मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराने से पहले ध्‍यान रखने वाली जरूरी बातें

मोतियाबिंद (कैटरेक्ट) के ऑपरेशन के बाद आंख के पर्दे (रेटिना) की बीमारियों से पीड़ित मरीजों को भी दृष्टि लाभ होता है, लेकिन इसके लिए उनकी पूरी तरह से जांच आई स्पेशलिस्ट द्वारा होनी चाहिए... 
  • SHARE
  • FOLLOW
मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराने से पहले ध्‍यान रखने वाली जरूरी बातें

सफेद मोतियाबिंद का ऑपरेशन विश्व में न केवल सबसे ज्यादा किया जाने वाला ऑपरेशन है बल्कि यह सफल ऑपरेशनों में से एक है। इस ऑपरेशन के बाद दृष्टि लाभ से संबंधित परिणाम काफी अच्छे मिलते हैं। अनेक लोगों में मोतियाबिंद के अलावा आंख के पर्दे (रेटिना) की बीमारी भी हो जाती है। जैसे डायबिटीज का पर्दे पर खराब असर या डायबिटिक रेटिनोपैथी, एपिरेटिनल मेंब्रेन, मैक्युलर डिजनरेशन, रेटिनल डिटैचमेंट (पर्दे का अपनी जगह से हटना) आदि। ऐसी स्थिति में मोतियाबिंद के ऑपरेशन में कई सजगताएं बरतनी पड़ती हैं।


इस पेज पर:-


  

इन बातों का रखें ख्याल  

रेटिना की बीमारी में मोतियबिंद का ऑपरेशन होने पर अनेक बातों का ध्यान रखना पड़ता है। जैसे ऑपरेशन कब होना चाहिए, किस तकनीक के उपयोग से ऑपरेशन किया जाना चाहिए, कृत्रिम लेंस का चयन और सबसे महत्वपूर्ण बात है ऑपरेशन के बाद मरीज की दृष्टि में बेहतरी।  अगर मरीज का पहले से आंख के पर्दे का ऑपरेशन हुआ है तो मोतियाबिंद के ऑपरेशन में कुछ जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं। जैसे अगर आंख के अंदर सिलिकॉन तेल डाला है तो कृत्रिम लेंस का नंबर ठीक नहीं आ पाता, लेंस की झिल्ली का फट जाना या आंख में दबाव बढ़ना आदि दिक्कतें सामने आ सकती हैं। 

कई बार ऐसा देखा गया है कि आंख के पर्दे की बीमारियां- जैसे डायबिटिक रेटिनोपैथी, एपिरेटिनल मेंब्रेन, रेटिनल वेन ऑक्लूसन आदि मोतियाबिंद के ऑपरेशन के बाद बढ़ जाती हैं। इसके परिणामस्वरूप आंख की रोशनी कम होने की आंशका बढ़ जाती है। इसलिए पर्दे की बीमारियों से पीड़ित रोगियों की मोतियाबिंद  के ऑपरेशन से पहले आंखों की पूर्ण जांच होनी चाहिए। 

डायबिटीज का रेटिना पर प्रभाव 

मोतियाबिंद के मरीज अगर डायबिटीज से भी ग्रस्त हैं,तो अनियंत्रित ब्लड शुगर के कारण उनकी रेटिना पर खराबअसर पड़ता है, जिसे मेडिकल भाषा में डायबिटिक रेटिनोपैथी कहते हैं। ऐसे मरीजों में मोतियाबिंद ऑपरेशन के बाद पर्दे के देखने वाले हिस्से में सूजन या मैक्युलर एडिमा हो जाता है या डायबिटिक रेटिनोपैथी बढ़ जाती है जिससे दृष्टि लाभ कम होता है। डायबिटिक रेटिनोपैथी से पीड़ित मरीजों में किसी भी स्थिति में मैक्युलर एडिमा या सूजन आ सकती है जो आंख की रोशनी कम होने का प्रमुख कारण है। 

इसे भी पढ़ें: क्‍या है आंखों का भेंगापन, जानें कारण और लक्षण 

जरूरी हैं जांचें 

मोतियाबिंद के ऑपरेशन से पहले रेटिना के विकारों से ग्रस्त लोगों को आंख की पुतली फैलाकर पूरी तरह से जांच करानी चाहिए। पर्दे की जांच ऑप्टिकल कोहीरेंंंस टोमोग्राफी (ओ.सी.टी.) एवं फंडस फ्लोरोसिन एंजियोग्राफी (एफ.एफ.ए) द्वारा की जाती है। यदि पर्दे पर डायबिटिक रेटिनोपैथी का असर है और मोतियाबिंद के कारण अगर इलाज में बाधा नहीं आ रही है तो ऑपरेशन से पहले आंख के पर्दे का इलाज किया जाता है।

पर्दे की सूजन का इलाज फोकल लेजर, इंट्राविट्रियल इंजेक्शन एवं स्टेरॉयड इंप्लांट द्वारा किया जाता है। कृत्रिम लेंस का चयन भी सोच समझकर किया जाता है। मोनोफोकल टोरिक लेंस का चयन किया जाए और मल्टीफोकल लेंस का प्रत्यारोपण न किया जाए, इस बात की कोशिश की जाती है। अगर मोतियाबिंद का दुष्प्रभाव ज्यादा है और यह स्थिति पर्दे के इलाज के लिए बाधक है तो इन्ट्राविट्रियल इंजेक्शन मोतियाबिंद  के ऑपरेशन से पहले लगाया जाता है।  

Inputs: डॉ. राजीव जैननेत्र रोग विशेषज्ञ नई दिल्ली 

ऐसे अन्य स्टोरीज के लिए डाउनलोड करें: ओनलीमायहेल्थ ऐप

Read More Articles On Health Diseases In Hindi

Read Next

झुककर बैठने और लेटकर पढ़ने से हो सकता है सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस, जानें बचाव और उपचार

Disclaimer

How we keep this article up to date:

We work with experts and keep a close eye on the latest in health and wellness. Whenever there is a new research or helpful information, we update our articles with accurate and useful advice.

  • Current Version