
मलेरिया का बुखार ज्यादातर बरसात के मौसम में होता है। मच्छर के काटने से मनुष्य के शरीर में घुसे स्पोरोज़ाइट तेजी से जिगर में पहुंच जाते हैं। वहां वो तेजी से मीरोजोइट रूप में बदल जाते हैं। इसके बाद वो लारको पर हमला करते हैं। यह प्रक्रिया मच्छर के काटने के 10 से 15 दिनों बाद होता है।
मलेरिया का बुखार ठंड लगकर आता है। इस बुखार में रोगी के शरीर का तापमान 101 से 105 डिग्री तक चला जाता है। मलेरिया एक प्रकार का संक्रामक रोग होता है जो क्रमशः पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे दिन पर ठंड लग कर आता है। और बाद में पसीना आकर उतर भी जाता है। मलेरिया बुखार की तीन अवस्थाएं होती हैं। पहली में कंपकंपी के साथ बुखार आता है और अंत में पसीना आकर बुखार उतर जाता है। सिर में दर्द, जी मिचलाना, उल्टी होना, ठंड लगकर तेज बुखार होना, बुखार उतरते समय पसीना आना आदि लक्षण होते हैं।
मलेरिया ज्वर कुछ स्थितियों में तो बहुत जल्दी ठीक हो जाता है तो कभी-कभी मौत का कारण भी बन जाता है। ये विषम ज्वर कभी भी गंभीर रूप ले सकता है। ऐसे में मलेरिया से होने वाली समस्याओं को रोकने के लिए कुछ प्रयत्न करने भी आवश्यक है। आइए जानें क्या है वे प्रयास।
मलेरिया ऐसी महामारी है जो अलग-अलग समय में अपने अलग-अलग रूप दिखाती है। कहने को कभी ये कुछ दिनों में सही हो जाता है, लेकिन सही तरह से देखभाल न मिलने पर इसके बिगड़ने का भी खतरा रहता है।

मलेरिया होने पर क्या करें
- यदि मलेरिया बुखार में शरीर का तापमान बहुत जल्दी –जल्दी बढ़ या घट रहा है और ऐसा लगातार हो रहा है, तो आपको दोबारा से रक्त जांच करवानी चाहिए।
- ध्यान रहे जब आप दोबारा या जितनी बार भी रक्त जांच करवा रहे हैं, तो मलेरिया की क्लोंरोक्वीनिन दवाई ना लें।
- मलेरिया में तबियत बिगड़ने पर अपनी आप अपनी मर्जी से किसी भी प्रकार की दर्द निवारक दवाईयों को न लें।
- मलेरिया ज्वर के गंभीर होने पर भी संतरे के जूस जैसे तरल पदार्थों का सेवन लगातार करते रहें।
- शरीर का तापमान बढ़ने और पसीना आने पर ठंडा टॉवल लपेट लें। थोड़े समय के अंतराल के बाद माथे पर ठंडी पट्टियां रखते रहे।
- दवाईयों के सेवन के बाद भी तेज़ बुखार हो रहा है, तो कोई लापरवाही न बरतें नहीं तो आप किसी घातक बीमारी का भी शिकार हो सकते है।

मलेरिया से बचाव के अन्य तरीके
मलेरिया के बुखार में रोगी के पेट को साफ करने का जुलाब दें। तेज बुखार होने पर ठंडे पानी की या बर्फ के पानी की पट्टियां माथे पर रखें। बरसात के दिनों में नालियों गड्डों आदि में पानी इकट्टा न होने दें, क्योंकी मच्छर इस गंदे पानी में ही अंडे देते हैं। रोगाणुनाशक दवाओं जैसे- डी.डी.टी, बी.एच.सी पाउडर, नीम या तम्बाकू का घोल या मिट्टी के तेल को सालन भरी दिवारों, पोखरों, तलाबों और नालियों में छिड़कें। साथ ही मलेरिया होने पर रोगी कोपानी उबाल कर पीना चाहिए और पत्ते वाली सब्जिंयां नहीं खानी चाहिए।
गर्भावस्था के दौरान मलेरिया
गर्भवती महिलाओं को मलेरिया होने से गर्भपात, मरा भ्रूण पैदा होने, भ्रूण का वजन कम होने, या समय से पहले बच्चा होने की संभावना रहती है। इसे मॉं की मृत्यु तक हो सकती है। मलेरिया के परजीवियों को गर्भनाल से खास आकर्षण होता है। जहॉं से ये गर्भ में पल रहे शिशु तक भी पहुंच जाते हैं। ऐसे में भ्रूण को भी मलेरिया हो सकता है। इसी से भ्रूण की वृद्धि भी ठीक से नही होती। कभी कभी गर्भपात या मरा भ्रूण पैदा होने की संभावना रहती है।
Read More Articles on Malaria in Hindi
Read Next
मलेरिया से कैसे करें बचाव
How we keep this article up to date:
We work with experts and keep a close eye on the latest in health and wellness. Whenever there is a new research or helpful information, we update our articles with accurate and useful advice.
Current Version