
जानिए उस शख्स की कहानी जिसने हकलाने की वजह से खुद को दुनिया से दूर कर लिया था, फिर किताबों की मदद से हकलाना छोड़ा।
‘मैं अपने पिता से नफरत करता था, क्योंकि मुझे ऐसा लगता था कि मेरे पिता के आर्मी में होने और उनके सख्त अनुशासन की वजह से मेरे अंदर डर बैठ गया है, इसलिए मैं हकलाता हूं। ये कहना है द इंडियन स्टैमरिंग एसिसोशिएन (तीसा) के संस्थापक सदस्य (Founding member) डॉ. सत्येंद्र श्रीवास्तव का। द इंडियन स्टैमरिंग एसोसोशिएन भारत में हकलाने की समस्या पर काम करती है। तीसा के आंकड़े बताते हैं कि भारत में 1.2 करोड़ लोग हकलाने की समस्या से जूझ रहे हैं। तो वहीं, दुनियाभर में 70 मिलियन लोग हकलाते हैं। हकलाना एक तरह का स्पीच डिसऑर्डर है। डॉ. श्रीवास्तव का कहना है कि वे जिंदगी के 44 साल तक हकलाते रहे। श्रीवास्तव ने हकलाने की समस्या से निजात पाने के लिए किताबों का सहारा लिया। उन्हीं किताबों से उन्हें वो चार टेक्नीक मिलीं, जिनसे उन्होंने महज दो से तीन साल में हकलाना छोड़ दिया।
क्या हैं वो चार तकनीक
अमेरिकन स्पीच थेरेपिस्ट पीटर रिट्जिस की किताबें और वीडियोज देखकर डॉ. श्रीवास्तव ने अपना हकलाना छोड़ा। फिर उन तकनीकों को अप्लाय किया। ये चारों तकनीकें हकलाने को स्लो डाउन कर देती हैं। ये हैं वे चार तकनीक जिनका इस्तेमाल डॉ. श्रीवास्तव तीसा में भी करते हैं।
1. बाउंसिंग (शुरुआती ध्वनि को रिपीट करना)- इस तकनीक में पहले वॉवल को तब तक रिपीट करते हैं जब तक हकलाने वाला व्यक्ति कंफर्टेबल न हो जाए।
2. प्रोलॉगेशन (शुरूआती ध्वनि को लंबा खींचना)- इस तकनीक में भी पहले वॉवल को लंबा खींचना होता है। यह ब्लॉक में जाने से बचाता है। जैसे मान लीजिए किसी का नाम कमल है। और वह ‘क’ पर अटक रहा है तो उसे ‘क’ को लंबा खींचकर बोलना है।
3. पॉजिंग- कुछ शब्दों को बोलने के बाद सांस लेना। हर तीन शब्दों के बाद रुको, सांस लो फिर बोलो। जब इस तकनीका इस्तेमाल हकलाना वाला व्यक्ति करता है तो इस तकनीक से उसका बहुत फायदा है।
4.वॉलिंटियरिंग स्टैमरिंग (स्वैच्छिक हकलाना) - इस तकनीक में व्यक्ति को जानबूझकर हकलाना सिखाया जाता है। पूरी चेतना से व्यक्ति हकलाता है। उसके बाद हंसता है। डॉ. श्रीवास्तव ने उदाहरण देकर बताया कि अगर मुझे किसी दुकान में जाना है तो मैं दुकानदार से पूछूंगा कि भाई ये कॉपी कितने की है। तो मैं कॉपी पर जानबूझकर हकलाऊंगा। अब मैं दुकानदार की आंखों में आंखें डालकर हकलाउंगा। इससे हमारे मन के अंदर छुपा डर बाहर निकलता है। इससे हमारे मन के डर दूर हो जाते हैं। ये टेकनीक तीसा में बहुत लोगों को बहुत मदद कर रही है। यह तकनीकें व्यक्ति के अंदर से गिल्ट निकालने में मदद करती हैं।
‘मैंने स्वीकार किया कि मैं हकला हूं’
62 साल के डॉ. श्रीवास्तव का कहना है कि जब मैंने एमबीबीएस किया तब मुझे समझ आया कि मेरे हकलाने में मेरे पिता का कोई रोल नहीं है। क्योंकि मेरे बाकी भाई बहन हकलाते नहीं हैं। उनका लालन पालन भी मेरे पिता ने किया है। फिर धीरे-धीरे मेरे संबंध मेरे पिता के साथ ठीक होने लगे। परिवार में तो मैं सहज हो गया था पर बाहर लोगों के बीच जाने से डरता था। मैं उनके बीच अपना हकलाना छुपाता था। एक समय ऐसा आ गया था कि मैं बिल्कुल अकेला पड़ गया था। फिर एक दिन मैं देहरादून में एक मौनी बाबा के पास गया। उनसे मुझे बहुत पॉजिटिव वाइब्रेशन मिलीं और उस दिन से मैंने अपना हकलाना स्वीकर लिया। जिंदगी के 44वें साल में ये मुलाकात मेरी जिंदगी का टरनिंग पॉइन्ट बनी। इस मुलाकात के बाद मेरे अंदर जो अपराध बोध पनप रहा था। वो निकल गया। और यही वजह थी कि डॉ. सत्येंद्र श्रीवास्तव ने अपनी परेशानी को देखते हुए तीसा जैसी एसोसोशिएशन की शुरूआत की।
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क्या हैं हकलाने के कारण
दिल्ली के मैक्स अस्पताल में न्यूरोलॉजिस्ट मुकेश कुमार का कहना है कि हकलाने के न्यूरोलोजिकल और मनोरोग दो कारण होते हैं। यह एक तो बीमारी होती है। दूसरा स्पीच प्रॉबल्म होती है। इस तरह के लोगों की पूरी ग्रोथ ठीक होती है, लेकिन बस हकलाते हैं। ऐसे लोगों का इलाज स्पीच थेरेपिस्ट करते हैं और वो ठीक हो जाता है। दूसरा कारण है दिमाग में किसी डेमैज के कारण हकलाना शुरू हुआ। उस केस में वह डेमैज ब्रेन ट्यूमर हो सकता है, ब्रेन इंफेक्शन हो सकता है, पुराना स्ट्रोक हो सकता है या जेनेटिक हो सकता है। उस केस में हम इन कारणों को ढूंढकर इसका इलाज कर सकते हैं।
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मनोचिकित्सक ने बताए ये उपाय
मनोचिकित्सक डॉ. प्रज्ञा मलिक का कहना है कि बच्चों में होने वाली हकलाने की समस्या कई बार समय के साथ खुद ही ठीक हो जाती है तो कई बार बढ़ जाती है। इसके पीछे तनाव एक बड़ी वजह है। इसके अलावा बच्चे की ठीक से पैरेंटिंग न होने के कारण भी हकलाने की समस्या होती है। तो वहीं बड़े होते बच्चों में आत्मविश्वास की कमी से भी हकलाने की समस्या पनपती है। मनोचिकित्सक ने बताए ये उपाय।
1. सबसे पहले कोई व्यक्ति हकला क्यों रहा है, कौन से कारण हैं, उन्हें पहले पहचानते हैं।
2. फिर प्रॉब्लम एरिया को बांट देते हैं। जैसे अगर पैरेंट्स की वजह से दिक्कत है तो उसके बाद थेरेपी की अप्रोच अपनाते हैं। जिसमें स्पीच थेरेपी की मदद भी ली जाती है। स्ट्रेस मैनेजमेंट थेरेपी होती है। थॉट और बिहेवियर पर काम करते हैं। पैरेंटिंग एप्रोच, मिरर एक्सरसाइज करते हैं।
3. बच्चे की कोपिंग स्किल को ठीक करते हैं। प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल्स बढ़ाते हैं।
4. सिवेयर प्रॉब्लम होने पर स्पीच थेरेपिस्ट के पास भेज देते हैं।
5. बच्चे को मेडिटेशन और रिलेक्शन कराते हैं। दूसरी स्टेज मिरर एक्सरसाइज है। तीसरा स्टेज है उसके हकलाने की वजह ढूंढना। इसके बाद प्रॉब्लम सॉल्विंग कराते हैं। जो उन्हें अच्छा लगता है, वो करवाते हैं।
हकलाना एक दुखदायी तकलीफ है। जिसका मजाक बनाने के बजाए ऐसे लोगों की मदद करनी चाहिए। उन्हें ऐसा माहौल देना चाहिए जिसमें वे असहज न हों। वो खुद को किसी कमरे में बंद न करें। डॉ. सत्येंद्र श्रीवास्तव ने जैसे खुद की मदद की इस समस्या से निपटने के लिए वैसे आप भी कर सकते हैं। यह लेख पैरेंट्स की मदद के लिए भी लिखा गया है। वे इस लेख से अपने बच्चों की भी मदद कर सकते हैं। अगर आपको हकलाने की समस्या है तो आप डॉ. श्रीवास्तव की तरह तरीके अपना सकते हैं।
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