मेंटल हेल्थ से जुड़े इन 4 मिथकों पर आज भी लोग करते हैं विश्वास, जानें इनकी सच्चाई

मेंटल हेल्थ से जुड़े कई ऐसे मिथक हैं, जिन पर लोग विश्वास करते हैं। जबकि उनका सच्चाई से कोई लेना-देना नहीं होता। जानिए, इन मिथकों की सच्चाई।
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मेंटल हेल्थ से जुड़े इन 4 मिथकों पर आज भी लोग करते हैं विश्वास, जानें इनकी सच्चाई

Myths About Mental Health In Hindi: मेंटल हेल्थ को लेकर आज से नहीं, बल्कि सदियों से कई तरह के मिथ फैले हुए हैं। कोई इसे भूत-पिशाच से जोड़ता है, तो कोई मेंटल इलनेस को सीधे-सीधे पागलपन कह देता है। असल बात तो यह है कि आज भी लोग मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्याओं को लेकर इतना खुले हुए नहीं हैं। यही कारण है कि तमाम लोगों मानसिक तनाव या डिप्रेशन जैसी मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम होने के बावजूद इसका जिक्र किसी से करना पसंद नहीं करते हैं, बल्कि उसे छिपाते हैं। इसी तरह की और भ्रांतियां हैं, जो लोगों के बीच फैली हुई हैं। ऐसे में बहुत जरूरी है कि हम मेंटल हेल्थ से जुड़ी इन मिथकों की सच्चाईयां जानें और इस संबंध में सही जानकारी को प्रसार करें।

Myths About Mental Health In Hindi

मिथक: जिन लोगों को मेंटल हेल्थ से जुड़ी कोई प्रॉब्लम होती है, उनकी समझ कम होती है।

सच्चाई: मानसिक स्वास्थ्य का खराब होने का यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि व्यक्ति की समझ कम है या वह मंदबुद्धि है। यहां तक कि मानसिक प्रॉब्लम होने का मतलब यह भी नहीं है कि वह व्यक्ति समाज में अपनी जगह नहीं बना सकता या वह नौकरी करके आय करने की स्थिति में नहीं होता है। सच्चाई यह है कि अगर किसी व्यक्ति विशेष को किसी तरह की मेंटल हेल्थ कंडीशन है, इसके बावजूद वह सामान्य जिंदगी जी सकता है। आम लोगों की तरह नौकरी कर सकता है और गृहस्थ जीवन जी सकता है।

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मिथक: मानसिक स्वास्थ्य की समस्या होने पर मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखा जाना चाहिए।

सच्चाई: यह सच है कि जो व्यक्ति मानसिक स्वास्थ्य की विशेष स्थिति से गुजर रहा है, उसे अपनी मेंटल हेल्थ का पूरा ध्यान रखना चाहिए। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि जिन लोगों को मेंटल हेल्थ से जुड़ी कोई प्रॉब्लम नहीं है, उन्हें अपनी मेंटल हेल्थ का ध्यान नहीं रखना चाहिए। हर व्यक्ति, जो मानसिक-शारीरिक रूप से स्वस्थ है, उसे भी अपनी मेंटल हेल्थ का ध्यान रखना चाहिए। साथ ही, जरूरी होने पर अपने मेंटल हेल्थ को बेहतर करने के सही कदम भी उठाने चाहिए।

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मिथक: टीनेजर्स को मेंटल हेल्थ इश्यूज नहीं होते हैं। हार्मोनल चेंजेस की वजह से उनका मूड सही नहीं रहता है और वे दूसरों का ध्यानाकर्षित करने के लिए खराब बर्ताव करते हैं।

सच्चाई: यह सच है कि टीनेजर्स में हार्मोनल बदलाव के कारण उनका मूड अक्सर उखड़ा-उखड़ा रहता है। कई बार वे दूसरों का अपनी ओर ध्यानाकर्षित करने की वजह से अजीब बर्ताव भी करते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि टीनेजर्स को मेंटल हेल्थ के इश्यूज नहीं होते हैं। यूनिसेफ (Unicef) के अनुसार, दुनियाभर में  14 प्रतिशत टीनेजर्स मानसिक-स्वास्थ्य समस्याओं का अनुभव करते हैं। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि दुनियाभर में 10-15 साल के बच्चों की मृत्यु के सबसे बड़े पांच कारणों में से एक आत्महत्या है। जबकि 15-19 साल के किशोरों के लिए यह चौथा सबसे आम कारण है। यही नहीं, आधी मेंटल हेल्थ कंडीशंस 14 वर्ष की आयु से शुरू होती हैं। इसका मतलब साफ है कि किशोरों को भी मेंटल हेल्थ इश्यूज जैसे डिप्रेशन, एंग्जाइटी हो सकती हैं।

मिथक: जिन लोगों की मेंटल हेल्थ खराब होने लगती है, वे कभी सामान्य नहीं हो सकते हैं और उनके मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर करने के लिए कुछ भी नहीं किया सकता है।

सच्चाई: मेंटल हेल्थ को बेहतर किया जा सकता है। इसके लिए आसपास के माहौल को पॉजिटिव बनाना होता है, मरीज को भावनात्मक सपोर्ट की जरूरत होती है। साथ ही, उन्हें केयर गिवर (मदद करने वाला) की मदद से  उन्हें सपोर्ट करना, उनके साथ प्यार से पेश, उनकी हर बात को ध्यान से सुनना, उनकी बातों को अहमियत देना, परिवार का साथ मिलना, दोस्तों से घूमना-फिरना, अच्छी लाइफस्टाइल मैनेज करना, पूरी नींद लेना और सही खानपान। इन सब चीजों की मदद से मेंटल हेल्थ को बेहतर किया जा सकता है।

image credit: freepik

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