीं मानी और अपने मनोबल से ओलम्पिक गोल्‍ड मैडल जीता। इस लड़की विल्‍मा रूडोल्‍फ को ढाई साल की उम्र में पोलियो हो गया था और वह 11 साल की उम्र तक बिना ब्रेस के चल नहीं पाती थी लेकिन 21 साल की उम्र में 1960 के ओलम्पिक में दौड़ में इस लड़की ने 3 गोल्ड मैडल जीते।
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विल्मा का मनोबल

विल्मा का जन्म 1939 में अमेरिका के टेनेसी राज्य के एक कस्बे में हुआ। विल्मा के पिता रुडोल्फ कुली व मां सर्वेंट का काम करती थी। विल्मा 22 भाई – बहनों में 19 वे नंबर की थी। विल्मा बचपन से ही बेहद बीमार रहती थी, ढाई साल की उम्र में उसे पोलियो हो गया। उसे अपने पैरों को हिलाने में भी बहुत दर्द होने लगा। बेटी की ऐसी हालत देख कर, मां ने बेटी को संभालने के लिए अपना काम छोड़ दिया और उसका इलाज शुरू कराया। मां सप्ताह में दो बार उसे, अपने कस्बे से 50 मील दूर स्थित हॉस्पिटल में इलाज के लिए लेकर जाती, क्योंकि यह हॉस्पिटल बहुत नजदीकी था और जहां अश्वेतों के इलाज की सुविधा थी। बाकी के पांच दिन घर में उसका इलाज़ किया जाता। विल्मा का मनोबल बना रहे इसलिए मां ने उसका एडमिशन एक स्‍कूल में करा दिया मां उसे हमेशा अपने आपको बेहतर समझने के लिए प्रेरित करती।


मां का समर्पण और विल्मा की लगन

पांच साल तक इलाज चलने के बाद विल्मा की हालत में थोडा सुधार हुआ। अब वो एक पांव में ऊंचे ऐड़ी के जूते पहन कर खेलने लगी। डॉक्टर ने उसे बास्केट्बाल खेलने की सलाह दी। विल्मा का इलाज कर रहे डॉक्टर के. एमवे. ने कहा था की विल्मा कभी भी बिना ब्रेस के नहीं चल पाएगी। पर मां के समर्पण और विल्मा की लगन का यह नतीजा हुआ कि 11 साल की उम्र में विल्‍मा अपने ब्रेस उतारकर पहली बार बास्केट्बॉल खेली।


संसार की सबसे तेज धावक बनने की चाह

यह उसके डॉक्टर के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था। जब यह बात डॉक्टर के. एम्वे. को पता चली तो वो उससे मिलने आये। उन्होंने उससे ब्रेस उतारकर दौड़ने को कहा। विल्मा ने फटाफट ब्रेस उतारा और चलने लगी। कुछ फीट चलने के बाद वह दौड़ी और गिर पड़ी। डॉक्टर एम्वे. उठे और विल्मा को उठाकर सीने से लगाया और कहा शाबाश बेटी। मेरा बात गलत साबित हुई, पर मेरी साध पूरी हुई। तुम दौडोगी, खूब दौडोगी और सबको पीछे छोड़ दोगी। विल्मा ने आगे चलकर एक इंटरव्यू में कहा था की डॉक्टर एम्वे. की उस शाबाशी ने जैसे एक चट्टान तोड़ दी और वहीं से एनर्जी की एक धारा बह उठी। और तभी मैंने सोच लिया था कि मुझे संसार की सबसे तेज धावक बनना है।

इसके बाद विल्मा की मां ने उसके लिए एक कोच का इंतजाम किया। विल्मा की लगन और संकल्प को देखकर स्कूल ने भी उसका पूरा सहयोग किया। विल्मा पूरे जोश और लगन के साथ अभ्यास करने लगी। विल्मा ने 1953 में पहली बार अंतर्विधालीय दौड़ प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। इस प्रतियोगिता में वह आखिरी स्थान पर रही। लेकिन विल्मा ने अपना आत्मविश्वास कम नहीं होने दिया उसने पूरे जोर–शोर से अभ्यास जारी रखा। आखिरकार आठ असफलताओं के बाद नौवी प्रतियोगिता में उसे जीत नसीब हुई। इसके बाद विल्मा ने पीछे मुड कर नहीं देखा वो लगातार बेहतरीन प्रदर्शन करती रही जिसके फलस्वरूप उसे 1960 के रोम ओलम्पिक मे देश का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला।


ओलम्पिक गोल्ड मैडल जीता

ओलम्पिक मे विल्मा ने 100 मिटर दौड, 200 मिटर दौड और 400 मिटर रिले दौड मे गोल्ड मेडल जीते। इस तरह विल्मा, अमेरिका की प्रथम अश्वेत महिला खिलाडी बनी जिसने दौड की तीन प्रतियोगिताओ मे गोल्ड मेडल जीते। अखबारो ने उसे ब्लैक गेजल की उपाधी से नवाजा जो बाद मे धुरंधर अश्वेत खिलाडि़यो का पर्याय बन गई। विल्मा अपनी जीत का सार श्रेय अपनी मां को देती हैं, विल्मा ने हमेशा कहा की अगर मां उसके लिय त्याग नहीं करती तो वो कुछ नहीं कर पाती।

इस लड़की का जन्म एक अश्वेत परिवार में हुआ (तब अमेरिका में श्‍वेत लोगों की तुलना में अश्वेतों को प्रा‍थमिकता कम मिलती थी), पर इसके सम्मान में आयोजित भोज समारोह में, पहली बार अमेरिका में, श्वेतो और अश्वेतों ने एक साथ हिस्सा लिया।


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