हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में हम न जानें कितनी ही परेशामियों से गुजरते हैं, लेकिन कुछ समय बाद हम इनसे बाहर भी आ जाते हैं। लेकिन कुछ समस्याएं ऐसी होती हैं, जो हमें लंबे समय तक परेशान कर सकती हैं, जैसे कि हाइपरविजिलेंस की समस्या। इस समस्या में व्यक्ति की जागरूकता और सतर्कता अचानक से बढ़ जाती है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो, यह एक मनोवैज्ञानिक और शारीरिक समस्या है जिसमें संभावित खतरे या नुकसान होने की संभावना बढ़ जाती हैं। यह स्थिति विभिन्न तरीकों से प्रकट हो सकती है, और इसका प्रभाव शारीरिक और भावनात्मक दोनों प्रकार से हो सकता है। इस बारे में ज्यादा जानने के लिए हमने बात की मनस्थली की संस्थापक-निदेशक और वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. ज्योति कपूर से।
जानिए किन कारणों से होती है यह समस्या- Main Causes of Hypervigilance
किसी घातक घटना का अनुभव होना
हाइपरविजिलेंस के कारणों में से एक दर्दनाक घटनाओं का अनुभव होना है, जैसे शारीरिक या भावनात्मक दुर्व्यवहार, यौन रूप से पीड़ित या प्राकृतिक आपदा और बड़ी दुर्घटना का अनुभव होना।
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पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पीटीएसडी)
पीटीएसडी से पीड़ित लोगों में अक्सर हाइपरविजिलेंस के लक्षण नजर आ सकते हैं। यह अत्यधिक तनाव या आघात के संपर्क में आने के कारण हो सकता है। ऐसे में हाइपरविजिलेंस ही एक ऐसा तरीका है, जिससे ऐसे अनुभवों के बाद संभावित खतरों को कम किया जा सकता है।
तनाव से ग्रस्त होना
ज्यादा तनाव के लंबे समय तक संपर्क में रहना, चाहे काम के कारण, पारिवारिक मुद्दों के कारण, या अन्य जीवन चुनौतियों के कारण हाइपरविजिलेंस का कारण बन सकता है। ऐसे में शरीर और मन अत्यधिक सतर्कता की स्थिति में रहने के लिए तैयार हो जाते हैं।
हाइपरविजिलेंस की समस्या से कैसे बाहर आएं- how to deal with hypervigilance
थेरेपी
मनोचिकित्सा अक्सर हाइपोविजिलेंस के लिए प्राथमिक उपचार माना जाता है, इससे इसका सामना करने में जल्द मदद मिल सकती है।
दवाओं का सेवन
कुछ मामलों में दवा दी जाती है, खासकर हाइपरविजिलेंस पीटीएसडी या चिंता विकार की समस्या में यह जरूरी होता है।
माइंडफुलनेस और रिलैक्सेशन
माइंडफुलनेस और रिलैक्सेशन सीखने से आपको चिंता और तनाव को कम करने में मदद मिल सकती है। ऐसे में आप गहरी सांस लेना, ध्यान, योग विश्राम कर सकते हैं।
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जीवनशैली में बदलाव
एक स्वस्थ जीवनशैली हाइपोविजिलेंस के प्रभाव को कम कर सकती है। नियमित व्यायाम, संतुलित आहार और पर्याप्त नींद से काफी मदद मिल सकती है। शराब और कैफीन को कम करने या उससे परहेज करने से भी चिंता को प्रबंधित करने में मदद मिल सकती है।
खुद की देखभाल
स्व-देखभाल गतिविधियों को प्राथमिकता दें, जो विश्राम और तनाव में कम कर सकती हैं। इसमें नियमित ब्रेक लेना, शौक पूरा करना, प्रियजनों के साथ समय बिताना और यह सुनिश्चित करना शामिल हो सकता है कि आपके पास एक स्वस्थ कार्य-जीवन संतुलन है।
इन तरीको की मदद से आप इस समस्या से जल्द राहत पा सकते हैं। अगर इसके बावजूद इमोशन कंट्रोल करना मुश्किल हो रहा है, तो आप एक्सपर्ट से सलाह ले सकते हैं।