मनोवैज्ञानिक समस्या है एडजस्टमेंट डिसॉर्डर, जानें लक्षण और बचाव

अगर कोई व्यक्ति छह महीने के बाद भी किसी नए माहौल के अनुकूल खुद को ढालने में असमर्थ हो तो ऐसी मनोदशा को एडजस्टमेंट डिसॉर्डर कहा जाता है। 
  • SHARE
  • FOLLOW
मनोवैज्ञानिक समस्या है एडजस्टमेंट डिसॉर्डर, जानें लक्षण और बचाव


उनके घर मैं नहीं जाऊंगा, वो लोग मुझे अच्छे नहीं लगते, मैं उससे बात करना पसंद नहीं करती... बातचीत के दौरान कुछ लोग अकसर ऐसे जुमलों का इस्तेमाल करते हैं। नए माहौल के साथ सामंजस्य स्थापित करने में सभी को थोड़ी दिक्कत हो सकती है लेकिन सामान्य स्थितियों में ऐसी समस्या जल्द ही दूर हो जाती है। मुश्किल तब आती है, जब कोई व्यक्ति नए माहौल के साथ सामंजस्य बिठाने की कोशिश ही नहीं करता। अगर कोई व्यक्ति छह महीने के बाद भी किसी नए माहौल के अनुकूल खुद को ढालने में असमर्थ हो तो ऐसी मनोदशा को एडजस्टमेंट डिसॉर्डर कहा जाता है। दूसरों के साथ तालमेल न बिठा पाना भी एक तरह की मनोवैज्ञानिक समस्या है, जिसे एडजस्टमेंट डिसॉर्डर कहा जाता है। क्यों होता है ऐसा, आइए जानते हैं।

इसे भी पढ़ें : इन 5 तरीकों से बूस्ट करें अपनी ब्रेन पावर, याददाश्त होगी तेज

क्या है वजह 

  • किसी करीबी व्यक्ति का निधन
  • दांपत्य संबंधों में तनाव 
  • लंबी बीमारी
  • कोई आकस्मिक दुर्घटना
  • आर्थिक परेशानी
  • किसी आशंका से पैदा होने वाला भय
  • जीवन में कोई बड़ा बदलाव, जैसे अपना शहर या देश छोड़कर दूसरी जगह शिफ्ट होना 
  • ब्रेन की संरचना को भी इसके लिए जि़म्मेदार माना जाता है। कुछ लोगों में जन्मजात रूप से  तनाव झेलने की क्षमता बहुत कम होती है। ऐसे लोगों को यह समस्या हो सकती है।

प्रमुख लक्षण

  • विद्रोही व्यवहार
  • अनावश्यक चिंता
  • निराश और लाचारी महसूस करना
  • स्थायी उदासी और एकाग्रता में कमी
  • आत्मविश्वास का कमज़ोर पडऩा
  • इसके अलावा एडजस्टमेंट डिसॉर्डर से पीड़ित लोगों में कुछ शारीरिक लक्षण भी नज़र आते हैं। जो इस प्रकार हैं, अनिद्रा, मांसपेशियों में खिंचाव, दर्द या सूजन, अनावश्यक थकान, पाचन-क्रिया में गड़बड़ी आदि। 

इसे भी पढ़ें : जानें, इरफान खान को हुए न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर के बारे में पूरी जानकारी

बचाव एवं उपचार

  • शादी, होम शिफ्टिंग या करियर संबंधी बदलाव के लिए पहले से ही मानसिक रूप से तैयार रहने की कोशिश करें।
  • परिवार के सदस्यों, दोस्तों, पड़ोसियों या कलीग्स की भी यह जि़म्मेदारी बनती है कि वे अपने शालीन व्यवहार से नए माहौल में आने वाले व्यक्ति को सहज महसूस करवाए।
  • इन प्रयासों के बावज़ूद अगर व्यक्ति के व्यवहार में कोई बदलाव नज़र न आए तो विशेषज्ञ से सलाह लेने में संकोच न करें।
  • आमतौर पर काउंसलिंग और कॉग्नेटिव बिहेवियर थेरेपी से यह समस्या दूर हो जाती है। शारीरिक लक्षणों को दूर करने के लिए कुछ दवाएं भी दी जाती हैं।
  • इस तरह उपचार के महीने भर बाद से ही व्यक्ति के व्यवहार में सकारात्मक बदलाव नज़र आने लगता है।
  • हमेशा खुश रहें और अपना सामाजिक दायरा बढ़ाने की कोशिश करें।
  • अगर अचानक आपको बहुत ज्य़ादा अकेलापन या उदासी महसूस हो तो पहले उसकी वजह समझ कर उसे दूर करने की कोशिश करें। अगर कुछ समझ न आए तो करीबी लोगों से इस समस्या पर खुलकर बातचीत करें। 
  • हर नए बदलाव के साथ कदम मिलाकर चलने की कोशिश करें, युवाओं से बातचीत करें और नई टेक्नोलॉजी सीखने की कोशिश करें।
  • हमेशा तनावमुक्त रहें और आज के काम को कल पर न टालें।

ऐसे अन्य स्टोरीज के लिए डाउनलोड करें: ओनलीमायहेल्थ ऐप

Read More Article on Mental Health in Hindi

Read Next

इन 5 तरीकों से बूस्ट करें अपनी ब्रेन पावर, याददाश्त होगी तेज

Disclaimer