बच्चों में टीबी की समस्या (Tuberculosis In Kids) का इलाज सही समय पर जरूरी है अन्यथा इसके खतरे बढ़ सकते हैं। टीबी (Tuberculosis) जैसी संक्रामक बीमारी के बारे में ज्यादातर लोगों को ठीक से जानकारी आज भी नहीं है। ट्यूबरक्युलोसिस बैक्टीरिया के संक्रमण की वजह से होने वाली यह घातक बीमारी शरीर के किसी भी अंग में हो सकती है। पुराने समय में यह समस्या ज्यादातर अधिक उम्र वाले लोगों में ही होती थी लेकिन अब यह समस्या कम उम्र में भी देखने को मिलती है। बच्चों में टीबी का रोग सबसे ज्यादा आनुवांशिक कारणों से होता है। माता-पिता से यह समस्या बच्चों में हो सकती है। इसके अलावा कई अन्य कारणों की वजह से भी बच्चों में टीबी का रोग हो सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बच्चों में टीबी के इलाज के दौरान किस तरीके से देखभाल करनी चाहिए इसको लेकर गाइडलाइन जारी की है जिसमें यह बताया गया है की बच्चों में टीबी का इलाज कर्ट समय क्या सावधानियां बरतें। आइये विस्तार से जानते हैं इसके बारे में।
बच्चों में टीबी की समस्या होने पर देखभाल के टिप्स (Tips To Manage Tuberculosis In Kids in Hindi)
बच्चों में टीबी की समस्या कई कारणों से हो सकती है। आज के समय में तकनीक में बदलाव और स्वास्थ्य के क्षेत्र में हुई प्रगति के कारण बच्चों में टीबी का इलाज बेहद आसान हो गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने टीबी से पीड़ित बच्चों के लिए कुछ गाइडलाइन जारी की है जिसका ध्यान टीबी से पीड़ित बच्चों के इलाज में जरूर रखना चाहिए। बच्चों में टीबी की समस्या बेहद गंभीर मानी जाती है और इलाज में लापरवाही की वजह से यह समस्या जानलेवा भी हो सकती है। कई आंकड़े ये बताते हैं की तमाम बच्चों को टीबी के इलाज के दौरान मूलभूत सुविधाएं नहीं मिलती हैं जिसकी वजह से कई मरीजों की जान चली जाती है। बच्चों में टीबी का रोग होने पर इलाज और देखभाल के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी इस गाइडलाइन का पालन करना चाहिए।
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1. विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी गाइडलाइन के मुताबिक बच्चो में टीबी के इलाज के दौरान जरूरी दवाओं के डोज का ध्यान जरूर रखना चाहिए। गाइडलाइन में कहा गया है की जांच के बाद रिपोर्ट आने पर ही बच्चों को टीबी के इलाज में प्रयोग होने वाली दवाएं देनी चाहिए।
2. ऐसे बच्चे जिनमें पल्मोनरी टीबी के लक्षण दिखाई देते हैं उनमें एक्सपर्ट अल्ट्रा टेस्ट किट की मदद से शुरूआती जांच करनी चाहिए। इसके बाद स्मियर माइक्रोस्कोपी या डीएसटी टेस्ट की बजाय, बच्चों की लार या थूक, नोज म्यूकस, गैस्ट्रिक एस्पिरेंट्स जैसे स्टूल के नमूनों की भी जांच की जानी चाहिए। इन सैंपल की रिफाम्पिसिन रेजिस्टेंस की जांच के बाद बच्चों का इलाज शुरू करना चाहिए।
3. 3 महीने से 16 साल की उम्र के ऐसे बच्चे जिनमें टीबी के लक्षण बहुत अधिक गंभीर नहीं हैं उन्हें 4 महीने का एक्स्क्लूसिव ट्रीटमेंट कोर्स देना चाहिए। इस कोर्स के माध्यम से इलाज होने पर मरीजों को निश्चित समय में फायदा मिलता है।
4. प्रीजर्मेटिव प्लमोनरी टीबी या ऐसे बच्चे जिनमें टीबी की समस्या बेहद गंभीर पायी जाती है उनके इलाज में भी पल्मोनरी टीबी का कोर्स अपनाया जा सकता है।
5. 6 साल की कम उम्र के बच्चे जिनमें एमडीआर/आरआ-टीबी की पुष्टि हुई है उनके इलाज में bedaquiline जैसी ओरल दवाओं का भी इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
6. तीन साल से कम उम्र के टीबी के मरीजों का इलाज करते समय delamanid दवा का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इसके अलावा इस दौरान दवाओं के डोज का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
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बच्चों में टीबी की बीमारी का इलाज करते समय विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी इस गाइडलाइन का ध्यान जरूर रखा जाना चाहिए। बच्चों में टीबी के लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। टीबी का सबसे बड़ा लक्षण लगातार खांसी का होना है। अगर आपके बच्चे को दो हफ्ते या उससे अधिक खांसी होती है, तो यह टीबी का एक लक्षण हो सकता है। बच्चे को पहले सूखी खांसी आना और बाद में खांसी के साथ बलगम में खून आना यह इसके प्रमुख लक्षण हैं। इन लक्षणों के दिखते ही सबसे पहले बच्चों की टीबी की जांच की जानी चाहिए।
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