हाल में ही हुए एक अध्ययन में पाया गया कि वर्तमान समय में जो उपचार प्रेग्नेंसी लिवर डिसआर्डर के लिए हो रहा है, इसका प्रेग्नेंसी पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। इसके बुरे प्रभाव के वजह से प्रीटर्म बर्थ और स्टिलबर्थ के जोखिमों का खतरा बढ़ सकता है। इसलिए इस पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए।
द लांसेट नामक पत्रिका में प्रकाशित एक लेख में बताया गया है कि 605 गर्भवती महिलाओं को इंट्राहेप्टिक कोलेस्टेसिस ऑफ प्रेग्नेंसी (ICP) जो कि एक लिवर डिसऑर्डर है, अक्सर प्रेग्नेंसी के दौरान कई महिलाओं को इसका सामना करना पड़ रहा है। इसके उपचार के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं में आधी मात्रा युर्सोडोक्सीकॉलिक एसिड (Ursodeoxycholic Acid) या उर्सो और कुछ मात्रा प्लेसबो (Placebo) का उपयोग होता है। शोधकर्ताओं ने महिलाओं के खून की जांचों और नमूनों को इकट्ठा करके, उनके खुजली के स्तर को मापा और जन्म से संबंधित कई जानकारियों को उस लेख में बताया है।
लेखकों ने कहा कि युर्सोडोक्सीकॉलिक एसिड का प्रभाव गर्भावस्था के परिणाम जैसे, प्रीटर्म बर्थ, नवजात इकाई प्रवेश और स्टिलबर्थ नहीं हो रहा है। लेख में यह भी बताया गया है कि अधिकांश महिलाओं में इसका खुजली में भी सकारात्मक प्रभाव नही दिख रहा है और न ही इससे महिला के पित्त का स्तर कम होने में मदद मिल रहा है।
इंट्राहेप्टिक कोलेस्टेसिस ऑफ प्रेगनेंसी (ICP), इस समस्या से यूनाइटेड किंगडम UK में प्रत्येक वर्ष लगभग 5,500 गर्भवति महिला प्रभावित होती हैं। इस परिस्थिति के कारण खून में पित्त एसिड का निर्माण होने लगता है, और जिसके कारण अक्सर खुजली जैसी गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता हैं। खून में पित्त एसिड बढ़ने के वजह से स्टिलबर्थ, प्रीटर्म बर्थ और नवजात इकाई प्रवेश के जोखिमों को बढ़ा सकती है। अब तक युर्सोडोक्सीकॉलिक एसिड का किसी भी बड़े नैदानिक परीक्षण large clinical trials में परीक्षण नहीं किया गया है, जिससे यह पता चल सके कि ये समय से पहले जन्म और प्रसव को रोकता है या नही।
अध्ययन के प्रमुख लेखक, प्रोफेसर लुसी चैपल का कहना है कि हमलोग गर्भावस्था के कोलेस्टेसिस से पीड़ित महिलाओं के लिए एक सुरक्षित और प्रभावी उपचार ढूंढना चाहते हैं, ताकि हम प्रीटर्म बर्थ और स्टिलबर्थ को रोक सकें। इस परीक्षण से पता चला है कि व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली दवा युर्सोडोक्सीकॉलिक एसिड का कोई प्रभाव नहीं हो रहा है। इन निष्कर्षों के बारे में गर्भवती महिलाओं और चिकित्सकों को जानना और समझना बहुत जरूरी है ताकि गर्भावस्था में इस प्रकार के दवाओं के सेवन से बच सकें।
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इस अध्ययन में शामिल एक शोधकर्ता जेनी चेम्बर्स का कहना है कि यह परीक्षण स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि युर्सोडोक्सीकॉलिक एसिड का अधिकांश महिलाओं पड़ कोई प्रभाव नहीं हो रहा है। इसके सेवन से शाररिक स्वस्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। उन्होंने कहा कि अब हमें तत्काल ऐसे दवा की जरूरत है जो आईसीपी की समस्या जैसे खुजली और स्टिलबर्थ दोनों के जोखिमों को कम कर सकती है इसके लिए पूरी तरह से कोशिश की जा रही है।
वैज्ञानिक अब इस लिवर डिसआर्डर वाले महिलाओं के लिए अन्य संभावित उपचारों की खोच कर रहे हैं। क्लिनिकल ड्रग ट्रायल जो 2020 की शुरुआत में शुरू होगा, जिसमें राइफैम्पिसिन का उपयोग किया जाएगा। ये एक एंटीबायोटिक है जो गर्भावस्था के दौरान खुजली के लिए एक प्रभावी उपचार है और रक्तप्रवाह से पित्त एसिड को हटाने में मदद भी करता है।
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इस अध्ययन के सह-अन्वेषक co-investigator प्रोफेसर कैथरीन विलियमसन ने कहा कि अब यह स्पष्ट है कि युर्सोडोक्सीकॉलिक एसिड का नियमित इस्तेमाल आईसीपी से पीड़ित महिलाओं के इलाज करने के लिए नहीं किया जा सकता है। हमारे भविष्य के अनुसंधान इस पर फोकस करने की कोशिश करेगा कि क्या अभी भी ऐसी महिलाओं का एक उपसमूह है जिनको इस दवा से फायदे हो सकते हैं, और आईसीपी से पीड़ित महिलाओं के इलाज करने के लिए नई दवाओं पर भी ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
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