वैश्विक विकास के लिए स्वच्छता को प्राथमिकता देना और शौचालय से जुड़े मिथकों को दूर कर लोगों को जागरूक बनाने के उद्देश्य के साथ विश्व शौचालय दिवस (World Toilet Day) पूरी दुनिया में मनाया जाता है। इस दिन यूएन अपने मेंबर स्टेट और अन्य स्टेकहोल्डर्स को प्रोत्साहित करता है कि वह समाज के गरीब तबके के रहवासियों के बीच साफ़-सफाई के प्रति जागरूकता बढ़ाएं। खुले में शौच करने से सबसे ज्यादा परेशानी महिलाओं को उठानी पड़ती है और इसी वजह से उनसे जुड़े मुद्दों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए भी यह दिन खासतौर से मनाया जाता है।
विश्व और भारत की कितनी प्रतिशत आबादी शौचालय के उपयोग से वंचित है?
भारत को अक्टूबर (2019) की शुरुआत में ही खुले में शौच मुक्त घोषित किया गया है। आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 110 मिलियन से अधिक शौचालय बनाए गए और 600 मिलियन से अधिक लोगों को इसका लाभ मिला। यह शौचालय भारत सरकार के बेहद चर्चित स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत बनाए गए थे। हालांकि, हालिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भले ही कई शौचालयों का निर्माण किया गया हो लेकिन अधिकांश जनसंख्या अब भी इनका इस्तेमाल नहीं कर रही है। साथ ही इनकी देखरेख और साफ़-सफाई को लेकर भी कोई इंतजाम नहीं हैं। वहीं ग्लोबल स्तर पर बात की जाए तो, यूएन द्वारा 2030 के लिए विकास लक्ष्य जैसे- साफ़ पानी, सैनिटेशन और स्वच्छता जैसी सेवाओं की रफ़्तार भी धीमी है। 2 बिलियन से अधिक लोगों की पहुंच आज भी बुनियादी सैनिटेशन तक नहीं है। इसका सीधे तौर पर मतलब यह है कि दुनिया में 4 में से 1 व्यक्ति के पास शौचालय की सुविधा उपलब्ध नहीं है।
It's #WorldToiletDay
— WHO South-East Asia (@WHOSEARO) 19 November 2019
Access to��& sanitation is an important right that↘️the spread of diseases such as #diarrhea, typhoid, #hepatitis A&E
Although progress has been made, 600 million ppl in the Region still do not have access to basic sanitation & open defecation remains common pic.twitter.com/O07BatGo6B
खुले में शौच करने से स्वास्थ्य को क्या नुकसान झेलने पड़ते हैं?
खुले में शौच से न केवल स्वास्थ्य बल्कि प्रकृति पर भी बेहद बुरा प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए, जल स्रोतों के आस-पास शौच करने से पानी के स्त्रोतों के प्रदूषित होने का जोखिम होता है और जब दैनिक कामकाजों के लिए इन स्त्रोतों के आसपास रहने वाले लोग इस पानी का उपयोग करते हैं तो उन्हें हैजा, टाइफाइड जैसी कई बीमारियां हो सकती हैं। खुले में शौच करने से इसके ऊपर मक्खियां और अन्य कीड़े-मकोड़े भी बैठते हैं, जो कीटाणु इधर से उधर पहुंचाने का काम करते हैं।
यही कीटाणु आपके खान-पान की वस्तुओं में चिपककर आपके शरीर में जा सकते हैं, जिनसे कई गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। इन बीमारियों का सबसे गंभीर परिणाम बच्चों में कुपोषण के रूप में सामने आता है और जो बच्चे इनमें से किसी भी बीमारी से ग्रसित हो जाते हैं, उन्हें दस्त की परेशानी होने लगती है जिससे शरीर में पानी की कमी के साथ-साथ भूख भी मर जाती है। इतना ही नहीं, आगे चलकर उन्हें निमोनिया और टीबी जैसी घातक बीमारियां होने का रिस्क भी बढ़ जाता है.
शौच के बाद हाथ कैसे धोएं?
शौचालय के उपयोग के बाद हर बार हाथ जरुर धोने चाहिए क्योंकि इसी के माध्यम से हम कीटाणुओं से संपर्क में आने से खुद को बचा सकते हैं। टॉयलेट या यूं कहें कि वॉशरूम में डायरिया, उलटी, मितली और पेट दर्द की समस्या पैदा करने वाले कई कीटाणु मौजूद रहते हैं, जिनसे अच्छे से हाथ धोकर ही बचा जा सकता है। इस प्रक्रिया में बहुत ज्यादा नहीं बल्कि बीस सेकंड का ही समय लगता है।
इसके लिए सबसे पहले हाथों को अच्छे से गीला करें और फिर हाथ की हथेली और नाखूनों के आसपास की जगहों को साबुन लगाकर रगड़ें। इसके बाद हाथ पानी से अच्छे से धोकर इन्हें सुखा लें। याद रखें हाथ धोकर इसे सुखाना बेहद जरुरी है क्योंकि अगर ऐसा नहीं किया तो बैक्टीरिया हाथ में चिपक जाएंगे। इसके अलावा अगर आप घर से बाहर किसी ऐसी जगह जा रहे हैं जहां पानी की उपलब्धता नहीं है तो हाथों को साफ़ करने के लिए हैंड सैनिटाइज़र का उपयोग करना न भूलें।
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सुरक्षित शौचालय स्वच्छता तरीके क्या हो सकते हैं?
हेल्थ के लिहाज से देखा जाए तो इंडियन और वेस्टर्न स्टाइल के टॉयलेट्स का इस्तेमाल किया जाता है और क्यों? हर व्यक्ति को कई तरह की बीमारियों और इंफेक्शन से बचने के लिए कुछ जरुरी टॉयलेट क्लीनिंग तरीकों को आजमाना चाहिए क्योंकि इससे हम किसी अन्य व्यक्ति को किसी प्रकार का इंफेक्शन नहीं प्रदान करेंगे। इसके लिए कुछ उपयोगी टिप्स इस प्रकार हैं...
- फर्श को साफ़-सुथरा रखें और कचरे को केवल डस्टबिन में डालें।
- दीवारें, डोर लॉक, टॉयलेट फ्लश हैंडल्स, नल, पेपर टॉवल डिस्पेंसर, स्टाल लॉक और लाइट स्विच साफ़-सुथरी हों, इस बात को जरुर सुनिश्चित करें।
- टिश्यू पेपर की मदद से दर्पण और लाइट्स को साफ़ करते रहे।
- जब भी टॉयलेट का उपयोग करें तो फ्लश के इस्तेमाल से पहले ढक्कन बंद कर दें, इससे बैक्टीरिया अन्य हिस्सों में नहीं फैल सकेंगे।
- टॉयलेट ब्रश को भी साफ़ रखें और डिटर्जेंट से उसकी गंदगी जरुर हटा दें। हर छह महीने में नया ब्रश उपयोग में लायें।
- नमी के स्तर को कम करने के लिए अपने टॉयलेट में वेंटिलेशन की व्यवस्था जरुर करें।
- टॉयलेट सीट सैनिटाइज़र को बैक्टीरिया फैलने से रोकने के लिए ही बनाया गया है इसलिए उसका इस्तेमाल अवश्य करें।
- जब भी टॉयलेट का उपयोग करें तो अपने हाथों को साबुन से जरुर धोएं।
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भारतीय शैली के शौचालय ज्यादा बेहतर पाए गए हैं क्योंकि इनमें टॉयलेट सीट सीधे शरीर को टच नहीं कर पाती और इस वजह से से यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन (UTI) होने की संभावना भी कम हो जाती है। साथ ही, भारतीय शैली के शौचालय में वाइपिंग के लिए पानी का इस्तेमाल किया जाता है जिससे गंदगी अच्छे से साफ़ होती है और हाइजीन भी मेंटेन रहता है। हालांकि, आजकल सार्वजानिक जगहों पर पश्चिमी शैली के शौचालय होते हैं जिनके इस्तेमाल से इंफेक्शन की संभावना रहती है इसलिए कोशिश करें कि अपने पास टॉयलेट सैनिटाइज़र स्प्रे और क्लीनिंग वाइप्स जरुर रखें जिससे आपको परेशानी का सामना न करना पड़े।
(इनपुट्स: यह लेख पी-सेफ के फाउंडर विकास बगारिया से हुई बातचीत पर आधारित है।)
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