मानव शरीर में फेफड़ों का काम हवा से ऑक्सीजन अलग कर रक्त में पहुंचाना है। हमारे शरीर से कार्बन डाई-आक्साइड उत्सर्जित होता है, जो फेफड़े बाहर निकालते हैं। लेकिन कई बार हमारे फेफड़ों में संक्रमण हो जाता है और ये ठीक से काम नहीं करते। यही समस्या बढ़कर कई बार कैंसर का रूप ले लेती है। फेफड़ों के कैंसर में कोशिकाओं की असामान्य वृद्धि होती है, जो सबसे अधिक ब्रांकाई में शुरू होती है, और पूरे फेफड़े के ऊतकों में फैलती है। पूरी दुनिया में होने वाले कैंसरों में सबसे अधिक फेफड़े के कैंसर रोगी ही होते है। पूरे विश्व में यह कैंसर प्रतिवर्ष 0.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। फेफड़ों के कैंसर के कई कारण हो सकते है।
धूम्रपान-
धूम्रपान फेफड़ों के कैंसर का सबसे आम कारण है। धूम्रपान कैंसर की सबसे बड़ी वजह मानी जाती है। धूम्रपान न केवल सिगरेट पीने वालों, बल्कि धुएं के संपर्क में आने वाले अन्य व्यक्तियों को भी प्रभावित करता है। अधिकांश लोग सोचते है कि बीड़ी पीने से फेफड़ों का कैंसर कम होता है, यह एक भ्रामक धारणा है। सर्वेक्षण दर्शाते है कि सिगरेट से ज्यादा बीड़ी फेफड़ों को नुकसान पहुंचाती है।
अधिक शराब पीने से-
जाम से जाम टकरने वाले हो जाएं सावधान। अधिक शराब भी फेफड़े के कैंसर को निमंत्रण देती है। शराब के साथ सिगरेट पीने की आदत तो फेफड़े के कैंसर की संभावना को कई गुना बढ़ा देती है। लोग आमतौर पर इस समस्या की ओर जब तक तवज्जो देते हैं, तब तक काफी देर हो चुकी होती है। और रोग पूरी तरह से फैल चुका होता है।
एस्बेस्टोस में काम करने वालों में
एस्बेस्टोस में काम करने वाले कर्मचारियों में फेफड़ों के कैंसर होने की संभावना बहुत ज्यादा होती है।
परमाणु विस्फोटों के कारण-
फेफड़े के कैंसर का खतरा परमाणु विस्फोट जैसी घटनाओं के कारण भी हो सकता है।
अन्य औद्योगिक खतरे-
श्रमिकों में ज्यादातर कैंसर के होने की संभावना रहती है, खासकर उन श्रमिकों में जो लंबे समय से किसी कारखाने में काम कर रहे है, जैसे- कोयला, आर्सेनिक, अखबार मुद्रण, सरसों गैस इत्यादि में, और यहां तक कि सोने की खान में काम करने वाले श्रमिकों में कैसर होने का जोखिम ज्यादा होता हैं।
फेफड़ों के कैंसर के महत्वपूर्ण लक्षण-
फेफड़ों के कैंसर के लक्षणों में 3 सप्ताह तक लगातार खांसी लाल या थूक के साथ रक्त आना, सीने में दर्द, शारीरिक व्यायाम के साथ सांस और अक्सर घरघराहट, छाती में संक्रमण, रक्त वाहिकाओं पर ट्यूमर के दबाव के असर से चेहरे और गर्दन की सूजन, नसों में दर्द या उस तरफ हाथ में कमजोरी, वजन में कमी, थकान, भूख में कमी
आदि देखने को मिलते हैं
उपचार की प्रक्रिया
आरंभिक अवस्था में फेफड़े के कैंसर की पहचान करना कठिन है। शुरुआती अवस्था में इसके लक्षण नजर ही नहीं आते। कभी-कभी फेफड़े के कैंसर का पता किसी और वजह से कराए गए छाती के एक्सरे से चलता है। धूम्रपान करने वालों को खांसी ठीक न होने पर एक्सरे या स्पाइरल सी.टी. कराने पर इसका पता चलता है।
कैंसर की पहचान के बाद यह तय किया जाता है कि कैंसर किस प्रकार का है और इसका विस्तार कितना है। कुछ कैंसर जिनका विस्तार सीमित है, सर्जरी से निकाले जा सकते है, पर बढ़ी हुई अवस्था में दवाओं और रेडियो थैरेपी द्वारा कैंसर को नियंत्रित किया जाता है। कुछ कैंसर, जिनमें छोटी-छोटी कोशिकाओं की प्रमुखता होती है उनके इलाज में दवाएं ही कारगर साबित होती हैं। फेफड़ों के कैंसर का इलाज चार प्रकार से किया जाता है रेडिएशन, कीमोथेरेपी, सर्जरी, और टारगेटेड थेरेपी।
कैसे रोकें-
फेफड़ों के कैंसर को रोकने के लिए धूम्रपान से दूरी सबसे महत्वपूर्ण है। दुर्भाग्य से ज्यादातर मामलों में फेफड़ों के कैंसर से बचाव का यह सबसे अधिक उपेक्षित रूप है। सिगरेट के पैक पर दी हुई चेतावनियों के बावजूद लोग लगातार धूम्रपान करते हैं। धूम्रपान करने वालों में जोखिम न केवल उन तक ही सीमित रहता है, बल्कि उनके आसपास के लोगों को भी प्रभावित करता है। ब्लैक टी, फल व सब्जियों का ज्यादा से ज्यादा सेवन इस जानलेवा बीमारी को रोकने में मदद करता है। यदि वक्त रहते फेफड़े के कैंसर का पता लग जाए और इलाज शुरू कर दिया जाए तो यह ठीक हो सकता है।
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