जब हमारी आहार नली, यानी जो नली मुंह से पेट तक भोजन व पानी ले जाने का काम करती है, कैंसर के प्रभाव में आ जाती है, तो उसे एसोफैगल कैंसर कहते हैं। आहार नली को एसोफैगल कॉर्ड भी कहा जाता है। जानिए ऐसे कौन से कारण होते हैं, जो एसोफैगल कैंसर के कारण बनते हैं।
जब एसोफेगल यानी आहार नली किसी कारणवश कैंसरग्रस्त हो जाती है, तो उसे एसोफैगल कैंसर कहा जाता है। एसोफेगस जहां पर पेट से जुड़ती है वहां इसकी परत एक अलग प्रकार की कोशिकीय बनावट की होती है, जिसमें विभिन्न केमिकल्स का रिसाव करने वाली अनेक ग्रंथियां अथवा संरचनाएं होती हैं।
यदि एसोफेगस का कैंसर उस हिस्से से शुरू होता है जहां पर ट्यूब पेट से मिलता है, तो इस कैंसर को स्क्वामस सेल कार्सिनोमा कहते हैं। यदि यह एसोफेगस के ग्रंथियों वाले हिस्से से शुरू होता है तो इसे एडेनोकार्सिनोमा (ग्रंथियों की बनावट वाले हिस्सें का कैंसर) कहते हैं।
एसोफैगल कैंसर के कारण को लेकर कोई निश्चित नहीं है लेकिन इससे जुड़े जोखिमों में निम्न शामिल हैं:
उम्र
जिन लोगों की उम्र 50 से अधिक होती है उनमें एसोफैगल कैंसर पाये जाने की आशंका अधिक होती है। इसलिए इस उम्र के लोगों को इसके लक्षणों के प्रति सचेत रहना चाहिए। और किसी भी प्रकार की आशंका हो, उन्हें डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
पुरुषों को अधिक खतरा
पुरुषों को एसोफैगल कैंसर होने का खतरा महिलाअों के मुकाबले अधिक होता है। एक अनुमान के अनुसार महिलाओं की तुलना में पुरूषों में इस रोग का खतरा प्राय: तीन गुना तक अधिक होता है।
प्रजाति
स्क्वामस सेल एसोफैगल कैंसर श्वेत लोगों की तुलना में प्राय: अफ्रीकी-अमेरिकी लोगों में तीन गुना अधिक पाया जाता है। हालांकि अफ्रीकी-अमेरिकी लोगों की तुलना में काकेशियन लोगों में लोअर एसोफेगस के एडेनोकार्सिनोमा के मामले ज्यादा पाए जाते हैं।
तम्बाकू का प्रयोग
किसी भी प्रकार से तम्बाकू उपयोग से एसोफेगल कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। आप जितने ज्यादा वक्त तक धूम्रपान करते हैं और प्रतिदिन इसे जितना अधिक करते हैं उतना ही इसका जोखिम बढ़ जाता है। स्क्वामस सेल एसोफैगल कैंसर के लिए यह बिल्कुल सत्य है। एसोफेगल कैंसर वाले मरीजों में सिर और गर्दन का कैंसर पनपने का खतरा भी तम्बाकू उपयोग से जुड़ा है।
शराब का प्रयोग
शराब अत्यधिक पीना, विशेषकर जब इसके साथ तम्बाकू भी प्रयोग की जा रही हो, जोखिम बढ़ाता है। यह भी स्क्वामस सेल एसोफेगल कैंसर के लिए बिल्कुल सत्य है। तीखी शराब पीना, बीयर या वाईन की तुलना में और भी ज्यादा हानिकारक है लेकिन शराब पीने की मात्रा ज्यादा महत्वपूर्ण है। कुछ अनुसंधानों से पता चला है कि एसोफेगल कैंसर वाले लोगों में एल्कोहल पीने वालें लोगों से उपाचय(मेटाबोलिज्म)अलग होता है जो नहीं पीते हैं और जिनमें यह कैंसर नहीं होता।
बैरेट्स एसोफेगस
क्रॉनिक एसिड रिफ्लक्स द्वारा होने वाले इरिटेशन का कारण माना जाता है। एसोफेगस के तले में कोशिकाऐं पेट की लाईनिंग की कोशिकाओं की तरह ग्रेंडुलर कोशिकाओं में बदल जाती हैं। इन ग्रेंडुलर कोशिकाओं में कैंसरयुक्त होने की संभावना अधिक होती है। लोअर एसोफेगस एडेनोकार्सिनोमा कैंसर के ज्ञात जोखिमों में यह सबसे बड़ा है।
रासायनिक जलन
प्राय: बचपन में सज्जीदार पानी (लाई) सूंघ लिए जाने से या रेडिएशन से एसोफेगल कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। केमिकल इरिटेशन एक्लेसिया नामक दशा में भी हो सकता है ,जिसमें एसोफेगस का हिस्सा बढ़ जाता है और आंशिक पचे भोजन को संग्रह करता है। इस दशा में पेट में भोजन भेजने के लिए एसोफेगस की मांसपेशीय क्षमता भी घट जाती है, जिससे भोजन संचय होता है और एसोफेगस बढ़ जाता है।
आहार
ऐसा आहार जिसमें फलों, सब्जियों और कुछ विटामिन्स व खनिजों की मात्रा कम हो उससे एसोफेगल कैंसर का खतरा अधिक हो जाता है। भोजन के नाइट्रेट और अचार वाली सब्जियों के फंगल टॉक्सिन का सम्बन्ध भी एसोफेगल कैंसर से पाया गया है।
चिकित्सकीय समस्याएं
दो दशाओं का सम्बन्ध एसोफेगल कैंसर से होता है: एक तो प्लमर विज़न, जिसे पीटरसन-कैले सिंड्रोम भी कहते हैं और टॉयलोसिस। प्लमर विज़न में एसोफैगस में छोटी झिल्ली़ जैसी संरचनाएं एसोफेगस के नली वाले हिस्से में होती हैं इन्हें एसोफेगल वेब्स भी कहते हैं जो लौह तत्व (ऑयरन) की कमी वाले एनीमिया के कारण हो जाती हैं। टॉयलोसिस का सम्बन्ध हथेलियों और पैरों के तलवों में कैरेटिन के अत्यधिक बनने (हायपरकैरेटोसिस) से है। दोनों समस्याओं में एसोफेगल कैंसर होने का जोखिम बढ़ जाता है।
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