ब्लैडर में असामान्य कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि के कारण ब्लैडर का कैंसर होता है। इसकी चिकित्सा इस बात पर निर्भर करती है कि आपका कैंसर माइक्रोस्कोप के अंदर कितना आक्रामक दिखता है और इस प्रक्रिया को ट्यूमर ग्रेड कहते हैं। ब्लैडर कैंसर का उपचार कैंसर के फैलाव की सीमा पर निर्भर करता है कि ट्यूमर कितना अधिक फैला है, इस बात को ट्यूमर स्टेज कहते हैं। आइए इसकी चिकित्सा पद्वति के बारे में हम आपको बताते हैं।
ट्यूमर ग्रेड
ट्यूमर ग्रेड से यह अनुमान लगाया जाता है कि कैंसर कितनी तीव्र गति से और कितना बढ़ रहा है। ब्लैडर कैंसर अगर तीव्र गति से बढ़ता है तो उसे उच्च ग्रेड के रूप में वर्गीकृत किया जाता है और उसमें फैलने की उच्च क्षमता होती है और अगर समय पर इसकी चिकित्सा नहीं की गयी तो यह मृत्यु का कारण भी बन सकता है। उच्च ग्रेड कैंसर की चिकित्सा के लिए कीमोथेरेपी, रेडिएशन या सर्जरी की आवश्यकता होती है।
लो ग्रेड कैंसर बहुत धीरे बढ़ता है और उसमें उच्च ग्रेड कैंसर बनने की 10 प्रतिशत तक सम्भावना रहती है। अधिकतर लोगों में लो ग्रेड कैंसर वास्तविक कैंसर की तरह व्यवहार नहीं करता।
दूसरे शब्दों में ब्लैडर कैंसर दो प्रकार का माना जाता है :
लो ग्रेड कैंसर हाई ग्रेड कैंसर
लो ग्रेड ट्यूमर के दोबारा होने की सम्भावना रहती है और अगर ऐसा होता है तो ऐसे में ट्यूमर का जड़ से खत्म करना ज़रूरी हो जाता है। ऐसे कैंसर बहुत ही कम स्थितियों में मौत का कारक बनते हैं। ऐसे में यह भी ज़रूरी नहीं कि रेडियेशन, कीमोथेरेपी, ब्लैडर निकालने जैसे आक्रामक उपचार का सहारा लिया जाए।
लेकिन अगर कार्सिनोमा जहां पर पाया जाता है वहीं पर बढ़ता है। और इस प्रकार का कैंसर अगर बाहरी ब्लैडर में बाहरी सतह पर पाया जाता है तो इम्यून माडूलेटिंग एजेंट जैसे बी सी जी वैक्सीन या ब्लैडर में कीमोथेरेपी की आवश्यकता होती है।
ट्यूमर स्टेज
ट्यूमर स्टेज वह स्टेज है जो तीन कारकों पर निर्भर करती है :
- ट्यूमर सिर्फ ब्लैडर की दीवार में है या ब्लैंडर की मांसपेशियों में है या आसपास के टिश्यूज़ में है या पेल्विक आर्गन के आस पास है।
- क्या कैंसर लिम्फ नोड्स के आसपास में फैला हुआ है।
- क्या कैंसर शरीर के दूसरे भागों में फैला हुआ है।
कैंसर की चिकित्सा के तरीके भी कैंसर की अवस्था पर भी निर्भर करते हैं :
सुपरफीशियल ट्यूमर / सतही ट्यूमर
सुपरफीशियल ट्यूमर वो कैंसर होते हैं जो सिर्फ ब्लैडर की लाइनिंग पर होते हैं। ऐसे ट्यूमर लो ग्रेड ट्यूमर होते हैं और इनकी चिकित्सा ट्रांसयूरेथ्रल रिसेक्शन (टी यू आर बी टी ) नामक उपकरण से साइटोस्कोप द्वारा करते हैं। इस प्रक्रिया में चिकित्सक ट्यूमर निकालने के लिए या तो छोटे तार की गांठ का प्रयोग करता है या एलेक्ट्रिक करेंट से ट्यूमर को जला देता है और इस प्रक्रिया को फलग्यूपरेशन कहते हैं।
ट्रांसयूरेथ्रल रिसेक्शन के बाद, कुछ उच्च जोखिम वाले मरीज़ों, वो मरीज़ जिनमें हाई ग्रेड ट्यूमर या लो ग्रेड ट्यूमर होता है, के ब्लैडर के अंदर दवाएं भी रखनी होती है और इस चिकित्सा को इन्ट्रावेसाइकल थेरपी भी कहते हैं। इसमें नीचे दी गयी ड्रग्स में से किसी एक का इस्तेमाल होता है :बैसिल कालमेंट ग्यूरीन, इसे बी सी जी भी कहते हैं ( पैसिस, थेराइटिस, टी आई सी ई, बी सी जी ), थियोटेपा, माइटोमाइसिन (म्यूटामाइसिन), इन्टरफेरान या डाक्सोरयूबिसिन (एडरेमाइसिन, रयूबेक्सम)।
इन्ट्रावेसाइकल थेरेपी से कैंसर के दोबारा होने का खतरा कम हो जाता है और इससे कैंसर के बढ़ने और खतरनाक होने का खतरा भी कम होता है।
सुपरफीशियल हाई डिग्री के ट्यूमर के लिए चिकित्सा के विकल्प थोड़े कम हैं क्योंकि ट्रांसयूरेथ्रल रिसेक्शन और इन्ट्रा वेसाइकल थेरेपी के बाद भी इसके दोबारा होने की सम्भावना रहती है। जब हाई डिग्री सुपरफीशियल ट्यूमर एक या दो बार से अधिक होता है तो ऐसे में ज्यादा चिकित्सक ब्लैडर की सर्जरी कर ब्लैडर निकालने की सलाह देते हैं। यह एक बड़ा आपरेशन होता है। अधिक उम्र वाले मरीज़ जिन्हें दूसरी चिकित्सकीय समस्याएं हैं उनकी चिकित्सा रेडियेशन या इन्ट्रावेनस कीमोथेरेपी द्वारा की जाती है।