अगर आप कृत्रिम रोशनी में लगातार रहते हैं तो हो जाएं सावधान

अगर आप अपने दिन के दस घंटे से अधिक का समय कृत्रिम रोशनी में गुजारते हैं तो आपको अवसाद व अनिद्रा की समस्या हो सकती है।
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अगर आप कृत्रिम रोशनी में लगातार रहते हैं तो हो जाएं सावधान


जैसे जैसे प्रतिस्पर्धा का युग बढ़ रहा है वैसे वैसे कृत्रिम रोशनी पर हमारी निर्भरता बढ़ती जा रही है। लेकिन शायद आप यह नहीं जानते कि कृत्रिम रोशनी हमारे स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव डालती है। यही कारण है कि दिनों कृत्रिम रोशनी से जुड़ी बीमारियां फैल रही हैं। हैरानी इस बात की है कि हममें से ज्यादातर लोग इस सच्चाई से अवगत नहीं है। अतः इस लेख में हम कृत्रिम रोशनी से जुड़ी तमाम बीमारियों पर एक नजर दौड़ाएंगे साथ ही जानेंगे कि इससे दूर कैसे रहा जाए।

 

पर्याप्त नींद न होना

यह कहने की जरूरत नहीं है कि हम जितना ज्यादा कृत्रिम रोशनी के सामने समय गुजारते हैं, उतनी ही हमारी नींद प्रभावित होती है। दरअसल आज की युवा पीढ़ी न सिर्फ रात रात कंप्यूटर स्क्रीन पर समय गुजारती है वरन इंटरटेनमेंट का माध्यम भी कंप्यूटर स्क्रीन ही बनकर रह गया है। ऐसे में आंखें कृत्रिम रोशनी की अभ्यस्त होती जा रही है। लेकिन इसका सबसे बड़ा नुकसान हमारे शरीर को झेलना पड़ रहा है। हमें देर रात तक नींद नहीं आती। जितनी नींद आती है, वह क्वालिटी नींद नहीं होती। इसका सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है।

सजग न रह पाना

नींद की कमी हमें सजग नहीं रहने देती। यही कारण है कि जो लोग ज्यादा से ज्यादा समय कृत्रिम रोशनी में गुजारते हैं, उनमें सजगता की कमी हो जाती है। असल में कृत्रिम रोशनी के कारण उनकी आंखें अकसर बोझिल रहती हैं। मस्तिष्क तनाव से भर जाता है। यही नहीं कृत्रिम रोशनी में से अत्यधिक समय गुजारने से मन भी उदास रहने लगता है। ऐसे में सजगत को छिन जाना कोई हैरानी नहीं है। अतः इस बात को समझें कि कृत्रिम रोशनी से दूर रहें ताकि सजगत दूर न जा पाए।

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आंखों का कमजोर होना

आपको यह बताते चलें कि पिछले तीन दशकों से भले हम कृत्रिम रोशनी पर पूरी तरह निर्भर हो गए हैं। नतीजतन हमारा मस्तिष्क कृत्रिम रोशनी में काम करने को ट्रेन होता जा रहा है। बावजूद इसके हमारी आंखें अब भी कृत्रिम रोशनी में काम करते हुए थकन महसूस करती है। यही नहीं कई बार आंखें कमजोर हो जाती हैं और आंखों से पानी आने लगता है। आपको यह जानकर हैरानी नहीं होगी कि पिछले कुछ सालों में ऐसे लोगों की संख्या काफी ज्यादा बढ़ी है जो आंखों की किसी न किसी समस्या से जूझ रहे हैं। यह कृत्रिम रोशनी के कारण हुआ है।

 

बॉडी क्लाक का बिगड़ना

सदियों से मानव शरीर सूर्य की रोशनी का आदि है। हालांकि पिछले कुछ सालों में कृत्रिम रोशनी ने मानव शरीर पर अपना दबदबा कायम करने में सफल होता जा रहा है। लेकिन कहने योग्य बात यह है कि कृत्रिम रोशनी के कारण हमारे शरीर का बाडी क्लाक बिगड़ता जा रहा है। इतिहास कहता है कि लोग पहले दिन में काम करते थे और रात को पर्याप्त नींद लेते थे। जबकि आज दिन और रात काम के लिहाज से बराबर हो गए हैं। नाइट शिफ्ट का कल्चर ही चल निकला है। ऐसे में बाडी क्लाक का बिगड़ना कोई हैरानी की बात नहीं है। लेकिन गौर करें इससे शरीर को भारी नुकसान पहुंच रहा है।

 

रक्तचाप सम्बंधी समस्या

मौजूदा समय में कृत्रिम रोशनी में काम करने का मतलब है कि आप कंप्यूटर स्क्रीन के सामने बैठे हुए हैं। लगातार बैठे रहने से हमें कई किस्म की बीमारियां आकर घेर लेती हैं। इसमें एक है रक्तचाप में उतार-चढ़ाव आना। वैसे भी यदि आप इन दिनों मरीजों की एक लिस्ट बनाएं तो उसमें अच्छी खासी तादाद में रक्तचाप के मरीज मिलेंगे। हैरानी की बात है कि आज सिर्फ बुजुर्ग नहीं वरन युवा पीढ़ी भी रक्तचाप जैसी बीमारी से रूबरू हो रही है।

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अवसाद बढ़ना

कृत्रिम रोशनी न सिर्फ हमारे शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है वरन मानसिक रूप से भी हमें नहीं छोड़ती। ज्यादा से ज्यादा समय कृत्रिम रोशनी में गुजारने का मतलब है कि हमारा किसी दूसरे व्यक्ति से कोई सरोकार नहीं है। इसका मतलब यह भी है कि हम अकेले हैं। भले मौजूदा समय में कई सोशल नेटवर्किंग साइटें मौजूद हैं। लेकिन भौतिक रूप से किसी मिलना और वर्चुअल रूप से किसी से मिलने में फर्क होता है। वर्चुअल लाइफ में हमारे चाहे कितने ही दोस्त क्यों न हो जाएं; लेकिन समस्या के समय सिर्फ भौतिक दोस्त ही काम आते हैं। बहरहाल कृत्रिम रोशनी में काम करने से अवसाद भी बढ़ता है।

 

क्या करें

ईमानदारी से बताएं तो कृत्रिम रोशनी से बचने का कोई उपाय नहीं है। इसके लिए आपको अपनी जीवनशैली में बदलाव करने होंगे। संभव हो तो स्क्रीन या कृत्रिम रोशनी में कम से कम समय गुजारें। एक जगह स्थिर न रहें। शरीर को गतिशील रखें। दिमाग सक्रिय रखें। ऐसा करने से ही आप कई बीमारियों को दूर भगा सकते हैं।

 

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