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जंक-फूड्स के कारण प्रियंका को 23 साल की उम्र में हो गया था रेक्टल कैंसर, परिवार के सपोर्ट से दी कैंसर को मात

True Story of Rectal Cancer in Hindi: 23 साल की छोटी सी उम्र में प्रियंका को किन कारणों से रेक्टल कैंसर हुआ और कैसे उन्होंने इसे मात दी, इस लेख में जानें उनकी पूरी जर्नी।
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जंक-फूड्स के कारण प्रियंका को 23 साल की उम्र में हो गया था रेक्टल कैंसर, परिवार के सपोर्ट से दी कैंसर को मात

True Story of Rectal Cancer in Hindi:अक्सर कैंसर का जब भी नाम सुनते हैं, तो लगता है कि यह बीमारी अधेड़ उम्र या बड़ी उम्र के लोगों को अपना शिकार बनाती है। महिलाओं में अक्सर ब्रेस्ट, सर्वाइकल या ओवरी कैंसर के मामले ज्यादा देखने को मिलते हैं, और वह भी आमतौर पर महिलाएं 30 की उम्र के पार होती हैं। लेकिन जयपुर की रहने वाली प्रियंका मात्र 23 साल की थीं, जब उन्हें पेट से जुड़े रेक्टल कैंसर का पता चला। इतनी छोटी उम्र में उन्होंने कैसे इन परिस्थितियों में खुद को संभाला और कैसे उन्होंने इस कैंसर का सामना किया, आज उनकी पूरी जर्नी उन्हीं की जुबानी हम लेकर आए हैं। हमने प्रियंका से बात की और उनसे रेक्टल कैंसर से जुड़ी उनकी पूरी जर्नी विस्तार से जानी।

रेक्टल कैंसर के लक्षणों को पहचानने में हुई देरी

रेक्टल कैंसर से पूरी तरह ठीक हो चुकी प्रियंका कहती हैं, “यह बात साल 2021 की है। उस समय मैं पढ़ाई के लिए जयपुर गई थी। परिवार से दूर हॉस्टल में रहकर मैंने अपनी सेहत पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। उस दौरान मैं सिर्फ जंक फूड पर ही निर्भर थी। एक दिन मुझे पेट में दर्द हुआ और दर्द कम करने के लिए मैंने पेनकिलर ली। उस पेनकिलर से दर्द ठीक हो गया। इसके बाद तो आए दिन लगातार दर्द रहने लगा होता रहता और पेनकिलर कुछ समय के लिए आराम दे देते थे। लेकिन इस दर्द का स्थायी समाधान नहीं मिल रहा था। इस दौरान मुझे कब्ज भी रहने लगी, तो डॉक्टर ने कहा कि यह बवासीर के कारण हो रहा है। करीब एक साल तक ऐसे ही चलता रहा और मैं बहुत स्ट्रेस रहने लगी। दिसंबर 2022 में दर्द असहनीय हो गया और दवाइयां शरीर पर असर नहीं कर रही थीं।”

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जब रेक्टल कैंसर का पता चला

प्रियंका उस समय को याद करते हुए बताती हैं,” जनवरी 2023 में मैंने डॉक्टर की सलाह पर पूरी बॉडी का चेकअप कराया और उस रिपोर्ट ने मेरी पूरी जिंदगी बदल दी। कुछ और टेस्ट किए गए, जिसमें पता चला कि मुझे स्टेज 3 रेक्टल कैंसर है। यह सुनकर मैं बिल्कुल टूट गई थी। जब डॉक्टर से बात हुई तो उन्होंने कहा कि इस उम्र में स्टेज 3 कैंसर होना आम नहीं है। यह बहुत कम लोगों में देखने को मिलता है। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं, लेकिन रिपोर्ट आने के 3-4 दिन बाद ही मेरा इलाज शुरू हो गया था।”

कैंसर की जर्नी में परिवार का सपोर्ट बड़ा हौसला बना

जब कैंसर का पता चला, तो प्रियंका के लिए यह किसी झटके से कम नहीं था। डॉक्टर भी इलाज में देरी नहीं करना चाहते थे। प्रियंका कहती हैं, “अगर मेरे माता-पिता और भाई-बहन ने मुझे इमोशनल सपोर्ट न दिया होता तो मैं शायद आज जीवित न होती। इस मुश्किल घड़ी में मेरा परिवार डटकर मेरे साथ खड़ा रहा। उन्होंने मुझे इलाज कराने का हौसला दिया और जब मेरी 28 रेडियोथेरेपी हुई तो उस दर्द को सहने की हिम्मत मुझे मेरे परिवार से ही आई। आज जो कुछ भी हूं, वह सिर्फ अपने परिवार की वजह से हूं।”

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स्टोमा सर्जरी ने जीवन बदल दिया

इलाज के दौरान प्रियंका के लिए स्टोमा सर्जरी कराना सबसे कठिन दौर था। उस वक्त को सोचते हुए उनके आंसू आ गए। वह कहती हैं, “ रेडियोथेरेपी के दौरान मुझे स्टूल पास करते समय बहुत जलन और दर्द होता था। यह सहना बड़ा मुश्किल लगता था। डॉक्टरों से जब बात हुई, तो उन्होंने बताया कि मेरी बड़ी आंत में काफी खराब हो गई है और इसे पूरी तरह से निकालना पड़ेगा। अगर इसे नहीं निकाला गया तो कैंसर पूरे शरीर में फैल जाएगा। सर्जरी के दौरान वेस्टेज पास करने के लिए दूसरा रास्ता बनाया जाएगा। यह सुनकर मेरे होश उड़ गए। डॉक्टर ने कहा कि यह स्टोमा सर्जरी है और आपको हमेशा के लिए अपने साथ बैग रखना होगा। इसमें शरीर का सारा वेस्ट जाएगा।”

प्रियंका आगे बताती हैं, “उस वक्त मैंने डॉक्टर को सर्जरी करने से मना कर दिया। मैं जिंदगीभर बैग लेकर नहीं चल सकती थी। लेकिन मेरे परिवार ने बहुत समझाया और मैंने खुद को मानसिक रूप से तैयार किया। मुझे अपने परिवार के लिए जीना है। उनके प्यार और हौसले ने मुझे यह सर्जरी कराने की हिम्मत दी। मुझे अस्थमा की समस्या थी और इस वजह से सर्जरी 8 घंटे में पूरी हुई और मैं 11 दिन वेंटिलेंटर पर रही। इसके बाद 8 कीमोथेरेपी हुई। इस दौरान मैं काफी मुश्किल में रही। बहुत दर्द था और खाना-पीना छूट गया था। कई दिन तक मैं बिस्तर पर ही रहती थी। उठने का मन नहीं करता था।”

स्टोमा बैग से होने वाली परेशानी

प्रियंका कहती हैं, “हालांकि अब मै ठीक हूं, लेकिन इस कैंसर ने मुझे अपनी एक निशानी जीवनभर के लिए साथ दे दी है। अब जिंदगीभर मुझे स्टोमा बैग हमेशा साथ में ही रखना होता है। इस बैग की वजह से जीने की क्वालिटी पर बहुत असर पड़ा है। (disadvantages of a stoma bag) इससे मुझे स्किन इंफेक्शन हो जाती है। लीकेज और बदबू की समस्या रहती है। अगर कहीं बाहर जाना हो, और यह भर जाए, तो भी दिक्कत होती है। मैं लंबे समय तक कहीं बाहर नहीं जा सकती। अकेले ट्रेवल नहीं कर सकती। मेरे पैरेंट्स साथ रहते हैं।”

प्रियंका का कैंसर रोगियों के लिए संदेश

प्रियंका कहती हैं, “हालांकि, कैंसर से मुझे कई तरह की परेशानियां रही, लेकिन मैं मानसिक रूप से बहुत मजबूत हुई हूं। मुझे लगता है कि यह मेरा नया जन्म है, जिसे मैं लोगों की मदद करके बिताना चाहती हूं। अब मैं लोगों को कैंसर के प्रति जागरूक कर रही हूं। मैं सभी से कहती हूं कि आप लक्षणों को पहचानें और तुरंत डॉक्टर से मिलें। जितनी आप देर करते हैं, उतना ही इलाज मुश्किल हो जाता है। लाइफस्टाइल में बदलाव करें। जंक फूड बिल्कुल न खाएं। फल-सब्जियां और घर का बना संतुलित भोजन लें। पेट का कैंसर इन्हीं कारणों के वजह से बढ़ता है। खाने-पीने पर ध्यान दें। बस हमेशा याद रखें कि सेहत है, तो सब कुछ है। सेहत के साथ किसी भी तरह की लापरवाही न बरतें।”

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