Breastfeeding Week:स्तनपान को लेकर समाज की सोच में बदलाव की जरूरत, जानें एक मां की सच्ची कहानी

ब्रेस्‍टफीडिंग सप्‍ताह में ओनलीमाई हेल्‍थ के #NoShameInBreastfeeding कैंपेन के तहत कुछ सच्‍ची कहानियों को आपके साथ साझा किया जा रहा है।
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Breastfeeding Week:स्तनपान को लेकर समाज की सोच में बदलाव की जरूरत, जानें एक मां की सच्ची कहानी


जब मैंने गर्भधारण किया तो मेरे दिमाग में स्तनपान को लेकर कभी भी कोई चीज नहीं आई थी, जिसमें मुझे सोचने पर मजबूर किया हो। और न ही इस बारे में मेरे परिवार या दोस्तों ने कोई चर्चा की या और न ही किसी प्रकार का कोई सुझाव दिया। आम तौर पर जब आप गर्भवती होती हैं तो आपको क्या करना है और क्या नहीं करना इस बारे में बहुत से सुझाव दिए जाते हैं लेकिन मुझे स्तनपान को लेकर ऐसी कोई राय नहीं दी गई थी। इतना ही नहीं मेरे मामले में स्त्री रोग विशेषज्ञ ने भी इस बात पर कोई चर्चा नहीं की थी।

हालांकि मेरे कुछ दोस्तों ने इस बारे में थोड़ी बात जरूरत की थी कि उन्हें स्तनपान को लेकर कुछ दिक्कतों का सामना जरूर करना पड़ रहा है। लेकिन जब मेरा बेबी हुआ तो यह स्वाभाविक रूप से मेरे साथ हुआ।

मेरा पहला अनुभनव

स्तनपान से संबंधित मेरे बच्चे का मेरा पहला अनुभव बेहद ही खास है। बच्चे को जन्म देने के बाद मुझे एनेस्थीसिया दिया गया और मैं बमुश्किल से होश में आई थी। एक क्षण मुझे मेरे बाएं स्तन पर कुछ महसूस हुआ और मैंने अपनी गर्दन घुमाई और देखा, एक छोटा सा गुलाबी रंग का बच्चा, जिसकी आंखें बंद थीं, वह मेरे पास था और स्तनपान कर रहा था। यह मेरे बच्चे का पहला स्पर्श था। वह एहसास अभी भी मेरे दिमाग में इस तरह से बसा हुआ, जिसे भूल पाना मुमकिन नहीं है। जो मैंने महसूस किया वह केवल एक मां ही महसूस कर सकती है।

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कैसी रही स्तनपान की प्रक्रिया

जैसा कि मैंने कहा कि स्तनपान की पूरी प्रक्रिया हम दोनों के लिए ही बहुत आसान थी। मैं एक कामकाजी महिला हूं और जब ताश्वी छह महीने की हो गई तो मैंने फिर से काम करना शुरू कर दिया। मैंने हमेशा यह सुनिश्चित किया कि मेरा काम उसके खाने के बीच न आए चाहे वह मेरा ऑफिस हो या घर पर मेहमान आए हो या फिर मैं किसी यात्रा पर हूं। मैं उसके लिए नाश्ता या खाना जरूर बनाकर आती हूं।

बच्ची की परवरिश

जब भी ताश्वी की तबियत खराब होती है या फिर खेलते वक्त उसके चोट लग जाती है तो ब्रेस्ट मिल्क उसकी इम्यूनिटी बढ़ाने और उसे मेरे साथ अधिक सुरक्षित महसूस कराता है। यह हमारे बीच का सबसे अच्छा वक्त होता है।

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स्तनपान को लेकर आनें वाली दिक्कतें

सफर के दौरान हमें कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ा और यह ताश्वी को सबसे ज्यादा परेशान करता है क्योंकि मुझे उसे कवर करना था और वह निश्चित रूप से इसे पसंद नहीं करती। समाज को अभी भी इस विचार से स्वीकार करने की आवश्यकता है कि स्तनपान एक प्राकृतिक प्रकिया है न कि वर्जित।

स्तनपान में आयु की सीमा नहीं

मैंने ताश्वी को स्तनपान कराना जारी रखा है, भले ही वह अभी 21 महीने की हो गई है और मैं इस बात को लेकर काफी खुश हूं। लोग मुझसे पूछते हैं कि मैं उसे अपने काम, घर आदि के साथ दूध पिलाने का प्रबंध कैसे करती हूं, जिसके जवाब है कि जो चाहता है उसे वह करने का समय मिल सकता है, जो स्वाभाविक है? और मेरा मानना है कि स्तनपान किसी भी अन्य प्राकृतिक गतिविधि जितना स्वाभाविक है। यह कोई नौकरी नहीं है जिसका किसी को प्रबंध करना है।

स्तनपान का कोई दायरा नहीं

एक बच्चे को स्तनपान कराने की न्यूनतम अवधि 6 महीने है और जब से मैंने इस अवधि को बढ़ाया है, मुझे कई बार चेतावनी के साथ इसे बंद करने के लिए कहा गया है कि यह भविष्य में मेरे लिए मुसीबत बन जाएगा। मेरा मानना है कि यह एक मां पर निर्भर होना चाहिए और इसका कोई दायरा नहीं होना चाहिए।

निष्कर्ष

और हां, किसी मां को उसके फैसले के मुताबिक मत परखें। इस तरह की प्राकृतिक चीजों को हल्के में लीजिए, जीएं और जीने दें।

इस 'World Breastfeeding Week' यानी 'विश्व स्तनपान सप्ताह' के मौके पर मां बनने के बाद अपनी मुश्किलों, जज़्बातों और ख़ूबसूरत एहसासों को हमारे साथ शेयर कर रही हैं प्राची शांडिल्य।

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