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नवजात शिशुओं के लिए क्यों जरूरी है Bilirubin Testing? एक्सपर्ट से जानें कारण

Why Bilirubin Testing Is Essential For Newborn Babies In Hindi: पेरेंट्स को चाहिए कि वे जन्म के 24 घंटे के अंदर अपने शिशु का बिलीरुबिन टेस्ट करवाएं, इससे पीलिया के जोखिम का पहले से पता लगाया जा सकता है।
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नवजात शिशुओं के लिए क्यों जरूरी है Bilirubin Testing? एक्सपर्ट से जानें कारण


Why Bilirubin Testing Is Essential For Newborn Babies In Hindi: आपने अक्सर देखा होगा कि नवजात शिशुओं को जॉन्डिस हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि जन्म के बाद भी नवजात शिशुओं के कई ऑर्गन का पूरी तरह विकास नहीं होता है। अगर किसी नवजात शिशु का लिवर पूरी तरह विकास न करे, तो उन्हें पीलिया हो सकता है। पीलिया होने पर त्वचा और आंखों में पीलापन नजर आने लगता है। अगर समय रहते पीलिया का पता न चले या इसका ट्रीटमेंट न किया जाए, तो बच्चे की कंडीशन हो सकती है। सवाल है, क्या सभी नवजात शिशुओं को बिलीरुबिन टेस्ट किया जाना जरूरी है? आइए, इस बारे में Neuberg Ajay Shah Laboratory में मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ. अजय शाह से जानते हैं।

नवजात शिशुओं के लिए क्यों जरूरी है कि बिलीरुबिन टेस्ट- Why Bilirubin Testing Is Essential For Newborn Babies In Hindi

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जैसा कि अभी हम आपको बताया है कि नवजात शिशुओं के कई ऑर्गन का विकास सही तरह हो पाता है। ऐसें में जन्म के बाद उन्हें कई तरह बीमारियों का जोखिम रहता है। इस क्रम में पीलिया यानी जॉन्डिस भी शामल है। यही कारण है कि हर नवजात शिशु का जन्म के तुरंत बाद बिलीरुबिन टेस्ट जरूर किया जाना चाहिए। इस टेस्ट की मद से पता लगया जा सकता है कि शिशु को जॉन्डिस तो नहीं है। याद रखें कि जन्म के तुरंत बाद लगभग 60 फीसदी नए जन्मे शिशुओं को पीलिया हो जाता है। पीलिया होने पर टेस्ट किया जाता है, जिससे बॉडी में बिलीरुबिन के स्तर का पता लगाया जाता है। अगर बॉडी में बिलीरुबिन के स्तर को मैनेज न किया जाए, तो शिशु के स्वास्थ्य पर इसका हानिकारक प्रभाव हो सकता है। एक्सपर्ट्स की मानें, तो अगर बिलीरुबिन टॉक्सिक हो जाता है, तो ऐसे में बच्चे की ब्रेन को नुकसान हो सकता है, जिससे उसे आजीवनकाल के लिए न्यूरोलॉजिकल समस्याएं हो सकती है। ऐसे में उसे कई अन्य परेशानियों का भी सामना करना पड़ सकता है, जैसे ठीक से सुनाई न देखा, आंखों की रोशनी कमजोर होना और वही तरह से विकास न होना। बिलीरुबिन टेस्ट के जरिए पीलिया को गंभीर होने से पहले रोका जा सकता है।

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बिलीरुबिन टेस्ट के प्रकार

नवजात शिशुओं में बिलीरुबिन के स्तर की जांच दो तरीके से की जाती है। ट्रांसक्यूटेनियस बिलीरुबिन (TcB) परीक्षण नामक एक non-invasive method बिलीरुबिन के स्तर का अनुमान लगाने के लिए शिशु की त्वचा पर लगाए गए उपकरण का उपयोग करती है। यदि TcB रीडिंग बिलीरुबिन के बढ़ने की इशारा करती है, तो उसका ब्लड टेस्ट किया जाता है। ब्लड टेस्ट, जिसे सीरम बिलीरुबिन (TSB) के नाम से जाना जाता है। इसकी मदद से बिलीरुबिन के स्तर का सटीक मेजरमेंट पता चलता है। इससे बच्चे के स्वास्थ्य स्थिति के बारे में सटीक जानकारी मिलती है, जो कि बच्चे की हेल्थ सुधार करने के लिए प्रोफेशनल्स की मदद करती है।

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कब और कितनी बार कराएं बिलीरुबिन टेस्ट

आमतौर पर नवजात शिशुओं के जन्म के 24 घंटे के अंदर ही बिलीरुबिन टेस्ट किया जाता है। इसके अलावा, अगर किसी नवजात शिशु के भाई-बहन को पीलिया हुआ हो या मां को किसी तरह की ब्लड से जुड़ी परेशानी रहती है, तो इस स्थिति में नवजात शिशु का बिलीरुबिन परीक्षण जरूर किया जाना चाहिए। वैसे नवजात शिशुओं को जन्म के 3 से 5 दिन के अंदर पीलिया होता है, इसलिए करीब 48 से 72 घंटे के बाद बिलीरुबिन टेस्ट करवाना चाहिए।

All Image Credit: Freepik

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