भ्रूणविज्ञान (एम्ब्रियोलॉजी) जीवन के विकास का अध्ययन है। इसके अंतर्गत अंडाणु के रिप्रोडक्शन से लेकर शिशु के जन्म तक जीव के उद्भव एवं विकास का वर्णन होता है। अपने पूर्वजों के समान किसी व्यक्ति के निर्माण में कोशिकाओं और ऊतकों की पारस्परिक क्रिया का अध्ययन एक अत्यंत रुचि का विषय है। स्त्री के अंडाणु का पुरुष के स्पर्म के द्वारा रिप्रोडक्शन होने के पश्चात जो क्रमबद्ध परिवर्तन भ्रूण से पूर्ण शिशु होने तक होते हैं, वे सब इसके अंतर्गत आते हैं। इसके अलावा एम्ब्रियोलोजी के अंतर्गत डिलिवरी के पूर्व के परिवर्तन और वृद्धि का ही अध्ययन होता है। जो लोग इस अध्ययन को करते हैं उन्हें एम्ब्रियोलॉजिस्ट कहते हैं।
ब्लूम आईवीएफ ग्रूप एंड सेक्रेट्री जनरल ऑफ द फेडरेशन ऑफ ऑब्स्टेट्रिक्स एंड गाएनेकॉल्जिकल सोसाइटीज़ ऑफ इंडिया के मेडिकल डायरेक्टर डॉ. हृषिकेश पाई का कहना है कि “जो कपल्स प्राकृतिक तरीके से गर्भधारण नहीं कर पाते हैं, वे आज के समय की एडवांस साइंस और टेक्नॉल्जी की वजह से रिप्रोडक्टिव तकनीक आईवीएफ का सहारा ले रहे हैं। इंडिया के वेस्ट पार्ट में रह रहे लोगों ने इस प्रक्रिया को अपनाया है। इसके बारे में लोगों में जागरूकता फैलाना काफी जरूरी हो गया है, क्योंकि इस प्रक्रिया को अपनाकर कपल्स साधारण और हेल्दी तरीके से एक बच्चे को जन्म दे सकते हैं। ऐसी तकनीक के बारे में जागरुकता फैलाने से हम कपल्स को बढ़ावा दे सकते हैं और अपने डर के बारे में खुलकर चर्चा करने की हिम्मत भी दे सकते हैं”।
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आज वर्ल्ड एम्ब्रियोलॉजिस्ट डे पर हम आपको बताने जा रहे हैं आईवीएफ की स्टेप बाई स्टेप प्रक्रिया, जिसे अपनाकर आप भी माता-पिता बनने का सुख पा सकते हैं।
आईवीएफ तकनीक में सबसे पहले दंपत्ति यानि उन जोड़ों का टेस्ट होता है, जो की कृत्रिम गर्भाधान यानि आईवीएफ द्वारा टेस्ट ट्यूब बेबी पाना चाहते हैं। इसमें डॉक्टर आदमी और औरत का test करता है। इस तकनीक में डॉक्टर महिला के हॉर्मोन लेवल को चेक करता है जो की महिला के शरीर में अंडे के निर्माण के लिए जिम्मेदार होता है। यदि हॉर्मोन शरीर में कम हैं तो डॉक्टर महिला को इंजेक्शन देता है जिसके द्वारा महिला में अंडे बनने के प्रक्रिया तेज हो जाती है। आईवीएफ तकनीक में निम्न स्टेप्स होते हैं। आइए जानते हैं...
स्टेप-1 स्टीम्यूलेशन
इसमें महिला को ऐसी दवाएं दी जाती हैं जो की महिला के शरीर में अण्डों की संख्या बढ़ाने में मदद करती हैं।
स्टेप-2 एग रिट्रीवल
इसमें छोटी सी सर्जरी होती हैं जिसमें आपका डॉक्टर एक स्पेशल सुई की मदद से आपके अंडाशय से अंडे को निकालता है। इस प्रक्रिया में दर्द नहीं होता बस कुछ महिलाओं में इसके बाद पेट में मरोड़ की शिकायत हो सकती है।
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स्टेप-3 फर्टीलाइजेशन
इसमें अण्डों को एक निश्चित तापमान पर रखा जाता है और उनके निषेचन यानि फर्टिलाइजेशन के लिए पुरुष के बढ़िया क्वालिटी की शुक्राणुओं का चुनाव किया जाता है। अंडे को शुक्राणु से मिलाया जाता है और कुछ घंटों बाद निषेचन प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है।
स्टेप-4 एम्ब्रियो
इसमें उच्च कोटि की परिस्तिथियों में डॉक्टर निषेचित अंडे का बहुत बारीकी से ध्यान रखता है। इस प्रक्रिया में अंडे से भ्रूण बनने के प्रोसेस का अच्छी तरह से ध्यान रखा जाता है। इसमें यह भी जांच की जाती है की बनने वाले भ्रूण में को अनुवांशिक खराबी ना हो। यदि आपका भ्रूण एक दम स्वस्थ है तभी डॉक्टर आपके भ्रूण को वृद्धि के लिए आपके गर्भाशय में स्थापित करते हैं।
स्टेप-5 इम्प्लांटेशन
इस स्टेप में डॉक्टर नए भ्रूण को महिला की कोख में स्थापित कर देते हैं। यह प्रक्रिया भ्रूण के बाने के 3 से 5 दिन के बाद होता है। इस प्रक्रिया का सक्सेस रेट भ्रूण के कोख में स्थापन पर निर्भर करती है। यदि 2 भ्रूण स्थापित हो जाएं तो जुड़वां बच्चे होने की संभावना भी होती है।
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