
ज्यादातर भारतीय तला-भुना और तेल में पकाया खाना खाना ही पसंद करते हैं, सुबह का नाश्ता हो या फिर शाम का स्नैक्स ऑयली होता ही है। लंच और डिनर में तेल का प्रयोग न हो तो उसे अधूरा माना जाता है। अमेरिकन और यूरोपियन देशों ने सालों पहले जिस रिफाइंड और वेजीटेबल ऑयल पर प्रतिबंध लगा दिया है उसका प्रयोग हम धड़ल्ले से कर रहे हैं। इन तेलों के जरिये शरीर में ट्रांस फैट जमा होता है जिसके कारण दिल की बीमारियां, कैंसर, अल्जइमर, डायबिटीज, आदि खतरनाक समस्यायें होती हैं। इस लेख में विस्तार से जानते हैं, ऐसा क्यों हैं।
शोध के अनुसार
खानपान के जरिये ही हमें कई बीमारियां होती हैं, इसलिए हेल्दी खाने की सलाह हमेशा दी जाती है। हम जो तेल प्रयोग करते हैं उसमें भी मिलावट होता है इसका खुलासा सेंटर फॉर साइंस एडं इनवायरमेंट (सीएसई) ने साल 2012 में किया था। इस संस्था ने तेलों के 30 से अधिक ब्रांडों पर शोध के बाद यह खुलासा किया। सीएसई की मानें तो तेलों में अंतराष्ट्रीय मानक के अनुसार 2 प्रतिशत तक ही ट्रांस फैट होना चाहिए, जबकि इनमें 5 से 23 प्रतिशत तक ट्रांस फैट मौजूद होता है। डब्यूएएचओ ने भी ट्रांस फैट को सेहत के लिए खतरनाक माना है।
भारत की स्थिति
तेल की गुणवत्ता की बात करें तो भारत में स्थिति बुरी है, क्योंकि यहां का निर्धारित मानक अंतर्राष्ट्रीय मानक से कई गुना अधिक है। हालांकि सीएसई की पहल के बाद भारतीय खाद्य एवं सुरक्षा मानक प्राधिकरण ने तेल कंपनियों के लिए भार से 10 प्रतिशत से कम ट्रांस फैट का मानक तय किया जिसे 2017 में 5 प्रतिशत तक करना है। इसे सेहत में सुधार होगा और बीमारियों से बचाव भी होगा। लेकिन जब तक यह स्तर शून्य न हो जाये कुकिंग ऑयल का ज्यादा प्रयोग सही नहीं है।
होती हैं बीमारियां
कुकिंग ऑयल में मौजूद ट्रांस फैट का सबसे बुरा प्रभाव दिल पर पड़ता है और इसके कारण दिल की बीमारियां होने लगती हैं। इसके अलावा ट्रांस फैट कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी के लिए भी जिम्मेदार है। ट्रांस फैट सबसे अधिक फास्ट और जंक फूड में होता है जिसे हम बहुत ही चाव से खाते हैं। इनके सेवन से अल्जामइमर और डायबिटीज भी हो सकता है।
क्या है ट्रांस फैट
ट्रांस फैट विषाक्त पदार्थ की तरह है, इसे कृत्रिम फैट भी कहते हैं। यह सस्ते तेलों को आंशिक हाइड्रोजिनेशन करके बनाया जाता है। नैचुरल ऑयल और जीव-वसा में यह फैट नहीं होता है। वैसे दिखने में तो यह घी और मक्खन की तरह ही होता है, इसलिए इसकी पहचान करना मुश्किल होता है। इसकी खासियत यह है इसमें बने व्यंजन बहुत अधिक देर तक चलते हैं। चूंकि यह लागत में बहुत ही सस्ता है इसलिए इसका प्रयोग ज्यादातर लोग करते हैं। घरों में इस्तेमाल होने वाले रिफाइंड ऑयल और वनस्पतियों में भी यह फैट होता है।
ऐसे में क्या करें
तेल में ट्रांस फैट मौजूद है यह सोचकर आप इसका प्रयोग बंद तो नहीं कर सकते, लेकिन इससे होने वाली बीमारी से बचने के तरीके जरूर निकाल सकते हैं। नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ न्यूट्रीशन द्वारा किये गये शोध की मानें तो थोड़े-थोड़े समय यानी लगभग हर तीन महीने पर अपना कुकिंग ऑयल बदलते रहें। इसके लिए आप दो विकल्पों को चुन सकती हैं – एक जिसमें ओमेगा-3 हो और दूसरा जिसमें ओमेगा-6 हो। सरसों और सोयाबीन में ओमेगा-3 होता है जबकि सूरजमुखी और मुंगफली में ओमेगा-6 होता है। इनको बदलकर प्रयोग करें और स्वस्थ रहें।
जब भी बाजार तेल खरीदने जायें तो उसमें लिखे निर्देशों को अच्छे से पढ़ें, ऐसा तेल ही खरीदें जिसमें ट्रांस फैट का स्तर सबसे कम हो।
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Image Source- Shutterstock
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