जानें कैसे टाइप 2 डायबिटीज की दवा से बढ़ता है ब्‍लैडर कैंसर का खतरा

डायबिटीज के उपचार के लिए प्रयोग की जाने वाली दवाओं के कारण दूसरी बीमारियों के होने का खतरा बढ़ जाता है, इस लेख में हम आपको बता रहे हैं कैसे डायबिटीज की दवा से ब्‍लैडर कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है।
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जानें कैसे टाइप 2 डायबिटीज की दवा से बढ़ता है ब्‍लैडर कैंसर का खतरा


ब्रटिश मेडिकल जर्नल में छपी एक स्टडी के मुताबिक डायबिटीज ड्रग पियोग्लिटाजोन ब्लैडर कैंसर के खतरे को बढ़ाता है। स्टडी के अनुसार खतरा दवा के ड्यूरेशन औऱ डोज़ बढ़ने के साथ और अधिक बढ़ जाता है। जबकि ब्लैडर कैंसर का ये खतरा डायबीटिज की दवा रोसीग्लिटाजोन के सेवन के दौरान नहीं देखा गया।

पियोग्लिटाजोन और रोसीग्लिटाजोन की गिनती विश्वसनीय दवाईयों में होती है जो टाइप 2 डायबीटिज के मरीजों में ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करता है। हालांकि, 2005 में, प्लेसबो (placebo) औऱ पियोग्लिटाजोन दवाई लेने वाले मरीजों के बीच किए गए एक अप्रत्याशित तुलनात्मक परीक्षण में मूत्राशय के कैंसर के मामलों की संख्या में एक असंतुलन देखा गया है। तब से, पियोग्लिटाजोन के उपयोग और मूत्राशय के कैंसर के बीच विरोधाभास रहा है।

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शोध के अनुसार

टाइप 2 मधुमेह के रोगियों में मूत्राशय कैंसर के बढ़ते खतरों से जुड़े जोखिमों को जानने के लिए कनाडा आधारित शोधकर्ताओं की एक टीम ने पियोग्लिटाजोन के इस्तेमाल और अन्य मधुमेह विरोधी दवाओं की बीच में तुलना की।
 
इस टीम ने यूके क्लीनिकल प्रैक्टिस रिसर्च डाटाबेस (CPRD) से 145,806 मरीजों का डाटा लिया। इन मरीजों ने 2000 से 2013 के बीच में मधुमेह की दवाईयां लीं। कुछ प्रभावशाली कारकों जैसे उम्र, लिंग, मधुमेह का ड्यूरेशन, धूम्रपान की स्थिति और शराब से संबंधित विकारों की अवधि को ध्यान में रखकर इन मरीजों के डाटा का विश्लेषण किया गया है।

 

शोध के परिणाम

इन दवाईयों का इस्तेमाल करने वाले मरीजों की उन मरीजों से तुलना की गई जो डायबिटीज की अन्य दवाईयों का इस्तेमाल कर रहे थे। रिजल्ट में देखने को मिला कि दवाईयों का इस्तेमाल करने वाले मरीजों में ब्लैडर कैंसर का खतरा अन्य दवाईयों का इस्तेमाल करने वाले मरीजों की तुलना में 63% अधिक था। साथ ही रिजल्ट में ये भी देखने को मिला कि ये जोखिम दवाईयों के उपयोग और खुराक की अवधि बढ़ाने के साथ और अधिक बढ़ रही है।

अध्ययनकर्ताओं का मानना है कि भले ही ब्लैडर कैंसर का खतरा कम रहता है। लेकिन फिर भी डॉक्टर औऱ मरीजों को सुझाव है कि इस जोखिम के बारे में उन्हें पता होना चाहिए।

ब्रटिश मेडिकल जर्नल में छपी एक और रिपोर्ट छपी, जो दूसरी अन्य स्टडी पर आधारित है, जिसमें विशेष रुप से मधुमेह की अन्य दूसरी नई दवाईयों (thiazolidinediones and gliptins) का विश्लेषण किया गया है। इस दूसरी स्टडी के अनुसार मधुमेह की इन नई दवाओं में ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करने औऱ अन्य गंभीर कॉम्पलीकेशन को कम करने की क्षमता है।

 

टाइप 2 डायबिटीज और ब्लैडर कैंसर

टाइप 2 डायबिटीज और ब्लैडर कैंसर में काफी अंतर है। किसी एक बीमारी की दवा के कारण दूसरी बीमारी के चांसेस होना मतलब ये गंभीर स्थिति है।
 
टाइप 2 डायबिटीज - टाइप 2 डायबिटीज, टाइप 1 से थोड़ी अलग होती है औऱ ब्लैडर कैंसर से पूरी तरह अलग है। टाइप 1 डायबिटीज के दौरान मरीज का अग्नाशय इन्सुलिन का निर्माण नहीं कर पाता। वहीं टाइप 2 डायबिटीज में मरीज का अग्नाशय इन्सुलिन बनाता तो है लेकिन बहुत ही कम और उसका भी शरीर इस्तेमाल नहीं कर पाता। यह स्थिति इंसुलिन प्रतिरोध (Insulin resistance) कहलाती है। इसमें शरीर की सेल्स तक ग्लूकोज या तो पहुंच नहीं पाता या अगर पहुंचता भी है तो सेल्स तक पहुंच कर ऊर्जा में प्रयोग होने के बजाय रक्त में मिल जाता है, जिस से सेल्स भी ठीक ढंग से काम नहीं कर पाती।

ब्लैडर कैंसर - ब्लैडर कैंसर मूत्राशय का कैंसर है जो मूत्र मार्ग में होता है। सामान्य तौर पर यूरिन के शरीर से बाहर निकलने तक, मूत्राशय में ही एकत्रित रहता है। लेकिन जब ब्लैडर की कोशिकाएँ, अनियंत्रित और अनियमित रुप से बढ़ने लगती है तो उसे ब्लैडर कैंसर कहते हैं।

 

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