शिंगल्ज आमतौर पर उम्रदराज व्यस्कों और कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों में नजर आता है। इसके रोग के मुख्य कारण, तनाव, चोट, कुछ दवायें और अन्य कई कारण हो सकते हैं। शिंगल्ज के शिकार होने वाले अधिकतर लोग ठीक हो जाते हैं और उन्हें यह बीमारी भविष्य में भी परेशान नहीं करती।
शिंगल्ज क्या होता है
शिंगल्ज एक त्वचा संक्रमण है, जिसमें दर्द भी होता है। यह वेरिसेला जोस्टर वायरस द्वारा फैलता है। यह आमतौर पर एक जोड़ अथवा पट्टी पर होता है। इसके अलावा यह चेहरा अथवा त्वचा के किसी भी हिस्से में हो सकता है। हसे हेरपस जोस्टर भी कहा जाता है। आम बोलचाल की भाषा में इसे दाद अथवा भैंसिया दाद भी कहा जाता है।
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क्यों होता है शिंगल्ज
शिंगल्ज तब होता है जब चिकनपॉक्स फैलाने वाला वायरस शरीर में दोबारा सक्रिय हो जाता है। जब आप चिकनपॉक्स से उबर जाते हैं, तो यह वायरस आपके शरीर की तंत्रिका प्रणाली में सुप्तावस्था में चला जाता है। कुछ लोगों में यह आजीवन इसी अवस्था में रहता है। वहीं कुछ अन्य में तनाव, अधिक उम्र के कारण प्रतिरक्षा प्रणाली में होने वाली कमजोरी, के कारण यह पुन: सक्रिय हो जाता है। कुछ मामलों में दवायें भी इस वायरस को जागृत करने में अहम भूमिका निभाती हैं। इसी कारण व्यक्ति को शिंगल्ज की शिकायत हो जाती है। लेकिन, पुन: सक्रिय हुआ वायरस केवल शिंगल्ज कर सकता है, चिकनपॉक्स नहीं।
यह एक संक्रामक बीमारी नहीं है, यानी आपको यह रोग किसी और व्यक्ति के संपर्क में आने से नहीं हो सकता है। लेकिन, इस बात की आशंका भी होती है, शिंगल्ज से संक्रमित व्यक्ति से यह वायरस किसी ऐसे व्यक्ति को जरूर संक्रमित कर सकता है, जिसे चिकनपॉक्स न हुआ हो और जिसने चिकनपॉक्स का टीका न लगवाया हो।
क्या हैं शिंगल्ज के लक्षण
शिंगल्ज के लक्षण विभिन्न चरणों में नजर आते हैं। पहले चरण में आपको सिर में दर्द और रोशनी के प्रति संवेदनशीलता हो सकती है। आपको ऐसा भी अहसास हो सकता है कि आपको फ्लू है, लेकिन आपको बुखार नहीं होता।
बाद में आपको किसी खास हिस्से में खुजली, सिहरन अथवा दर्द हो सकता है। इसके बाद कुछ दिनों के भीतर जोड़ अथवा स्ट्रिप वाले हिस्से में रेशेज हो सकते हैं। ये रेशेज कुछ दिनों में फफोलों के समूह बन जाते हैं। इन फफोलों में द्रव भर जाता है और फिर इन पर पपड़ी जम जाती है। इस पपड़ी को ठीक होने में दो से चार सप्ताह लगते हैं। जाते-जाते कुछ लोगों को ये रेशेज गहरे निशान दे जाते हैं। वहीं कुछ के शरीर पर हल्के निशान आते हैं, तो कुछ को किसी प्रकार के निशान नहीं आते।
ऐसा भी हो सकता है कि कुछ लोगों को चक्कर आएं और वे कमजोर महसूस करें। या आपको अपने चेहरे पर लंबे समय तक दर्द और रेशेज का सामना करना पड़े। इसके साथ ही आपकी नजरों और सोचने की क्षमता पर भी विपरीत असर पड़ सकता है। अगर आप शिंगल्ज के कारण ऐसी कोई समस्या नजर आये, तो आपको फौरन डॉक्टर के पास जाना चाहिए।
कैसे होता है इलाज
शिंग्लेस को दवाओं के जरिये ठीक किया जा सकता है। इन दवाओं में एंटीवायरल मेडिसन और दर्दनिवारक दवायें भी शामिल होती हैं। फौरन एंटीवायरल दवायें लेने से रेशेज जल्दी ठीक हो जाते हैं और साथ ही इनमें दर्द भी कम होता है। तो, अगर आपको इस बात का अहसास हो कि आपको शिंगल्ज हैं, तो आपको बिना देर किये डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
घर पर कैसे करें देखभाल
घर पर अच्छी देखभाल भी आपको जल्दी ठीक होने में मदद कर सकती है। त्वचा में किसी भी प्रकार का जख्म और संक्रमण होने पर उसकी अनदेखी न करें। स्वच्छता बरतें यह आपके लिए बहुत जरूरी होता है। डॉक्टर के दिशा-निर्देशों के अनुसार दवाओं का सेवन करें। अगर आपको दर्द हो, तो डॉक्टर को जरूर बतायें। डॉक्टर आपको सही उचित सलाह देगा और हो सकता है कि आपकी दवाओं में जरूरी बदलाव भी करे।
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किसे होता है शिंगल्ज
कोई भी ऐसा व्यक्ति जिसे कभी चिकनपॉक्स हुआ हो, उसे शिंगल्ज हो सकता है। अगर आपकी उम्र 50 वर्ष या उससे अधिक है और आपका इम्यून सिस्टम कमजोर है, तो आपको यह रोग होने की आशंका काफी अधिक होती है। ऐसे लोग जिनकी उम्र पचास वर्ष से अधिक है, उनके लिए शिंगल्ज की वैक्सीन मौजूद हैं। इससे शिंगल्ज होने और लंबे समय तक इसका दर्द कायम रहने की आशंका कम हो जाती है। और आपको शिंगल्ज हो जाए, तो वैक्सीन लेने से आपको कम रेशेज और दर्द होगा। साथ ही आपकी रिकवरी भी जल्द होगी।
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एक ताजा शोध में यह बात सामने आयी है कि जिन लोगों को 40 वर्ष की आयु से पहले शिंगल्ज होता है, उन्हें स्ट्रोक का खतरा काफी अधिक होता है। लेकिन, वे लोग जिन्हें 40 वर्ष की आयु के बाद शिंगल्ज होता है, उनके लिए खतरे में कोई इजाफा नहीं होता। लेकिन चालीस वर्ष की आयु से पहले शिंगल्ज होने से हृदयाघात और ट्रांसिएंट इसचेमिक अटैक होने का खतरा भी बढ़ जाता है।
इस शोध में शिंगल्ज और हार्ट अटैक के खतरे को जोड़कर देखा गया है। शोध के प्रमुख लेखक और यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन के विरेलॉजी एंड इंफेक्शन एंड इम्यूनिटी के प्रोफेसर डॉक्टर जुडिथ ब्यूरर ने बताया है कि वे लोग जिन्हें चालीस वर्ष की आयु से पहले यह समस्या होती है, उन्हें दिल की समस्या होने का खतरा अधिक होता है।
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