पीला ज्वर को पीत ज्वर भी कहते हैं, यह बहुत ही भयानक रोग है।पीला बुखार भी डेंगू, मलेरिया की तरह एक वायरल संक्रमण है। यह स्टैगोमिया नामक मच्छर के काटने से मनुष्य के शरीर में फैलता है। ये मच्छर दिन के समय काटता है। आमतौर पर इसमें पीलिया के लक्षण भी पाए जाते है। इसमें त्वचा का रंग पीला और आंखों में पीलापन दिखाई पड़ने लगता है। पीला ज्वर आरएनए वायरस से फैलता है। यह एक संक्रमित रोग है। इस रोग को पैदा करने वाले मच्छर बंदरगाहों और जहाज के आसपास पैदा होते हैं इसलिए इनको बंदर-मच्छर भी कहा जाता है। यह सिस्टमिक रोग है अर्थात यह पूरे शरीर को प्रभावित करता है। आइए जाने पीला ज्व़र के बारे में।
- जब संक्रमित मच्छर किसी मनुष्य को काटता है तो वायरस इनके रक्तप्रवाह में भ्रमण करते करते लार उत्पन्न करने वाली ग्रंथियों में जाकर ठहर जाता है,जहाँ ये रोग उत्पन्न करता है।
- पीले बुखार आमतौर पर तीन से छह दिन के बीच अचानक बढ़ने लगता है। इस पीले बुखार के दौरान अधिकांश मामलों में बुखार, सिरदर्द, ठंड लगना, पीठ दर्द, भूख,मितली और उल्टी आदि होने लगती है। इसका संक्रमण सामान्यतः तीन से चार दिन तक रहता है।
- पीला बुखार के लगभग 15 फीसदी मामलों में बुखार के साथ-साथ लीवर को क्षति पहुंचने का डर रहता है। इसमें अधिक पेट दर्द होने से पीलिया बढ़ने का खतरा रहता है जो कि स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक होता है।पीले ज्वर की गंभीर स्थिति में मुंह से खून आने लगता है, खून की उल्टियां होने लगती हैं।
- इसमें सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। ये स्थिति कई बार पीले बुखार से ग्रसित व्यक्ति के लिए घातक भी हो सकती है।समय रहते पीले ज्वर की पहचान कर ली जाए तो इससे होने वाले प्रभाव को रोका जा सकता है।
पीला ज्वर गर्म देशों में ज्यादा होता है। यह दक्षिण अमरीका, पश्चिम भारत के टापू, पश्चिम अफ्रीका आदि देशों में ज्यादा फैलता है। इसके खतरे वाले क्षेत्रों/देशों में रहने और वहां यात्रा करने वाले वयस्कों और 9 माह की आयु से अधिक बड़े बच्चों के लिए येलो फीवर का टीका लगवाने की सलाह दी जाती है।
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