सृष्टि के आदिकाल से मनुष्यों द्वारा वृक्षों को प्रयोग में लाया जा रहा है। वैज्ञानिक दृष्टि से वृक्ष और मनुष्य दोनों एक दूसरे के पूरक होते हैं। वूक्ष हमसे कार्बनडाई ऑक्साइड लेता है तो वहीं जीवन जीने के लिए हम वृक्षों से ऑक्सीजन लेते हैं। सबसे खास बात यह है कि वृक्ष हर तरह से जन उपयोगी होते हैं। तमाम वृक्ष ऐसे भी हैं जो अपने औषधीय गुणों को लेकर जाने जाते हैं, जिनकी पत्तियां, जड़ें और छालें भी काफी लाभदायक होती है। तो आइए ऐसे ही कुछ औषधीय गुणों वाले वृक्षों से हम आपका परिचय कराते हैं, जिनके प्रयोग से आप खुद को कई तरह की गंभीर बीमारियों से छुटकारा पा सकते है।
इसे भी पढ़ें: आंखों की हर समस्या को दूर करता है ऐलोवेरा, जानिए कैसे?
अर्जुन
अर्जुन वृक्ष भारत में होने वाला एक औषधीय वृक्ष है। इसे घवल, ककुभ तथा नदीसर्ज भी कहते हैं। अर्जुन के पेड़ की छाल को अलग-अलग तरह से प्रयोग में लाकर कई गंभीर बीमारियों को दूर किया जा सकता है। एक से डेढ चम्मच अर्जुन की छाल का पाउडर, 2 गिलास पानी में तब तक उबालें जब तक कि पानी आधा ना हो जाए। फिर इसे छान कर ठंडा कर लें। प्रतिदिन सुबह शाम, 1 या 2 गिलास पियें। इससे ब्लॉक हुई धमनियां खुल जाएंगी और कोलेस्ट्रॉल कम होने लगेगा।
रोज सुबह शाम नियमित रूप से अर्जुन की छाल के चूर्ण से तैयार चाय बना कर पियें। अर्जुन की छाल को कपड़े से छान ले इस चूर्ण को जीभ पर रखकर चूसते ही हृदय की अधिक अनियमित धड़कनें नियमित होने लगती है। इसके अलावा सुबह अर्जुन की छाल का काढ़ा बनाकर पीने से रक्तपित्त दूर हो जाता है। छाल के चूर्ण को मेहंदी में मिला कर बालों में लगाने से सफेद बाल काले हो जाते हैं।
नीम
नीम के पेड़ की छाल त्वचा रोगों के लिए बहुत ही लाभप्रद है। त्वचा पर होने वाले फोड़े-फुंसी, दाद, खुजली आदि में इसकी छाल प्रयोग में लेते हैं। इसके लिए इसे पानी में घिसकर संक्रमित स्थान पर लगाएं। भोजन करने से पहले रोज 1-1 चम्मच चूर्ण लेने से मधुमेह नियंत्रण में रहता है।
इसे भी पढ़ें: नीम के स्वास्थ्यवर्धक गुणों के बारे में जानें
इसके लिए पनीर के डोडे (एक प्रकार का फल), कुटकी, चिरायता, नीम की छाल व गिलोय के पत्तों को समान मात्रा में लेकर पाउडर बना लें। नीम की पत्तियां भी फायदेमंद होती है। इसे पानी में उबाल लें और पानी ठंडा होने के बाद नहा लें इससे आप चर्म रोग होने की संभावना खत्म हो जाती है।
बबूल
बबूल का वृक्ष औषधीय गुणों से भरा है, यह मुंह के रोगों और गुप्त रोगों में बहुत ही लाभदायक होता है, यह स्त्रियों में बांझपन और पुरूषों में शुक्राणुओं की कमी को दूर करता है। 20 ग्राम बबूल की छाल को 400 मिलीलीटर पानी में उबालकर बचे हुए 100 मिलीलीटर काढ़े को दिन में तीन बार पिलाने से भी मासिक-धर्म में अधिक खून का आना बंद हो जाता है।
40 मिलीलीटर बबूल की छाल और नीम की छाल का काढ़ा रोजाना 2-3 बार पीने से प्रदर रोग में लाभ मिलता है। त्वचा के जलने पर छाल के बारीक पाउडर को थोड़े नारियल तेल में मिलाकर जले हुए स्थान पर लगाएं। इससे जलन दूर होने के साथ निशान भी नहीं पड़ेगा। छाल के पाउडर को पानी में उबालकर गरारे करने से मुंह के छाले ठीक हो जाता है।
गजपीपली
गजपीपली को आम भाषा में मैदा लकड़ी कहा जाता है। इसकी छाल ग्राही (भारी) होती है। अतिसार के रोग में इसकी छाल बहुत ही उपयोगी होती है। छिले हुए जख्मों में इसके ताजा या सूखे तने को घिसकर लगाने से जख्म जल्दी भर जाता है।
इसके बारीक चूर्ण का लेप बनाकर लगाने से हड्डी टूटने वाला दर्द, चोट, मोच, सूजन, गठिया, सायटिका और कमर दर्द ठीक हो जाता है। मैदा लकड़ी व आमा हल्दी को समान मात्रा में लेकर चूर्ण को 1-1 चम्मच दूध के 10 दिन तक सेवन करने से भी चोट, मोच का दर्द दूर हो जाता है।
अशोक
मान्यता के अनुसार अशोक को शोक नाश करने वाला वृक्ष कहा जाता है। इसके नीचे बैठने से मन का शोक नष्ट होता है। इसका औषधीय गुण भी है। अशोक की छाल और पुष्प को बराबर मात्रा में सुबह पानी में भिगोकर रख दें। रात में रख दें, सुबह इस पानी को छानकर पी लें। इससे खूनी बवासीर दूर होता है। अशोक की छाल का 40 से 50 मिलीलीटर काढ़ा पीने से खूनी बवासीर में खून बहना बंद हो जाता है।
फोड़े-फुंसी को दूर करने के लिए इसकी छाल को पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर लें, इसमें थोड़ा सरसों तेल मिलाकर लगाने से जल्दी असर होता है। इसके अलावा महिला संबंधी दिक्कतों में चूर्ण में मिश्री मिलाकर गाय के दूध से 1-1 चम्मच लें।
वटवृक्ष
वटवृक्ष हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं, यह पर्यावरण की दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। इसके पत्तों और जटाओं को पीसकर लेप लगाना त्वचा के लिए लाभकारी है। वटवृक्ष के छाल के काढ़े में गाय का घी और खांड मिला कर पीने से बादी बवासीर में लाभ मिलता है। इसकी छाल को छाया में सुखाकर, इसके चूर्ण का सेवन मिश्री और गाय के दूध के साथ करने से स्मरण शक्ति बढती है।
छाल और जटा का चुर्ण मधुमेह रोग को दूर करता है। इसके पत्तों की राख को अलसी के तेल में मिला कर लगाने से सर के बाल उग आते हैं, इसके कोमल पत्तों को तेल में पकाकर लगाने से सभी केश के विकार दूर होते है, दांत के दर्द में इसका दूध लगाने से दर्द दूर हो जाता है और दुर्गन्ध दूर हो कर दांत ठीक हो जाता है और कीड़े नष्ट हो जाते है।
मुंह में छाले, जलन, मसूढ़ों में जलन व सूजन में इसकी छाल के चूर्ण की 2-5 ग्राम की मात्रा रोजाना सुबह-शाम पानी से लें। एक माह तक ऐसा करें, लाभ होगा।
Image Source : Getty
Read More Articles on Home Remedies in Hindi
How we keep this article up to date:
We work with experts and keep a close eye on the latest in health and wellness. Whenever there is a new research or helpful information, we update our articles with accurate and useful advice.
Current Version