दिल टूटने की बात को विज्ञान भी सच मानता है। रिसर्च के अनुसार दुनियाभर में कोरोना वायरस महामारी के दौरान दिल टूटने के मामले काफी ज्यादा बढ़े हैं।
दिल टूटने की बात आपको हमेशा शायराना लगती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि मेडिकल साइंस भी दिल टूटने को एक स्वास्थ्य समस्या के तौर पर देखता है? जी हां, हम बात कर रहे हैं ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम (Broken Heart Syndrome) की, जिसमें व्यक्ति इमोशनल तौर पर बहुत ज्यादा तनाव से भर जाता है, जिसके कारण उसे कई तरह की परेशानियां आने लगती हैं। क्लीवलैंड क्लीनिक के द्वारा की गई एक नई रिसर्च में बताया गया है कि कोरोना वायरस महामारी के दौरान दुनियाभर में ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम यानी दिल टूटने के मामले बहुत ज्यादा बढ़े हैं। ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम को स्ट्रेस कार्डियोमायोपैथी (Stress Cardiomyopathy) भी कहते हैं। ये हृदय से जुड़ी एक समस्या है।
क्लीवलैंड क्लीनिक के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. अंकुर कालरा बताते हैं, "कोरोना वायरस महामारी ने कई तरह से लोगों को प्रभावित किया है और दुनियाभर में तनाव को बढ़ाया है। इस समय लोग न सिर्फ अपनी सुरक्षा की चिंता में परेशान हैं, बल्कि अपने परिवार और प्रियजनों को बीमार होता हुआ भी देख रहे हैं। इन सबसे अलग लोग आर्थिक और मनोवैज्ञानिक दोनों तरह से टूट रहे हैं और कई तरह की सामाजिक समस्याओं का भी सामना कर रहे हैं। घरों में बंद रहने के कारण लोगों में अकेलापन बढ़ता जा रहा है और यही कारण है कि लोगों का तनाव बढ़ा है।"
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उन्होंने आगे कहा, "तनाव का सिर्फ मस्तिष्क नहीं, बल्कि शरीर और हृदय पर भी बुरा असर पड़ता है। इन दिनों हमारे पास ऐसे मरीजों की संख्या बहुत ज्यादा बढ़ रही है जो स्ट्रेस कार्डियोमायोपैथी से गुजर रहे हैं।"
इंसान का दिल यानी हार्ट बहुत नाजुक अंग होता है। जब कोई व्यक्ति इमोशनल तौर पर किसी बहुत तनाव भरी स्थिति से गुजरता है, तो उसके हार्ट की मसल्स में संकुचन होता है और कई बार तो हार्ट फेल्योर या हार्ट डिस्फंक्शन की समस्या भी हो सकती है। इस समस्या में व्यक्ति को वैसे ही लक्षण महसूस हो सकते हैं, जैसे हार्ट अटैक के समय महसूस होते हैं, जैसे- सीने में दर्द, सांस लेने में तकलीफ, माथे पर पसीना आदि। आमतौर पर ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम में व्यक्ति की कोरोनरी आर्टरीज (धमनियां) ब्लॉक नहीं होती हैं, इसलिए उसकी मौत नहीं होती है। लेकिन ऐसा संभव है कि जिस व्यक्ति को ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम हुआ हो, उसके दिल के बाएं हिस्से में सूजन आ सकती है।
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इस अध्ययन के लिए क्लीवलैंड क्लीनिक में 1 मार्च से 30 अप्रैल के बीच आने वाले 258 मरीजों की जांच की गई जिन्हें हार्ट से जुड़ी समस्या थी, जिसे एक्यूट कोरोनरी सिंड्रोम (ACS) कहा जाता है। क्लीवलैंड के डॉक्टर्स के मुताबिक महामारी से पहले जहां ऐसे मरीजों के आने की दर 1.7% थी, वहीं महामारी के बाद इनकी संख्या 7.8% हो गई है। इसके अलावा यह भी देखा गया कि महामारी के दौरान अस्पताल पहुंचने वाले हार्ट के मरीजों को ठीक होने में पहले की अपेक्षा ज्यादा समय लग रहा है। आमतौर पर स्ट्रेस कार्डियोमायोपैथी के मरीज कुछ दिनों या सप्ताह भर में ठीक हो जाते हैं। इस अध्ययन को JAMA Network Open में छापा गया है।
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