हर माता पिता चाहते हैं कि उनका शिशु स्वस्थ रहे। आजकल के बढ़ते प्रदूषण और खाद्य पदार्थों की गिरती गुणवत्ता के चलते बच्चों में कई बीमारियां इनकी वजह से आती हैं। परिवार वाले अगर मां का पूरा ध्यान भी रखते हैं तब भी बच्चों में कोई न कोई डेफिशियंसी निकल ही आती है। लखनऊ के संजय गांधी स्नातकोत्तर आर्युविज्ञान संस्थान के आनुवांशिकी विभाग की ओर से जारी एक पुस्तिका में बताया गया है कि हर 100 बच्चे जो जन्म लेते हैं उनमें से 2 से 5 बच्चों में कोई न कोई जेनेटिक बीमारी होती है। इन बीमारियों से बचने के लिए मां और शिशु के स्क्रीनिंग टेस्ट होते हैं। आज इस लेख में गुरुग्राम के पारस अस्पताल में बाल चिकित्सका विभाग के प्रमुख डॉ. (मेजर) मनीष मनन से हम जानेंगे कि नवजात शिशुओं के लिए माता-पिता को कौन से टेस्ट कराने चाहिए। यह टेस्ट स्वस्थ शिशु के लिए बताए गए हैं।
क्यों जरूरी हैं नवजात शिशु के टेस्ट
डॉक्टर मनन का कहना है कि वे जन्म के तीन या चार दिन बाद ही एक बूंद खून से बच्चे की जांच कर लेते हैं। उससे वे जांचते हैं कि बच्चे में कोई दिक्कत तो नहीं है। डॉक्टर का कहना है कि पांच महीने बाद बच्चे कोई दिक्कत होगी तब माता-पिता उसे लेकर आते हैं, लेकिन कुछ जरूरी टेस्ट अगर वे शुरू में ही करा लेते हैं बच्चे को आगे दिक्कत कम होती है। वह स्वस्थ रहता है।
ये हैं जरूरी टेस्ट
1. पीलिया की जांच
डॉक्टर मनन का कहना है कि नवजात बच्चो में पीलिया की जांच जरूरी होती है। उनके मुताबिक, 70 फीसद बच्चों मे पीलिया पाया जाता है। यह रोग जन्म के तीसरे या चौथे दिन में बढ़ता है। पांचवे दिन पीक पर पहुंचता है। उसके बाद कम होता है। डॉक्टर का कहना है कि छोटे बच्चों में पीलिया की जांच बहुत जरूरी है। अगर यह ज्यादा बढ़ जाता है तो बच्चों के दिमाग पर भी असर कर सकता है।
यह टेस्ट बच्चा पैदा होने के दो से तीन दिन बाद पीलिया लेवल देखा जाता है। यह टेस्ट उसी दिन करने की जरूरत तब पड़ती है जब मां में कोई इंफेक्शन हो। कहीं उस इंफेक्शन के लक्षण बच्चे में तो नहीं आए हैं, तब जन्म के दिन बच्चे की जांच की जाती है या किसी की मां आरएच नेगेटिव है तो बच्चे का ब्लड ग्रुप, हिमोग्लोबिन वगैरह जांचते हैं। जिन बच्चों का ब्लड ग्रुप नेगेटिव है तो उनकी जांच जन्म के दिन की जाती है।
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2. मेटाबॉलिक स्क्रीनिंग
मेटाबॉलिक जांचों में थायरॉयड, फिनिल्केटोन्यिरया (phenylketonuria), गैलोक्टेमिया (galactosemia), बायटिनिडेज (Biotinidase Deficiency) आदि बीमारियों की जांच की जाती है। इस मेटाबॉलिक स्क्रीनिंग में बच्चे के एक बूंद खून से इन बीमारियों की जांच की जाती हैं। डॉक्टर मनन का कहना है कि इन बीमारियों के लक्षण शिशु में शुरुआती दिनों में नहीं दिखते हैं। पर आगे जाकर गंभीर रूप से दिक्कत करते हैं। इन सभी टेस्ट से शिशु का मेटाबॉलिज्म जांचा जाता है।
3. हेयरिंग स्क्रीनिंग
पारस अस्पताल में बाल चिकित्सक डॉ. मनन का कहना है कि स्वस्थ नवजात शिशु की हेयरिंग स्क्रीनिंग भी की जाती है। बच्चों को दोनों कानों से बराबर सुनाई देता है या नहीं इसके लिए हेयरिंग स्क्रीन किया जाता है। हजार में से एक बच्चे में श्रवण शक्ति की परेशानी होती है। यह परेशानी हमें शुरू में दिखाई नहीं देती, लेकिन बाद में दिखती है। इसलिए पहले से ही ये जांचे कराकर पता लगा लें कि बच्चे में कोई दिक्कत तो नहीं है। डॉक्टर का कहना है कि आजकल मेडिकल साइंस ने इतनी तरक्की पा ली है कि किसी बच्चे को कौन सी बीमारी है यह जन्म के समय ही पता लगाया जा सकता है।
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4. आंखों की जांच
डॉक्टर मनीष मनन का कहना है कि आंखों की जांच उन नवजातों की जाती है जो कमजोर पैदा होते हैं। जिनका वजन कम होता है या बच्चे को ऑक्सीजन लगी हो। सभी बच्चों को इस जांच की जरूरत नहीं पड़ती है।
स्वस्थ शिशु के लिए जरूरी टिप्स
- जनरल रूटीन चेकअप जरूरी है।
- बच्चे की ग्रोथ पर ध्यान दें।
- बच्चे के वजन और लंबाई पर ध्यान दें।
- किस उम्र में बोलना शुरू कर देना चाहिए, यह ध्यान रखें।
ऊपर बताए गए सभी टेस्ट जरूरी हैं। हर माता-पिता को इन टेस्ट के बारे में जानकारी होनी चाहिए। बच्चों को भविष्य में कोई गंभीर बीमारी न हो, उसके लिए पहले से ही कदम उठाना जरूरी है। बच्चे को दिक्कत होने पर चिकित्सक से अवश्य मिलें।
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