शरीर में मौजूद सात चक्रों को जगाने के लिए चक्र योग किया जाता है। इसे करने से शरीर को काफी लाभ मिलता है। शरीर को बैलेंस करने के लिए इस योग को करने की सलाह योग प्रशिक्षक देते हैं। चक्र योग पूरे मानव शरीर का शक्तिकुंज है। योग चक्र से शरीर को ऊर्जा और शक्ति मिलती है। रैफ, सीआरपीएफ व सेना के जवानों को योग प्रशिक्षण दे चुके व स्वामी रामदेव से दीक्षा प्राप्त कर चुके योग प्रशिक्षक व जमशेदपुर के बिरसानगर निवासी मगल लाल शर्मा ने इसके बारे में विस्तार से बताया। कहा- ऋषि मुनि इन्हीं सात योग चक्र को कर बड़ी से बड़ी सिद्धियां हासिल करते थे। तो आइए इस आर्टिकल में हम सात योग चक्र के बारे में जानते हैं। वहीं इसे करने का सही तरीका, इसके फायदों के बारे में विस्तारपूर्वक जानते हैं।
आत्मा शुद्ध होने के साथ बीमारियों में मिलती है मुक्ति
योग प्रशिक्षक मगन बताते हैं कि सात चक्र व नौ द्वार से हमारे शरीर का निर्माण हुआ है। अपने शरीर को ज्योतिमरय और प्रकाशमय बनाने के लिए चक्र योग का इस्तेमाल किया जाता है। किसी भी चक्र में अवरुद्ध ऊर्जा अक्सर बीमारियों का कारण बनती हैं। इस अवरुद्ध ऊर्जा को योग और व्यायाम से खत्म कर सकते हैं। योग में शारीरिक एवं आध्यात्मिक दोनों ही क्रियाएं शामिल हैं, इसे करने न केवल हमारे शरीर की एक्सरसाइज (व्यायाम) होती है बल्कि ये हमारे मन, भावनाओं एवं आत्मा को शुद्ध करती है। कुल मिलाकर कहें तो योग चक्र को करने से आत्मा शुद्ध होने के साथ बीमारियों से मुक्ति मिलती है।
1. मूलाधार चक्र : इसमें असंतुलन से होती है कई बीमारियां
एक्सपर्ट बताते हैं कि जहां से हम मल का त्याग करते हैं वहां मूलाधार चक्र होता है। इस चक्र को करने के लिए मूलाधार वाली जगह पर ध्यान लगाना होता है। इसके लिए हमें पैरों को पृथ्वी पर जमा कर रखने वाले आसन जैसे- पर्वतासन, कोणासन, वीरासन, सेतुबंध आसन, पाद-हस्तासन आदि को करना होता है।
मूलाधार चक्र में असंतुलन से हमें थकान, अनिद्रा, कमर के निचले भाग में दर्द, साइटिका, कब्ज़, उदासी, रोग प्रतिरोधक क्षमता का खत्म होना, मोटापा और खान-पान संबंधी रोग होते हैं। यह हमारे प्रोस्ट्रेट ग्लैंड, एड्रेनेल ग्लैंड, गुर्दे, निचले पाचन तंत्र, उन्मूलन तंत्र, हड्डियों, दांतो, नाखूनों, गुदा, स्वास्थ्य एवं सेक्स क्षमता को भी प्रभावित करता है। इसके असंतुलन के कारण अकारण भय, क्रोध, असुरक्षा, आत्म-सम्मान का ह्रास, सुख-साधनो में अत्यधिक लिप्त होना है। संतुलित चक्र होने से आत्म-केंद्रित होता है और व्यवहार में स्थिरता, स्वतंत्र, लगन, ऊर्जावान, शक्तिशाली, उत्तम पाचन शक्ति होती है।
मूलाधार चक्र को संतुलित करने के लिए ये आसन करें
पर्वतासन करें, इसे माउंटेन पोज भी कहा जाता है
इस आसान को करने के लिए शरीर की मुद्रा को पर्वत के सामान बना लिया जाता है। ये शरीर को उल्टा करने के जैसा है। इससे पूरे शरीर में रक्त प्रवाह तेज हो जाता है। इसे करने के लिए;
इसे करने के लिए सबसे पहले योगा मैट पर बैठ जाएं, दंडासन की मुद्रा में बैठें
- पैरों को सामने फैलाकर हाथों को शरीर के बगल में रखें
- अब पद्मासन की मुद्रा में बैठें
- पलथी मारकर जिस प्रकार बैठा जाता है, वैसे बैठें
- अब नमस्कार करें
- धीरे-धीरे हाथों को सिर के ऊपर ले जाएं
- ध्यान रहे कि इस दौरान कूल्हे को जमीन पर रखें व हाथों को ऊपर की ओर ले जाएं
- करीब आधा मिनट तक इसी पोज में रहें फिर हाथों को निचे लाकर रिलेक्स करें
कोणासन : हाथ-पैर व पेट के अंग होते हैं ठीक
योग प्रशिक्षक बताते हैं कि इस आसन को करने से हाथ, पैर व पेट सहित तमाम अंग के रोग खत्म होते हैं। इसे करने के लिए;
- सीधे खड़े रहते हुए पैरों में कूल्हे के चौड़ाई जितनी दूरी बना लें
- फिर हाथों को शरीर के बाजू में रखें
- सांस छोड़ते हुए रीढ़ की हड्डी को झुकाते हुए दाहिने ओर झुकें
- उसके बाद अपने श्रोणि को बाईं ओर ले जाएं और थोड़ा और झुकें
- अपने बाएं हाथ को ऊपर की ओर तना हुआ रखें
- सांस लेते हुए अपने शरीर को वापस सीधा करें
- सांस छोड़ते हुए अपने बायें हाथ को नीचे लाएं, ऐसा दोहराएं
2. स्वादिष्ठान चक्र : असंतुलित होने से आत्म-ग्लानि, दोषारोपण की होती है समस्या
यह चक्र जंघा की हड्डियों के मूल में जननेन्द्रिय एवं त्रिकजाल के बीच होता है। इसमें असंतुलित होने से आत्म-ग्लानि, दोषारोपण, सृजनात्मकता का अभाव, सेक्स के प्रति ज़ुनून , चिड़चिड़ापन, शर्मीलापन की भावना मनुष्य में आती है। इस चक्र को संतुलित करने के लिए कूल्हे की हड्डियों को खोलने वाले आसन करने चाहिए। हम पादोत्तानासन, कोणासन कर सकते हैं। इसे करने के लिए हमें खड़े या बैठकर पौरों को फैलाकर करना होता है। अगर हम यह आसन करेंगे तो चक्र संतुलित होगा। संतुलित चक्र होने से पूर्वानुमान शक्ति बढ़ेगी। दया एवं मैत्री भाव, जोश, अंतरंगता या अपनेपन का भाव एवं हास्य भाव जागृत होगा। स्वादिष्ठान चक्र में असंतुलन के कारण कमर के निचले भाग में दर्द , साइटिका, क्षीण मैथुन शक्ति, जंघा की हड्डियों में दर्द होता है। मूत्र निकलने वाले जगह पर रोग, अपच की समस्या आती है। वायरस और इन्फेक्शन से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता में कमी आती है। थकान, महिलाओं में मासिक धर्म की अनियमितता की समस्या आती है।
स्वादिष्ठा संतुलित करने के लिए यह आसन करें
पादोत्तानासन को ऐसे करें
- ताड़ासन की मुद्रा में खड़े हो जाएं
- अपने पैरों को अपने कद के अनुसार तीन से चार फीट खोल लें
- सांस को अंदर लें और हाथों को कमर पर रखें
- धीरे से सांस छोड़ते हुए कूल्हों को झुकाना शुरू करें
- सांस लेते समय सिर उठाएं और सामने की तरफ देखें
- सिर और पीठ को एक सीधाई में रखें
कोणासन करने की विधि
- सीधे खड़े रहते हुए पैरों में कूल्हे की चौड़ाई जितनी दूरी बनाएं
- दोनों हाथों को शरीर के साइड में रखें
- एक हाथ ऊपर करते हुए सांस छोड़ते हुए रीढ़ की हड्डी को झुकाते हुए दाहिनी ओर झुकें
- अपने श्रोणि को बाईं ओर ले जाएं और थोड़ा और झुकें
- अपने बाएं हाथ को ऊपर की ओर तना हुआ रखें
- सांस लेते हुए अपने शरीर को वापस सीधा करें
- सांस छोड़ते हुए अपने बायें हाथ को नीचे लाएं
3. मणिपुर चक्र करने से पेट से जुड़ी बीमारी होती है ठीक
यह चक्र शरीर में नाभि के स्थान के स्थान पर होती है। इसे करने से पेट संबंधी बीमारियों को ठीक किया जा सकता है। मणिपुर चक्र पेट के ऊपरी भाग लिवर, मेरुदंड के मध्य भाग, छोटी आंत के संचालन को नियंत्रित करता है। इसे संतुलित करने के लिए सूर्य-नमस्कार, वीर-आसन, धनुरासन, अर्ध-मत्स्येन्द्र आसन व उदार-पेशियों को शक्तिशाली बनाने के लिए नौकासन, दण्डासन करना चाहिए। इसे करने के लिए उष्मा उत्पन्न होती है। संतुलित चक्र होने से लोगों की पाचन शक्ति अच्छी होती है। व्यक्ति में आत्मविश्वास बढ़ता है। शरीर में ऊर्जा आती है। इसके अंसुलन से डायबिटीज, अल्सर, आंतों में ट्यूमर, बुलिमिया, लो बीपी, गठिया इत्यादि रोग होते हैं।
मणिपुर चक्र संतुलित करने के लिए यह आसन करें
सूर्य-नमस्कार की विधि
- इसे करने के लिए दोनों हाथों को जोड़कर सीधे खड़े हों जाएं
- आंख बंद करें, ध्यान 'आज्ञा चक्र' पर केंद्रित कर 'सूर्य भगवान' का आह्वान करें
नौकासन को ऐसे करें
- इस आसन को करने वाले व्यक्ति की पुजिशन नौका या नाव जैसी होती है
- सबसे पहले पीठ के बल लेट जाएं
- दोनों पैरों को जोड़ लें
- लंबी सांस लेते हुए पैरों और छाती को उठाएं
4. अनाहत चक्र : इसमें असंतुलन से कमर, कंधो की परेशानी होती है
यह चक्र हृदय के पास होता है। इस चक्र से ह्रदय, पसलियों, रक्त संचार प्रणाली, स्तन, फेफड़ों, डायफ्राम, थाइमस ग्लैंड, भोजन नलिका, कन्धों, भुजाओं व हाथों का संचालन होता है। इस चक्र से असंतुलन से कमर, कंधो की परेशानी होती है। इसे करने से व्यक्ति भरोसेमंद, क्षमावान, करूणावान होता है। इसके लिए हमें छाती खोलने वाले आसान व प्राणायाम करना चाहिए। हम इसके लिए अनुलोम-विलोम, उष्ट्रासन, भुजंगासन, मत्स्यासन नाड़ी-शोधन प्राणायाम, भस्त्रिका प्राणायाम कर सकते हैं।
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अनाहत चक्र करने के लिए यह आसन करें
भुजंगासन करने की विधि
- योगा मैच पर पेट के बल लेट जाएं
- हाथों को योगा मैट पर रखें और धीरे-धीरे शरीर के आगे के हिस्से को सांप की तरह ऊपर की ओर उठाएं
- कुछ देर तक इसी तरह पुजिशन बनाए रखें
- फिर वापस उसी अवस्था में आ जाएं
अनुलोम विलोम की विधि
- अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा और कंधों को ढीला छोड़कर आराम से बैठें
- नाक के दाएं छिद्र से सांस खींचेंगे और बाई छिद्र से निलाएंगे
- ठीक ऐसा ही दूसरे नाक के साथ भी करेंगे
5. विशुद्धि चक्र : इसमें कमी आने से मनुष्य खुद को सही से नहीं कर पाता प्रस्तु
यह चक्र गले में होता है। इस चक्र में अंतुलन से मनुष्य में कमजोर इच्छाशक्ति आ जाती है। अपने विचारों को सही ढंग से प्रस्तुत नहीं कर पाते हैं। विश्वास कम हो जाता है। निर्णय नहीं ले पाते हैं। इस चक्र को संतुलित करने के लिए मत्स्य आसान, मार्जरी आसन, ग्रीना आसन अदि करना चाहिए। इसे करने से मनुष्य में सृजनात्मकता, विश्वास, सत्य-परायणता, आत्म-सजगता बढ़ता है और विचारों को आदान-प्रदान करना ठीक होता है।
विशुद्धि चक्र करने के लिए आसन
मत्स्यासन करने की विधि
- कमर के बल योगा मैट पर लेट जाएं
- अपने हाथों और पैरों को शरीर के साथ जोड़ लें
- सिर को जमीन पर आराम से छूते हुए अपनी कुहनियों को जोर से जमीन पर दबाएं
- सारा भार कुहनियों पर डालें, सिर पर नहीं
- अपनी छाती को ऊंचा उठाएं, जांघ और पैरों को जमीन पर दबाएं
- जब तक हो सके इस आसन में रहें
- लंबी गहरी सांसें लेते रहें
- हर बाहर जाती सांस के साथ विश्राम करें
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मार्जरी आसन की विधि
- घुटनो और हाथों के बल पर पीठ को मेज जैसा बनाएं
- सांस लेते हुए अपनी ठोड़ी को ऊपर की ओर करें
- फिर सर को नीचे की ओर ले जाएं
6. आज्ञाचक्र : इसमें असंतुलन से कम दिखता-बहरेपन की शिकायत आती है
यह चक्र हमारी दोनों आंखों के बीच में होता है। इस चक्र से आंख, नाक, कान, दिमाग, तंत्रिका तंत्र संचालित होती है। इसके असंतुलित रहने से व्यक्ति को कम दिखता है, बहरेपन की शिकायत आती है। सिर दर्द, आंख से संबंधित बीमारी होती है। लोग डिप्रेशन में चले जाते हैं। इसे संतुलित करने के लिए हमें चक्षु व्यायाम, शिशु आसन, अनुलोम विलोम, कपालभाति आदि करना चाहिए।
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आज्ञाचक्र करने के लिए आसन
अनुलोम विलोम की विधि
- सबसे पहले चौकड़ी मारकर बैठ जाएं
- नाक के बाएं छिद्र से सांस भरेंगे और दाहिने से छोड़ेंगे
- कुछ देर तक सांस को अंदर रखेंगे
- अगर हम बाएं छिद्र से 10 सेकेंड में सांस ले रहे हैं तो चार सेकेंड तक सांस को अंदर रखेंगे
- ठीक ऐसा ही दूसरे नाक से दोहराएंगे
कपालभाति की विधि
- सबसे पहले पलथी मारकर बैठ जाएं
- दोनों हाथों से चित्त मुद्रा बनाएं
- दोनों हाथों को अपने दोनों घुटनों पर रखें
- इस आसन में नाक से सांस को छोड़ना नहीं है, सांस को तेजी से फेंकना है ( तेजी से सांस छोड़ना इसे कह सकते हैं )
- इसे सात से 10 मिनट तक करना चाहिए
- फिर विश्राम करें
7. सहस्त्रार चक्र : इसमें असंतुलन से थकान होता है
यह चक्र हमारे सिर के केंद्र भाग में होता है। यह दिमाग और तंतु प्रणाली व पीनियल ग्रंथि को नियंत्रित करता है। इसके असंतुलित होने से मनुष्य को थकान महसूस होती है। प्रकाश और ध्वनि के प्रति संवेदनशीलता बढ़ जाती है। इसे संतुलित करने के लिए मुद्रा और ध्यान करना चाहिए इससे शरीर के प्रति सजगता उत्पन्न होती है। इसके संतुलित होने से व्यक्ति का दिमाग तेज होता है। मनुष्य विचारवान बनता है। दूर दृष्टि प्राप्त होती है।
इन योगासन को करने के पहले योग प्रशिक्षक से लें ट्रेंनिंग
इन तमाम योगासन को करके आप शरीर को स्वस्थ्य व संतुलित कर सकते हैं। लेकिन इसके पहले जरूरी है कि योग प्रशिक्षक से ट्रेनिंग ले लिया जाए। क्योंकि हर व्यक्ति का शरीर अलग होता है, कई लोगों को बीमारी होती है तो कई निरोग रहते हैं। आप अच्छे से योग करें इसके लिए पहले एक्सपर्ट के निर्देशन में योग करना सही रहता है। ताकि जहां भी आप गलती कर रहे हों योग प्रशिक्षक आपकी गलतियों को सुधारें।
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