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डायबिटीज के प्रकार: टाइप 1, टाइप 2 के अलावा भी कई तरह के होते हैं डायबिटीज, जानें इनके बारे में

Diabetes Ke Prakar In Hindi: डायबिटीज के कई प्रकार होते हैं। इसमें टाइप 1, टाइप 2 डायबिटीज शामिल हैं। इसके अलावा, जेस्टेशनल डायबिटीज भी इसके प्रकारों में से एक है।
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डायबिटीज के प्रकार: टाइप 1, टाइप 2 के अलावा भी कई तरह के होते हैं डायबिटीज, जानें इनके बारे में


Types Of Diabetes In Hindi: डायबिटीज एक तरह की क्रॉनिक बीमारी है और यह लाइफ टाइम बनी रहती है। आमतौर पर इस बीमारी का कोई स्थाई इलाज नहीं है। यह ऐसी मेडिल कंडीशन है, जिसे संभालने के लिए हेल्दी डाइट फॉलो करनी होती है और लाइफस्टाइल में भी सुधार करना होता है। जिन लोगों का ब्लड शुगर का स्तर कम या ज्यादा होता है, उन्हें डायबिटी की समस्या होती है। कुछ मामलों में मरीज को इंसुलिन देना पड़ता है, ताकि उनका ब्लड शुगर का स्तर मैनेज हो सके। इंसुलिन एक तरह का हार्मोन होता है, जो ब्लड शुगर के स्तर को रेगुलेट करता है और ग्लूकोज को एनर्जी में कंवर्ट करता है। बहरहाल, डब्लूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार, "हमारे देश में करीब 77 मिलियन लोग डायबिटीज से ग्रस्त हैं। वहीं, 25 मिलियन लोग प्रीडायबिटिक हैं। इसका मतलब है कि हर व्यक्ति को इस संबंध में जानकारी होनी। इस लेख में हम आपको डायबिटीज के विभिन्न प्रकार के बारे में बताएंगे।" इस बारे में हमने ग्रेटर नॉएडा स्थित सर्वोदय अस्पताल में Consultant - Internal Medicine डॉ. पंकज रेलन से बात की। (Diabetes Ke Kitne Prakar Hote Hain)

डायबिटीज के प्रकार- What Are The Different Types Of Diabetes In Hindi

Types of diabetes  002

टाइप 1 डायबिटीज

टाइप 1 डायबिटीज एक तरह की ऑटोइम्यून कंडीशन होती है। इस समस्या के अंतर्ग शरीर का इम्यून सिसस्टम इंसुलिन प्रोड्यूसिंग सेल्स को अटैक करता है। इस स्थिति में शरीर पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बना पाता है। ऐसे में मरीज के शरीर में ब्लड ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है। ध्यान रखें कि जिन लोगों को टाइप 1 डायबिटीज होता है, उन्हें ब्लड शुगर को मैनेज करने के लिए इंसुलिन इंजेक्शन लेने पड़ते हैं। हालांकि, मरीज को कितने दिन में इंसुलिन लेना है, कब-कब लेना है, यह पूरी तरह उसकी मेडिकल कंडीशन में निर्भर करता है। टाइप 1 डायबिटीज के मरीज स्वस्थ जीवन के लिए पूरी तरह इंसुलिन पर निर्भर रहते हैं।

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टाइप 2 डायबिटीज

टाइप 2 डायबिटीज होने पर शरीर में सही तरह से इंसुलिन का इस्तेमाल नहीं कर पाता है। इसी कंडीशन को इंसुलिन रेजिस्टेंस कहा जाता है। हालांकि, शुरुआती दिनों में टाइप 2 डायबिटीज के मरीजों में पेंक्रियाज पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन बनाता है। लेकिन, धीरे-धीरे इसके इसुंलिन बनाने की क्षमता कमजोर हो जाती है। टाइप 2 डायबिटीज का मुख्य कारण मोटापा, फिजिकल एक्टिविटी न करना, जेनेटिक्स की बीमारी आदि शामिल हैं। इसके अलावा, अगर लंबे समय तक कोई दवा ले रहे हैं, उसके नेगेटिव इंपैक्ट के तौर पर भी टाइप 2 डायबिटीज हो सकता है।

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जेस्टेशनल डायबिटीज

जेस्टेशनल डायबिटीज गर्भावस्था के दौरान होने वाली डायबिटीज है। हालांकि, इस तरह डायबिटीज डिलवरी के बाद ठीक हो जाती है। लेकिन, सबके साथ ऐसा हो, यह जरूरी नहीं है। जेस्टेशनल डायबिटीज किसी भी गर्भवती महिला को हो सकता है, जैसे जिसकी फैमिली में डायबिटीज की हिस्ट्री रही है, मोटापे का शिकार हैं या जीवनशैली में बुरी आदतें शुमार हैं। इसके अलावा, अगर किसी को पहली प्रेग्नेंसी में जेस्टेशनल डायबिटीज हुआ है, तो अगली प्रेग्नेंसी में भी इसका रिस्क बना रहता है। जिन महिलाओं को जेस्टेशनल डायबिटीज होता है, उन्हें भविष्य में टाइप 2 डायबिटीज का भी रिस्क रहता है।

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प्रीडायबिटीज

प्रीडायबिटीज का मतलब है कि इस स्थिति में ब्लड शुगर का स्तर ज्यादा है, पर इतना नहीं कि हाई ब्लड शुगर कहा जा सके। जिन लोगों को प्रीडायबिटीज होता है, उन्हें टाइप 2 डायबिटीज का जोखिम बना रहता है। यहां तक कि प्रीडायबिटिक लोगों को हार्ट से संबंधित समस्याएं भी हो सकती हैं। आमतौर पर 45 साल की उम्र के बाद प्रीडायबिटीज का जोखिम अधिक देखने को मिलता है। इसके अलावा, मोटापा, फिजिकल एक्टिविटी की कमी, खराब डाइट, फैमिली हिस्ट्री आदि भी इसके कारण हो सकते हैं। 

डायबिटीज के अन्य प्रकार

  • टाइप 1.5 डायबिटीज: इसे वयस्कों में लेटेंट ऑटोइम्यून डायबिटीज (LADA) के रूप में भी जाना जाता हैा इस डायबिटीज में टाइप 1 और टाइप 2 के दोनों तरह के लक्षण नजर आ सकते है। यह एक तरह का ऑटोइम्यून डिजीज है, जब शरीर पेंक्रियाज में अपने इंसुलिन-प्रोड्यूसिंग सेल्स पर हमला करता है, लेकिन यह प्रक्रिया क्लासिक टाइप 1 डायबिटीज की तुलना में धीमी होती है। जिससे यह टाइप 2 जैसा नजर आने लगता है।
  • टाइप 3 डायबिटीज: कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि मस्तिष्क में इंसुलिन रेसिस्टेंस और अल्जाइमर रोग के बीच संबंध है। इसे टाइप 3 डायबिटीज के नाम से जाना जाता है।
  • टाइप 4 डायबिटीजः 65 साल से अधिक उम्र वाले बुजुर्ग, जो मोटापे का शिकार हैं, उनमें इंसुलिन रेजिसस्टेंस की समस्या को टाइप 4 डायबिटीज के रूप में जाना जाता है।
  • टाइप 5 डायबिटीजः 2025 में इस शब्द को मान्यता दी गई है। टाइप 5 डायबिटीज कुपोषण से संबंधित डायबिटीज को कहा जाता है। यह टाइप 1 (ऑटोइम्यून) और टाइप 2 (इंसुलिन रेजिसस्टेंस) से पूरीत रह अलग है। यह बीमारी क्रॉनिक कुपोषण के कारण होती है। ऐसी स्थिति बचपन में या किशोरावस्था में देखने को मिलती है।
  • डायबिटीज टाइप 6: (MODY 6 या NEUROD1-MODY) शुगर का एक दुर्लभ आनुवंशिक प्रकार है जो NEUROD1 जीन में खराबी के कारण होता है। इस बीमारी में अक्सर 30 साल की उम्र से पहले ही ब्लड शुगर का स्तर बढ़ा हुआ पाया जाता है, जिसका कारण शरीर में इंसुलिन का कम बनना होता है।
All Image Credit: Freepik

FAQ

  • टाइप 1 और 2 डायबिटीज में क्या अंतर है?

    टाइप 1 डायबिटीज ऑटो इम्यून डिजीज है। यह तब होता है, जब इम्यून सिस्टम गलती से अपने ही सेल्स को अटैक करती है। यह असल में पेंक्रिया को क्षतिग्रस्त करती है, जो इंसुलिन प्रोड्यसिंग सेल है। वहीं, टाइप 2 डायबिटीज होने पर बॉडी इंसुलिन का प्रभावी ढंग से उपयोग नहीं कर पाता।
  • डायबिटीज कितने प्रकार की होती है?

    वैसे तो डायबिटीज कई प्रकार के होते हैं। इसमें टाइप 1, टाइप 2, जेस्टेशनल डायबिटीज मुख्य होते हैं।
  • टाइप 2 डायबिटीज कैसे होते हैं?

    टाइप 2 डायबिटीज तब होता है, जब शरीर पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बनाता। ऐसे में शरीर में शुगर की मात्रा बढ़ जाती है। जाहिर है, यह स्थिति सही नहीं है।

 

 

 

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