संकल्प बनते हैं, टूट जाते हैं। अपनी नाकामी के लिए हम सौ बहाने बनाते हैं। हेल्दी लाइफस्टाइल की बात हो तो बहाने हजारों होते हैं। इस किंतु-परंतु के बीच जिंदगी की गाडी चलती जाती है। अचानक झटका खाकर गाडी रुकती है, तो समझ आता है कि इसे तो सर्विसिंग की जरूरत थी और हम वर्षो से इसे यूं ही खटा रहे थे। शरीर, मन और आत्मा तीनों का स्वस्थ रहना जरूरी है। स्वस्थ रहने के लिए जरूरी ईधन है- संतुलित आहार, व्यायाम, ध्यान और योग। फिटनेस के ये गुरुमंत्र पुरुषों-स्त्रियों के लिए समान रूप से अनिवार्य हैं, मगर उन्हें न मानने के बहाने बडे अजीबोगरीब होते हैं। खासतौर पर स्त्रियों के बहाने..।
समय कहां है
स्त्रियों के लिए यह सबसे बडा बहाना है। सुबह वॉक-एक्सरसाइज? अरे समय कहां है! बच्चों को स्कूल जाना है, पति को ऑफिस और घर के सारे काम भी तो सुबह ही होते हैं। यह अलग बात है कि फोन पर वे काफी देर बात कर सकती हैं। पेरेंट्स मीटिंग में जाना हो, हज्बैंड को सुबह-सुबह ट्रिप पर निकलना हो या फिर कोई इमरजेंसी। इनके सारे बहाने खत्म हो जाते हैं और ये हर काम करके घर से निकल जाती हैं। जरा सोचें, जिस शरीर के बल पर दुनिया के हर काम कर रहे हैं, क्या उसके लिए आधा घंटा भी हमारे पास नहीं है?
एक्सरसाइज बोरिंग है
यकीनन, रोज-रोज एक ही पार्क के ट्रैक पर जॉगिंग करना, एक जैसे व्यायाम करना बोरिंग होता है। इस दिनचर्या में बदलाव जरूरी है। हफ्ते में दो-तीन दिन वॉक करें। इसके अलावा साइक्लिंग, बैडमिंटन, डांसिंग, स्विमिंग, योग, स्ट्रेचिंग, स्ट्रेंथ ट्रेनिंग जैसे कई विकल्प हैं। हफ्ते में पांच दिन रोज कम से कम 60 मिनट्स अपने लिए निकालें। दो दिन आराम करें। जॉगिंग पसंद न हो तो ब्रिस्क वॉक करें। ब्रिस्क वॉक न सही, यूं ही पैदल चलें, फायदा तो होगा।
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कमर में दर्द है
ये बडा कॉमन बहाना है। कमर दर्द होने का अर्थ यह नहीं कि चलना-फिरना तक छोड दें। हां, ऐसे में हेवी एक्सरसाइज वर्जित हैं लेकिन नॉर्मल रुटीन के काम किए जा सकते हैं। पैदल चलना सबसे सुरक्षित उपाय है। अगर स्पाइन से जुडी कोई गंभीर समस्या जैसे स्लिप डिस्क नहीं है तो सामान्य कमर दर्द में नियमित काम करने और हलका-फुलका व्यायाम करने से लोअर बैक को आराम मिलता है। अपने फिजियोथेरेपिस्ट या डॉक्टर की सलाह से स्ट्रेचिंग टिप्स भी ले सकती हैं।
उम्र का असर है
उम्र भी अकसर बहाना बन जाती है। 40 पार पहुंची नहीं कि इस लोक से ज्यादा परलोक की चिंता सताने लगती है। सच यह है कि 40 तो सिर्फ एक नंबर है। उम्र के बारे में लगातार सोचने से शरीर से ज्यादा मन थकता है, जो वाकई बुरी स्थिति है। चलने-फिरने और सामान्य वर्कआउट करने के लिए शरीर कभी बूढा नहीं होता। ऐसे में नानी-दादी को याद करें, जीवन के आखिरी समय तक भी वे नियमित कामकाज करती थीं न!
अकेले वॉक कैसे करूं
अकेले वॉक या जिम जाना भी स्वस्थ जीवनशैली से बचने का एक बहाना बनता है। यह सच है कि पार्टनर के साथ वॉक या एक्सरसाइज से अधिक फायदा होता है। पति को समय न हो तो किसी दोस्त को प्रेरित करें। साथ वॉक या एक्सरसाइज करने से थकान कम होती है और बोरियत भी नहीं होती। पार्टनर के साथ वॉक या एक्सरसाइज से समय का पता नहीं चलता और फिटनेस रुटीन के लिए थोडा ज्यादा समय निकल सकता है।
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मैं मोटी हूं
अब यह फैट कम नहीं होगा, शर्म महसूस होती है बाहर निकलने में.., यह बहाना बडा आम है। उम्र के साथ शरीर में फैट का जमाव अस्वाभाविक बात नहीं है। लेकिन इस फैट को बहाना बनाने का अर्थ है, शरीर को और बेडौल बनाते जाना। फैट ज्यादा हो तो थकान जल्दी लगती है। इसलिए शुरुआत सिर्फ 15 मिनट की वॉक से करें। मोटापे को कम करने के लिए वर्कआउट के साथ डाइट को बैलेंस रखना भी जरूरी है। जिम से लौट कर अगर घी के स्टफ्ड पराठे खा लेंगे तो इसका कोई असर नहीं होगा। इससे अच्छा है, एक्सरसाइज से आधे घंटे पहले कोई स्मॉल या मीडियम साइज फ्रूट खा लें और व्यायाम के एक घंटे बाद तक कुछ न खाएं।
मैं तो पहले ही दुबली हूं
यह भी बडा आम बहाना है। दुबली होने का मतलब यह नहीं कि शरीर को व्यायाम की जरूरत नहीं है। दुबले होने का मतलब यह भी नहीं है कि शरीर फिट है। वर्कआउट सिर्फ वजन घटाने के लिए नहीं होता, यह शरीर और मन को ऊर्जा देता है, उसे डिटॉक्सीफाई करता है। दुबली, सामान्य, मोटी..हर बॉडी टाइप को सामान्य वर्कआउट की जरूरत है।
बच्चा छोटा है
प्रसव के बाद स्त्रियां तेजी से मोटी होती हैं। इसका प्रमुख कारण है कि उन्हें अपने लिए समय नहीं मिल पाता। हॉर्मोनल बदलाव होते हैं और नींद भी पूरी नहीं होती। लेकिन जब बच्चा 3-4 महीने का हो जाए तो उसके रुटीन के हिसाब से अपना रुटीन तय करना बहुत जरूरी है। घर में सपोर्ट सिस्टम है तो बच्चे को कुछ समय छोड कर वॉक या एक्सरसाइज कर सकती हैं। कोई नहीं है तो भी बच्चे को प्रैम में लेकर निकल सकती हैं। बच्चे को भी अच्छा महसूस होगा और मां को भी ताजगी मिलेगी।
मुझे अर्थराइटिस है
व्यायाम कैसे होगा, आथ्र्राइटिस की प्रॉब्लम है..यह बहाना भी स्त्रियां बनाती हैं। हकीकत यह है कि इस समस्या में वॉक व वर्कआउट से नुकसान नहीं, फायदा होता है। स्ट्रेंथनिंग, स्ट्रेचिंग और एरोबिक्स से मसल्स मजबूत होती हैं और जोडों पर दबाव कम होता है। एक्सरसाइज से अतिरिक्त चर्बी कम होती है, जिससे दर्द में भी आराम मिलता है। नए शोध कहते हैं कि आथ्र्राइटिस, कैंसर सर्वाइवर्स, स्ट्रोक पीडित सहित पार्किसंस जैसी बीमारियों में एक्सरसाइज से फायदा होता है। लेकिन इसके लिए पहले डॉक्टर या िफजियोथेरेपिस्ट की सलाह जरूर लें, ताकि कोई ऐसी एक्सरसाइज न करें, जिससे नुकसान हो सकता हो।
घर के काम काफी हैं
यह सही है कि घरेलू काम करने से वर्कआउट होता है, लेकिन जब ये रुटीन में आ जाते हैं तो इनका अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाता। जिस तरह व्यायाम में थोडा बदलाव जरूरी है, उसी तरह घरेलू कामकाज के साथ वॉक, जॉगिंग, योग, ध्यान करने से शरीर को ज्यादा लाभ मिलता है। इसलिए बहाने छोडें और तैयार हो जाएं वर्कआउट के लिए।
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